भरत व्यास: Difference between revisions

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'''भरत व्यास''' ([[अंग्रेज़ी]]:''Bharat Vyas'', जन्म: [[6 जनवरी]] [[1918]] - मृत्यु: [[4 जुलाई]] [[1982]]) [[हिन्दी]] फ़िल्मों के प्रसिद्ध गीतकार थे। इनका जन्म [[6 जनवरी]] [[1918]] को [[बीकानेर]] में हुआ था जाति से पुष्करणा [[ब्राह्मण]] थे। मूल रूप से चूरू के थे। बचपन से ही इनमें [[कवि]] प्रतिभा दिखने लगी थी। उन्होंने 17-18 वर्ष की उम्र तक लेखन शुरू कर दिया था। चूरू से मैट्रिक करने के बाद वे [[कलकत्ता]] चले गए। उनका लिखा पहला गीत था- आओ वीरो हिलमिल गाए वंदे मातरम। उनके द्वारा रामू चन्ना नामक नाटक भी लिखा गया। [[1942]] के बाद वे [[बम्बई]] आ गए उन्होंने कुछ फ़िल्मों में भी भूमिका निभाई लेकिन प्रसिद्धि गीत लेखन से मिली। उन्होंने [[दो आँखे बारह हाथ]], नवरंग, बूँद जो बन गई मोती जैसी फ़िल्मों में गीत लिखे हैं।
'''भरत व्यास''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Bharat Vyas'', जन्म: [[6 जनवरी]] [[1918]] - मृत्यु: [[4 जुलाई]] [[1982]]) [[हिन्दी]] फ़िल्मों के प्रसिद्ध गीतकार थे। इनका जन्म [[6 जनवरी]] [[1918]] को [[बीकानेर]] में हुआ था जाति से पुष्करणा [[ब्राह्मण]] थे। मूल रूप से चूरू के थे। बचपन से ही इनमें [[कवि]] प्रतिभा दिखने लगी थी। उन्होंने 17-18 वर्ष की उम्र तक लेखन शुरू कर दिया था। चूरू से मैट्रिक करने के बाद वे [[कलकत्ता]] चले गए। उनका लिखा पहला गीत था- आओ वीरो हिलमिल गाए वंदे मातरम। उनके द्वारा रामू चन्ना नामक नाटक भी लिखा गया। [[1942]] के बाद वे [[बम्बई]] आ गए उन्होंने कुछ फ़िल्मों में भी भूमिका निभाई लेकिन प्रसिद्धि गीत लेखन से मिली। उन्होंने [[दो आँखे बारह हाथ]], नवरंग, बूँद जो बन गई मोती जैसी फ़िल्मों में गीत लिखे हैं।
==जीवन परिचय==  
==जीवन परिचय==  
चूरू के पुष्करणा ब्राह्मण [[परिवार]] में [[विक्रम संवत]] [[1974]] में [[मार्गशीर्ष]] [[कृष्ण पक्ष]] की [[अष्टमी]] को जन्मे भरत व्यास जब दो वर्ष के थे, तभी उनके [[पिता]] का निधन हो गया और इस तरह कठिनाइयों ने जीवन के आरंभ में ही उनके लिए एक बड़ी चुनौती पेश कर दी। भरत जी बचपन से ही प्रतिभा संपन्न थे और उनके भीतर का कवि छोटी आयु से ही प्रकट होने लगा था। भरतजी ने पहले दर्जे से लेकर हाई स्कूल तक की शिक्षा चूरू में ही प्राप्त की और चूरू के लक्ष्मीनारायण बागला हाईस्कूल से हाई स्कूल परीक्षा पास करने के बाद उन्होंने आगे की पढ़ाई के लिए [[बीकानेर]] के डूंगर कॉलेज में प्रवेश लिया। स्कूल समय में ही वे तुकबंदी करने लगे थे और फ़िल्मी गीतों की पैरोडी में भी उन्होंने दक्षता हासिल कर ली। मजबूत कद-काठी के धनी भरत व्यास डूंगर कॉलेज बीकानेर में अध्ययन के दौरान वॉलीबाल टीम के कप्तान भी रहे।<ref name="kavitakosh">{{cite web |url=http://www.kavitakosh.org/kk/%E0%A4%AD%E0%A4%B0%E0%A4%A4_%E0%A4%B5%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%B8_/_%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%9A%E0%A4%AF#.URIIOh0X43u |title=भरत व्यास / परिचय |accessmonthday=6 फ़रवरी |accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=कविताकोश |language=हिंदी }}</ref>
