सुनहिं बिमुक्त बिरत अरु बिषई: Difference between revisions
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खगपति राम कथा मैं बरनी। स्वमति बिलास त्रास | खगपति राम कथा मैं बरनी। स्वमति बिलास त्रास दु:ख हरनी॥3॥ | ||
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Latest revision as of 14:02, 2 June 2017
सुनहिं बिमुक्त बिरत अरु बिषई
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | सोरठा, चौपाई, छन्द और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | उत्तरकाण्ड |
सुनहिं बिमुक्त बिरत अरु बिषई। लहहिं भगति गति संपति नई॥ |
- भावार्थ
इसे जो जीवन्मुक्त, विरक्त और विषयी सुनते हैं, वे (क्रमशः) भक्ति, मुक्ति और नवीन संपत्ति (नित्य नए भोग) पाते हैं। हे पक्षीराज गरुड़जी! मैंने अपनी बुद्धि की पहुँच के अनुसार रामकथा वर्णन की है, जो (जन्म-मरण) भय और दुःख हरने वाली है॥3॥
left|30px|link=जे सकाम नर सुनहिं जे गावहिं|पीछे जाएँ | सुनहिं बिमुक्त बिरत अरु बिषई | right|30px|link=बिरति बिबेक भगति दृढ़ करनी|आगे जाएँ |
चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है। ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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