कल्कि अवतार: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (1 अवतरण)
m (Text replacement - "शृंगार" to "श्रृंगार")
 
(14 intermediate revisions by 7 users not shown)
Line 1: Line 1:
{{पात्र परिचय
|चित्र=Kalki.jpg
|चित्र का नाम=कल्कि का अवतार ताम्रचित्र
|अन्य नाम=
|अवतार=[[विष्णु|भगवान विष्णु]] के [[अवतार|दस अवतारों]] में अंतिम अवतार
|वंश-गोत्र=
|कुल=
|पिता=
|माता=
|धर्म पिता=
|धर्म माता=
|पालक पिता=
|पालक माता=
|जन्म विवरण=
|समय-काल=
|धर्म-संप्रदाय=[[हिंदू धर्म]]
|परिजन= पिता- विष्णुयश और माता- सुमति
|गुरु=[[याज्ञवलक्य|याज्ञवलक्य जी]] पुरोहित और [[परशुराम|भगवान परशुराम]]
|विवाह=लक्ष्मी रूपी पद्मा और वैष्णवी शक्ति रूपी रमा
|संतान=जय, विजय, मेघमाल तथा बलाहक
|विद्या पारंगत=
|रचनाएँ=
|महाजनपद=
|शासन-राज्य=
|मंत्र=
|वाहन=
|प्रसाद=
|प्रसिद्ध मंदिर
|व्रत-वार=
|पर्व-त्योहार=
|श्रृंगार=
|अस्त्र-शस्त्र=
|निवास=
|ध्वज=
|रंग-रूप=
|पूजन सामग्री=
|वाद्य=
|सिंहासन=
|प्राकृतिक स्वरूप=
|प्रिय सहचर=
|अनुचर=
|शत्रु-संहार=
|संदर्भ ग्रंथ=
|प्रसिद्ध घटनाएँ=
|अन्य विवरण=धर्म ग्रंथों के अनुसार 'कल्कि अवतार' अभी प्रकट होने वाला है।
|मृत्यु=
|यशकीर्ति=
|अपकीर्ति=
|संबंधित लेख=
|शीर्षक 1=
|पाठ 1= 
|शीर्षक 2=
|पाठ 2=
|अन्य जानकारी=
|बाहरी कड़ियाँ=
|अद्यतन=
}}
'''कल्कि अवतार''' को [[विष्णु]] का भावी और अंतिम [[अवतार]] माना गया है। पौराणिक मान्यता के अनुसार [[पृथ्वी]] पर पाप की सीमा पार होने लगेगी, तब दुष्टों के संहार के लिए विष्णु का यह अवतार प्रकट होगा। अपने माता-पिता की पांचवीं संतान कल्कि यथासमय देवदत्त नाम के [[घोड़ा|घोड़े]] पर आरूढ़ होकर तलवार से दुष्टों का संहार करेंगे। तब [[सतयुग]] का प्रारंभ होगा।
==कथा==
युग परिवर्तनकारी भगवान श्रीकल्कि के अवतार का प्रयोजन विश्वकल्याण बताया गया है। भगवान का यह अवतार ‘‘निष्कलंक भगवान’’ के नाम से भी जाना जायेगा। श्रीमद्भागवतपुराण में विष्णु के अवतारों की कथाएँ विस्तार से वर्णित है। इसके बारहवें स्कन्ध के द्वितीय अध्याय में भगवान के कल्कि अवतार की कथा विस्तार से दी गई है जिसमें यह कहा गया है कि [[सम्भल|सम्भल ग्राम]] में विष्णुयश नामक श्रेष्ठ ब्राह्मण के पुत्र के रूप में भगवान कल्कि का जन्म होगा। वह देवदत्त नाम के घोड़े पर आरूढ़ होकर अपनी कराल करवाल (तलवार) से दुष्टों का संहार करेंगे तभी सतयुग का प्रारम्भ होगा।
==परिचय==
