रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं: Difference between revisions
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'''श्लोक'''-संस्कृत की दो पंक्तियों की रचना, जिनके द्वारा किसी प्रकार का कथोपकथन किया जाता है, को श्लोक कहते हैं। प्रायः श्लोक छंद के रूप में होते हैं | '''श्लोक'''- [[संस्कृत]] की दो पंक्तियों की रचना, जिनके द्वारा किसी प्रकार का कथोपकथन किया जाता है, को [[श्लोक]] कहते हैं। प्रायः श्लोक [[छंद]] के रूप में होते हैं अर्थात इनमें गति, यति और लय होती है। | ||
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Latest revision as of 05:38, 12 July 2016
रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | सोरठा, चौपाई, छन्द और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | उत्तरकाण्ड |
सभी (7) काण्ड क्रमश: | बालकाण्ड, अयोध्या काण्ड, अरण्यकाण्ड, किष्किंधा काण्ड, सुंदरकाण्ड, लंकाकाण्ड, उत्तरकाण्ड |
रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये। |
- भावार्थ
भगवान रुद्र की स्तुति का यह अष्टक उन शंकर जी की तुष्टि (प्रसन्नता) के लिए ब्राह्मण द्वारा कहा गया। जो मनुष्य इसे भक्तिपूर्वक पढ़ते हैं, उन पर भगवान शम्भु प्रसन्न होते हैं॥9॥
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श्लोक- संस्कृत की दो पंक्तियों की रचना, जिनके द्वारा किसी प्रकार का कथोपकथन किया जाता है, को श्लोक कहते हैं। प्रायः श्लोक छंद के रूप में होते हैं अर्थात इनमें गति, यति और लय होती है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
पुस्तक- श्रीरामचरितमानस (उत्तरकाण्ड) |प्रकाशक- गीताप्रेस, गोरखपुर |संकलन- भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|पृष्ठ संख्या-526
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