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====आरंभिक जीवन====
====आरंभिक जीवन====
बीकानेर से कॉमर्स विषय में इंटर करने के बाद नौकरी की तलाश में [[कलकत्ता]] पहंचे लेकिन उनके भाग्य में शायद कुछ और ही लिखा था। इस दौरान उन्होंने [[रंगमंच]] अभिनय में भी हाथ आजमाया और अच्छे [[अभिनेता]] बन गए। अभिनेता-गीतकार भरत व्यास ने शायद यह तय कर लिया था कि आखिर एक दिन वे अपनी प्रतिभा का लौहा मनवाकर रहेंगे। चूरू में वे लगातार रंगमंच पर सक्रिय थे और एक अच्छे रंगकर्मी के रूप में उनकी पहचान भी बनी लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर पहली कामयाबी उन्हें तब मिली, जब कलकत्ता के प्राचीन अल्फ्रेड थिएटर से उनका नाटक ‘रंगीला मारवाड़’ प्रदर्शित हुआ। इस सफलता से भरत जी को काफ़ी प्रसिद्धि मिली और यहीं से उनके कामयाब जीवन की शुरुआत हुई। इस नाटक के बाद उन्होंने ‘रामू चनणा’ एवं ‘ढोला मरवण’ के भी जोरदार शो किए। ये नाटक स्वयं भरतजी ने ही लिखे थे। कलकत्ता में ही प्रदशित नाटक ‘मोरध्वज’ में भरत जी ने मोरध्वज की शानदार भूमिका निभाई। दूसरे विश्वयुद्ध के समय भरत व्यास कलकत्ता से लौटे और कुछ समय [[बीकानेर]] में रहे। बाद में एक दोस्त के जरिए वे अपनी किस्मत चमकाने सपनों की नगरी [[मुंबई]] पहुंच गए, जहां उन्हें अपने गीतों के जरिए इतिहास बनाना था।<ref name="kavitakosh"/>
[[बीकानेर]] से कॉमर्स विषय में इंटर करने के बाद नौकरी की तलाश में [[कलकत्ता]] पहंचे लेकिन उनके भाग्य में शायद कुछ और ही लिखा था। इस दौरान उन्होंने [[रंगमंच]] अभिनय में भी हाथ आजमाया और अच्छे [[अभिनेता]] बन गए। अभिनेता-गीतकार भरत व्यास ने शायद यह तय कर लिया था कि आखिर एक दिन वे अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाकर रहेंगे। चूरू में वे लगातार रंगमंच पर सक्रिय थे और एक अच्छे रंगकर्मी के रूप में उनकी पहचान भी बनी लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर पहली कामयाबी उन्हें तब मिली, जब कलकत्ता के प्राचीन अल्फ्रेड थिएटर से उनका नाटक ‘रंगीला मारवाड़’ प्रदर्शित हुआ। इस सफलता से भरत जी को काफ़ी प्रसिद्धि मिली और यहीं से उनके कामयाब जीवन की शुरुआत हुई। इस [[नाटक]] के बाद उन्होंने ‘रामू चनणा’ एवं ‘ढोला मरवण’ के भी जोरदार शो किए। ये नाटक स्वयं भरतजी ने ही लिखे थे। कलकत्ता में ही प्रदशित नाटक ‘मोरध्वज’ में भरत जी ने मोरध्वज की शानदार भूमिका निभाई। दूसरे विश्वयुद्ध के समय भरत व्यास कलकत्ता से लौटे और कुछ समय [[बीकानेर]] में रहे। बाद में एक दोस्त के जरिए वे अपनी किस्मत चमकाने सपनों की नगरी [[मुंबई]] पहुंच गए, जहां उन्हें अपने गीतों के जरिए इतिहास बनाना था।<ref name="kavitakosh"/>
==फ़िल्म जगत् में पदार्पण==
==फ़िल्म जगत् में पदार्पण==
फ़िल्म निर्देशक और अनुज बी. एम. व्यास ने भरतजी को फ़िल्मी दुनिया में ब्रेक दिया। फ़िल्म ‘दुहाई’ के लिए उन्होंने भरतजी का पहला गीत ख़रीदा और दस रुपए बतौर पारिश्रमिक दिए। भरत जी ने इस अवसर का खूब फायदा उठाया और एक से बढ़कर एक गीत लिखते गए। सफलता उनके कदम चूमती गई और वे फ़िल्मी दुनिया के ख्यातनाम गीतकार बन गए। ‘आधा है चंद्रमा, रात आधी..’ ‘जरा सामने तो आओ छलिये’, ‘ऐ मालिक तेरे बंद­ हम’, ‘जा तोसे नहीं बोलूं, घूंघट नहीं खोलूं’, ‘चाहे पास हो चाहे दूर हो’, ‘तू छुपी है कहां, मैं तड़पता यहां’, ‘जोत से जोत जलाते चलो’, ‘कहा भी न जाए, चुप रहा भी न जाए’ जैसे भरतजी की कलम से निकले जाने कितने ही गीत है जो आज बरसों बीत जाने के बाद भी उतने ही ताजा हैं और सुनने वाले को तरोताजा कर देते हैं।