कल्कि भगवान का जन्म [[उत्तर प्रदेश]] में [[गंगा]] और [[रामगंगा]] के बीच बसे [[मुरादाबाद]] के सम्भल ग्राम में होगा। भगवान के जन्म के समय [[चन्द्रमा]] [[धनिष्ठा नक्षत्र]] और [[कुंभ राशि]] में होगा। सूर्य [[तुला राशि]] में [[स्वाति नक्षत्र]] में गोचर करेगा। [[बृहस्पति ग्रह|गुरु]] स्वराशि [[धनु राशि|धनु]] में और [[शनि ग्रह|शनि]] अपनी उच्च राशि तुला में विराजमान होगा। ये अपने माता सुमति और पिता विष्णुयश की पाँचवीं संतान होंगे। उनके भाई जो उनसे बड़े होंगे क्रमशः सुमन्त, प्राज्ञ और कवि नाम के होंगे। [[याज्ञवलक्य|याज्ञवलक्य जी]] पुरोहित और [[परशुराम|भगवान परशुराम]] उनके गुरू होंगे। भगवान श्री कल्कि की दो पत्नियाँ होंगी- लक्ष्मी रूपी पद्मा और वैष्णवी शक्ति रूपी रमा। उनके पुत्र होंगे- जय, विजय, मेघमाल तथा बलाहक। वह ब्राह्मण कुमार बहुत ही बलवान, बुद्धिमान और पराक्रमी होंगे और मन में सोचते ही उनके पास वाहन, [[अस्त्र शस्त्र|अस्त्र-शस्त्र]], योद्धा और कवच उपस्थित हो जाएँगे। वे सब दुष्टों का नाश करेंगे।<ref>{{cite web |url=http://www.mahashakti.org.in/2015/11/Kalki-Avatar-of-God-when-where-why-what-will-parents.html |title=भगवान कल्कि अवतार |accessmonthday=28 जुलाई |accessyear=2017 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=www.mahashakti.org.in |language=हिंदी }}</ref>
==कल्कि भगवान का स्वरूप==
कल्कि निष्कलंक अवतार हैं। भगवान का स्वरूप (सगुण रूप) परम दिव्य होता है। दिव्य अर्थात् दैवीय गुणों से संपन्न। वे [[श्वेत रंग|श्वेत]] [[घोड़ा|अश्व]] पर सवार हैं। भगवान का रंग गोरा है, परन्तु क्रोध में [[काला रंग|काला]] भी हो जाता है। वे [[पीला रंग|पीले]] वस्त्र धारण किए हैं। प्रभु के हृदय पर श्रीवत्स का चिह्न अंकित है। गले में [[कौस्तुभ मणि]] है। स्वयं उनका मुख पूर्व की ओर है तथा अश्व दक्षिण में देखता प्रतीत होता है। यह चित्रण कल्कि की सक्रियता और गति की ओर संकेत करता है। युद्ध के समय उनके हाथों में दो तलवारें होती हैं। मनीषियों ने कल्कि के इस स्वरूप की विवेचना में कहा है कि कल्कि [[सफ़ेद रंग]] के घोड़े पर सवार हो कर आततायियों पर प्रहार करते हैं। इसका अर्थ उनके आक्रमण में शांति (श्वेत रंग), शक्ति (अश्व) और परिष्कार (युद्ध) लगे हुए हैं। तलवार और धनुष को हथियारों के रूप में उपयोग करने का अर्थ है कि आसपास और दूरगामी दोनों तरह की दुष्ट प्रवृत्तियों का निवारण। कल्कि की यह रणनीति समाज के विचारों, मान्यताओँ और गतिविधियों की दिशाधारा में बदलाव का प्रतीक ही है।
==ग्रन्थ==
[[विष्णु]] के अन्य [[अवतार|अवतारों]] की तरह कल्कि का वर्णन भी [[वेद|वेदों]] में नहीं मिलता। लेकिन पुराणों में कल्कि अवतार का विस्तार से वर्णन हैं। [[विष्णु पुराण]] और भगवत पुराण दोनों में ही कल्कि अवतार का उल्लेख आया हैं। कल्कि पुराण तो पूरी तरह से इसी अवतार पर केंद्रित हैं।


