कैवल्य ज्ञान: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (Text replacement - "अर्थात " to "अर्थात् ")
 
Line 1: Line 1:
'''कैवल्य ज्ञान''' अर्थात "ब्रह्म-विद्या का वह ज्ञान जो शंशय-रहित और स्थायी हो"। या "विवेक उत्पन्न होने पर औपाधिक दु:ख-सुखादि-अहंकार, प्रारब्ध, कर्म और [[संस्कार]] के लोप हो जाने से [[आत्मा]] के चितस्वरूप होकर आवागमन से मुक्त हो जाने की स्थिति को 'कैवल्य' कहते हैं।
'''कैवल्य ज्ञान''' अर्थात् "ब्रह्म-विद्या का वह ज्ञान जो शंशय-रहित और स्थायी हो"। या "विवेक उत्पन्न होने पर औपाधिक दु:ख-सुखादि-अहंकार, प्रारब्ध, कर्म और [[संस्कार]] के लोप हो जाने से [[आत्मा]] के चितस्वरूप होकर आवागमन से मुक्त हो जाने की स्थिति को 'कैवल्य' कहते हैं।
====अन्य परिभाषाएँ====
====अन्य परिभाषाएँ====
कैवल्य ज्ञान के सम्बन्ध में निम्न परिभाषाएँ भी दी गई हैं-
कैवल्य ज्ञान के सम्बन्ध में निम्न परिभाषाएँ भी दी गई हैं-

Latest revision as of 07:47, 7 November 2017

कैवल्य ज्ञान अर्थात् "ब्रह्म-विद्या का वह ज्ञान जो शंशय-रहित और स्थायी हो"। या "विवेक उत्पन्न होने पर औपाधिक दु:ख-सुखादि-अहंकार, प्रारब्ध, कर्म और संस्कार के लोप हो जाने से आत्मा के चितस्वरूप होकर आवागमन से मुक्त हो जाने की स्थिति को 'कैवल्य' कहते हैं।

अन्य परिभाषाएँ

कैवल्य ज्ञान के सम्बन्ध में निम्न परिभाषाएँ भी दी गई हैं-

  • 'पातंजलसूत्र' के अनुसार चित्‌ द्वारा आत्मा के साक्षात्कार से जब उसके कर्त्तृत्त्व आदि अभिमान छूटकर कर्म की निवृत्ति हो जाती है, तब विवेकज्ञान के उदय होने पर मुक्ति की ओर अग्रसारित आत्मा के चित्स्वरूप में जो स्थिति उत्पन्न होती है, उसकी संज्ञा 'कैवल्य' है।
  • वेदांत के अनुसार परामात्मा में आत्मा की लीनता और न्याय के अनुसार अदृष्ट के नाश होने के फलस्वरूप आत्मा की जन्म-मरण से मुक्तावस्था को ही 'कैवल्य' कहा गया है।
  • योगसूत्रों के भाष्यकार व्यास के अनुसार, जिन्होंने कर्मबंधन से मुक्त होकर कैवल्य प्राप्त किया है, उन्हें 'केवली' कहा जाता है। ऐसे केवली अनेक हुए है। बुद्धि आदि गुणों से रहित निर्मल ज्योति वाले केवली आत्मरूप में स्थिर रहते हैं। हिन्दू धर्म के ग्रंथों में शुक, जनक आदि ऋषियों को जीवन्मुक्त बताया गया है, जो जल में कमल की भाँति संसार में रहते हुए भी मुक्त जीवों के समान निर्लेप जीवनयापन करते है।
  • जैन ग्रंथों में केवलियों के निम्नलिखित दो भेद बताये गए हैं-
  1. संयोगकेवली
  2. अयोगकेवली


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख