भगत बछलता प्रभु कै देखी: Difference between revisions
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भगत बछलता प्रभु कै देखी। उपजी मम उर प्रीति बिसेषी॥ | भगत बछलता प्रभु कै देखी। उपजी मम उर प्रीति बिसेषी॥ | ||
सजल नयन पुलकित कर जोरी। कीन्हिउँ बहु बिधि बिनय बहोरी॥4॥ | सजल नयन पुलकित कर जोरी। कीन्हिउँ बहु बिधि बिनय बहोरी॥4॥ | ||
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प्रभु की भक्तवत्सलता देखकर मेरे [[हृदय]] में बहुत ही प्रेम उत्पन्न हुआ। फिर मैंने (आनंद से) [[नेत्र|नेत्रों]] में [[जल]] भरकर, पुलकित होकर और हाथ जोड़कर बहुत प्रकार से विनती की॥4॥ | प्रभु की भक्तवत्सलता देखकर मेरे [[हृदय]] में बहुत ही प्रेम उत्पन्न हुआ। फिर मैंने (आनंद से) [[नेत्र|नेत्रों]] में [[जल]] भरकर, पुलकित होकर और हाथ जोड़कर बहुत प्रकार से विनती की॥4॥ | ||
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Latest revision as of 06:43, 5 July 2016
भगत बछलता प्रभु कै देखी
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | सोरठा, चौपाई, छन्द और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | उत्तरकाण्ड |
सभी (7) काण्ड क्रमश: | बालकाण्ड, अयोध्या काण्ड, अरण्यकाण्ड, किष्किंधा काण्ड, सुंदरकाण्ड, लंकाकाण्ड, उत्तरकाण्ड |
भगत बछलता प्रभु कै देखी। उपजी मम उर प्रीति बिसेषी॥ |
- भावार्थ
प्रभु की भक्तवत्सलता देखकर मेरे हृदय में बहुत ही प्रेम उत्पन्न हुआ। फिर मैंने (आनंद से) नेत्रों में जल भरकर, पुलकित होकर और हाथ जोड़कर बहुत प्रकार से विनती की॥4॥
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चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
पुस्तक- श्रीरामचरितमानस (उत्तरकाण्ड) |प्रकाशक- गीताप्रेस, गोरखपुर |संकलन- भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|पृष्ठ संख्या-513
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