{{दशावतार}}
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
==कल्कि अवतार / Kalki Avatar==
==संबंधित लेख==
*[[विष्णु]] का अन्तिम अवतार माना जाता है। इसके अतिरिक्त इसी आधार पर 'कल्कि पुराण' का भी नामकरण  हुआ है।
{{हिन्दू देवी देवता और अवतार}}{{दशावतार}}{{दशावतार2}}
*इसके अनुसार विष्णु का 'कल्कि' अवतार कलियुग के अन्त में होगा। कल्कि रूप में अवतरित होकर विष्णु 'कलि' का संहार कर [[सत युग]] का आविर्भाव करेंगे।
*इनके साथ ही पद्या रूप में [[लक्ष्मी]] भी अवतार लेंगी। कल्कि इनका पाणिग्रहण करेंगे।
*इसके बाद [[विश्वकर्मा]] द्वारा निर्मित 'शंभल' नगर में ये वास करेंगे।
*वहीं [[बौद्ध|बौद्धों]] का दमन तथा कुथोदर नामक राक्षसी का वध करेंगे।  इसके उपरान्त 'मल्लाह' नामक राजा की मुक्ति होगी।
*इसके उपरान्त भूलोक के समस्त अत्याचारों के विनाश के बाद सतयुग का आविर्भाव होगा। भूतल पर देव तथा गन्धर्व आदि प्रकट होंगे। अन्त में कल्कि भगवान वैकुण्ठ लौट जायेंगे।


[[Category:कथा साहित्य कोश]]
[[Category:कथा साहित्य कोश]]
[[Category:कथा साहित्य]]
[[Category:कथा साहित्य]][[Category:हिन्दू धर्म]][[Category:हिन्दू धर्म कोश]][[Category:धर्म कोश]]
[[Category:हिन्दू भगवान अवतार]]
[[Category:हिन्दू भगवान अवतार]]
__INDEX__
__INDEX__

Latest revision as of 07:56, 7 November 2017

संक्षिप्त परिचय
कल्कि अवतार
अवतार भगवान विष्णु के दस अवतारों में अंतिम अवतार
धर्म-संप्रदाय हिंदू धर्म
परिजन पिता- विष्णुयश और माता- सुमति
गुरु याज्ञवलक्य जी पुरोहित और भगवान परशुराम
विवाह लक्ष्मी रूपी पद्मा और वैष्णवी शक्ति रूपी रमा
संतान जय, विजय, मेघमाल तथा बलाहक
अन्य विवरण धर्म ग्रंथों के अनुसार 'कल्कि अवतार' अभी प्रकट होने वाला है।

कल्कि अवतार को विष्णु का भावी और अंतिम अवतार माना गया है। पौराणिक मान्यता के अनुसार पृथ्वी पर पाप की सीमा पार होने लगेगी, तब दुष्टों के संहार के लिए विष्णु का यह अवतार प्रकट होगा। अपने माता-पिता की पांचवीं संतान कल्कि यथासमय देवदत्त नाम के घोड़े पर आरूढ़ होकर तलवार से दुष्टों का संहार करेंगे। तब सतयुग का प्रारंभ होगा।

कथा

युग परिवर्तनकारी भगवान श्रीकल्कि के अवतार का प्रयोजन विश्वकल्याण बताया गया है। भगवान का यह अवतार ‘‘निष्कलंक भगवान’’ के नाम से भी जाना जायेगा। श्रीमद्भागवतपुराण में विष्णु के अवतारों की कथाएँ विस्तार से वर्णित है। इसके बारहवें स्कन्ध के द्वितीय अध्याय में भगवान के कल्कि अवतार की कथा विस्तार से दी गई है जिसमें यह कहा गया है कि सम्भल ग्राम में विष्णुयश नामक श्रेष्ठ ब्राह्मण के पुत्र के रूप में भगवान कल्कि का जन्म होगा। वह देवदत्त नाम के घोड़े पर आरूढ़ होकर अपनी कराल करवाल (तलवार) से दुष्टों का संहार करेंगे तभी सतयुग का प्रारम्भ होगा।

