उदउ करहु जनि रबि रघुकुल गुर: Difference between revisions

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हे रघुकुल के गुरु (बड़ेरे, मूलपुरुष) सूर्य भगवान्‌! आप अपना उदय न करें। [[अयोध्या]] को (बेहाल) देखकर आपके हृदय में बड़ी पीड़ा होगी। राजा की प्रीति और [[कैकेयी]] की निष्ठुरता दोनों को [[ब्रह्मा]] ने सीमा तक रचकर बनाया है (अर्थात राजा प्रेम की सीमा है और [[कैकेयी]] निष्ठुरता की)॥2॥  
हे रघुकुल के गुरु (बड़ेरे, मूलपुरुष) सूर्य भगवान्‌! आप अपना उदय न करें। [[अयोध्या]] को (बेहाल) देखकर आपके हृदय में बड़ी पीड़ा होगी। राजा की प्रीति और [[कैकेयी]] की निष्ठुरता दोनों को [[ब्रह्मा]] ने सीमा तक रचकर बनाया है (अर्थात् राजा प्रेम की सीमा है और [[कैकेयी]] निष्ठुरता की)॥2॥  


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Latest revision as of 07:53, 7 November 2017


उदउ करहु जनि रबि रघुकुल गुर
कवि गोस्वामी तुलसीदास
मूल शीर्षक रामचरितमानस
मुख्य पात्र राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि
प्रकाशक गीता प्रेस गोरखपुर
शैली चौपाई, सोरठा, छन्द और दोहा
संबंधित लेख दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा
काण्ड अयोध्या काण्ड
चौपाई

उदउ करहु जनि रबि रघुकुल गुर। अवध बिलोकि सूल होइहि उर॥
भूप प्रीति कैकइ कठिनाई। उभय अवधि बिधि रची बनाई॥2॥

भावार्थ

हे रघुकुल के गुरु (बड़ेरे, मूलपुरुष) सूर्य भगवान्‌! आप अपना उदय न करें। अयोध्या को (बेहाल) देखकर आपके हृदय में बड़ी पीड़ा होगी। राजा की प्रीति और कैकेयी की निष्ठुरता दोनों को ब्रह्मा ने सीमा तक रचकर बनाया है (अर्थात् राजा प्रेम की सीमा है और कैकेयी निष्ठुरता की)॥2॥


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चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।




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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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