परिचय

कल्कि भगवान का जन्म उत्तर प्रदेश में गंगा और रामगंगा के बीच बसे मुरादाबाद के सम्भल ग्राम में होगा। भगवान के जन्म के समय चन्द्रमा धनिष्ठा नक्षत्र और कुंभ राशि में होगा। सूर्य तुला राशि में स्वाति नक्षत्र में गोचर करेगा। गुरु स्वराशि धनु में और शनि अपनी उच्च राशि तुला में विराजमान होगा। ये अपने माता सुमति और पिता विष्णुयश की पाँचवीं संतान होंगे। उनके भाई जो उनसे बड़े होंगे क्रमशः सुमन्त, प्राज्ञ और कवि नाम के होंगे। याज्ञवलक्य जी पुरोहित और भगवान परशुराम उनके गुरू होंगे। भगवान श्री कल्कि की दो पत्नियाँ होंगी- लक्ष्मी रूपी पद्मा और वैष्णवी शक्ति रूपी रमा। उनके पुत्र होंगे- जय, विजय, मेघमाल तथा बलाहक। वह ब्राह्मण कुमार बहुत ही बलवान, बुद्धिमान और पराक्रमी होंगे और मन में सोचते ही उनके पास वाहन, अस्त्र-शस्त्र, योद्धा और कवच उपस्थित हो जाएँगे। वे सब दुष्टों का नाश करेंगे।[1]

कल्कि भगवान का स्वरूप

कल्कि निष्कलंक अवतार हैं। भगवान का स्वरूप (सगुण रूप) परम दिव्य होता है। दिव्य अर्थात् दैवीय गुणों से संपन्न। वे श्वेत अश्व पर सवार हैं। भगवान का रंग गोरा है, परन्तु क्रोध में काला भी हो जाता है। वे पीले वस्त्र धारण किए हैं। प्रभु के हृदय पर श्रीवत्स का चिह्न अंकित है। गले में कौस्तुभ मणि है। स्वयं उनका मुख पूर्व की ओर है तथा अश्व दक्षिण में देखता प्रतीत होता है। यह चित्रण कल्कि की सक्रियता और गति की ओर संकेत करता है। युद्ध के समय उनके हाथों में दो तलवारें होती हैं। मनीषियों ने कल्कि के इस स्वरूप की विवेचना में कहा है कि कल्कि सफ़ेद रंग के घोड़े पर सवार हो कर आततायियों पर प्रहार करते हैं। इसका अर्थ उनके आक्रमण में शांति (श्वेत रंग), शक्ति (अश्व) और परिष्कार (युद्ध) लगे हुए हैं। तलवार और धनुष को हथियारों के रूप में उपयोग करने का अर्थ है कि आसपास और दूरगामी दोनों तरह की दुष्ट प्रवृत्तियों का निवारण। कल्कि की यह रणनीति समाज के विचारों, मान्यताओँ और गतिविधियों की दिशाधारा में बदलाव का प्रतीक ही है।

ग्रन्थ

विष्णु के अन्य अवतारों की तरह कल्कि का वर्णन भी वेदों में नहीं मिलता। लेकिन पुराणों में कल्कि अवतार का विस्तार से वर्णन हैं। विष्णु पुराण और भगवत पुराण दोनों में ही कल्कि अवतार का उल्लेख आया हैं। कल्कि पुराण तो पूरी तरह से इसी अवतार पर केंद्रित हैं।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

संबंधित लेख

  1. भगवान कल्कि अवतार (हिंदी) www.mahashakti.org.in। अभिगमन तिथि: 28 जुलाई, 2017।