फ़िल्म निर्देशक और अनुज बी. एम. व्यास ने भरतजी को फ़िल्मी दुनिया में ब्रेक दिया। फ़िल्म ‘दुहाई’ के लिए उन्होंने भरतजी का पहला गीत ख़रीदा और दस रुपए बतौर पारिश्रमिक दिए। भरत जी ने इस अवसर का खूब फायदा उठाया और एक से बढ़कर एक गीत लिखते गए। सफलता उनके कदम चूमती गई और वे फ़िल्मी दुनिया के ख्यातनाम गीतकार बन गए। ‘आधा है चंद्रमा, रात आधी..’ ‘जरा सामने तो आओ छलिये’, ‘ऐ मालिक तेरे बंद­ हम’, ‘जा तोसे नहीं बोलूं, घूंघट नहीं खोलूं’, ‘चाहे पास हो चाहे दूर हो’, ‘तू छुपी है कहां, मैं तड़पता यहां’, ‘जोत से जोत जलाते चलो’, ‘कहा भी न जाए, चुप रहा भी न जाए’ जैसे भरतजी की कलम से निकले जाने कितने ही गीत है जो आज बरसों बीत जाने के बाद भी उतने ही ताजा हैं और सुनने वाले को तरोताजा कर देते हैं।
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==प्रसिद्धि और लोकप्रियता==
==प्रसिद्धि और लोकप्रियता==
भरत व्यास ने अपने गीतों में मानवीय संवेदना, विरह-वेदना, संयोग-वियोग, भक्ति व दर्शन का ही समावेश ही नहीं किया, बल्कि उनके गीतों में सुरम्यता और भाषा शैली का भी जोरदार समावेश था। उनकी प्रसिद्धि की वजह से बड़े-बड़े निर्माताओं की फ़िल्मों में­ गीत लिखने का अवसर उन्हें मिला। भरत व्यास के लिखे अधिकांश गीतों को [[मुकेश]] व [[लता मंगेशकर]] की आवाज़ का सौभाग्य प्राप्त हुआ। एक समय तो [[वी. शांताराम]] का निर्माण- निर्देशन और पंडित भरत व्यास के गीत एक दूसरे के पर्याय बन गए थे एवं सफलता की गारंटी भी। वैसे भरत व्यास ने [[लक्ष्मीकांत]] - प्यारेलाल, कल्याण जी - आनन्द जी, बसंत देसाई, [[आर डी बर्मन]], [[सी. रामचन्द्र]] जैसे दिग्गज संगीतकारों के लिए भी गीत रचना की, लेकिन उनकी जबर्दस्त हिट जोड़ी एस. एन. त्रिपाठी साहब से बनी। बहुआयामी प्रतिभा के धनी भरत व्यास ने न केवल अपने गीतों में देशभक्ति, राष्ट्रीय एकता और बलिदान का संदेश दिया, बल्कि प्रेम से परिपूरित भावनाओं के भी गीत भी लिखे। 'नवरंग', 'सारंगा', 'गूंज उठी शहनाई', 'रानी रूपमती', 'बेदर्द जमाना क्या जाने', 'प्यार की प्यास', 'स्त्री', 'परिणीता' आदि ऐसी कई प्रसिद्ध फ़िल्में­ हैं, जिनमें उनकी कलम ने प्रेम भावनाओं से ओत-प्रोत गीत लिखे।<ref name="kavitakosh"/>
भरत व्यास ने अपने गीतों में मानवीय संवेदना, विरह-वेदना, संयोग-वियोग, भक्ति व दर्शन का ही समावेश ही नहीं किया, बल्कि उनके गीतों में सुरम्यता और भाषा शैली का भी जोरदार समावेश था। उनकी प्रसिद्धि की वजह से बड़े-बड़े निर्माताओं की फ़िल्मों में­ गीत लिखने का अवसर उन्हें मिला। भरत व्यास के लिखे अधिकांश गीतों को [[मुकेश]] व [[लता मंगेशकर]] की आवाज़ का सौभाग्य प्राप्त हुआ। एक समय तो [[वी. शांताराम]] का निर्माण- निर्देशन और पंडित भरत व्यास के गीत एक दूसरे के पर्याय बन गए थे एवं सफलता की गारंटी भी। वैसे भरत व्यास ने [[लक्ष्मीकांत]] - प्यारेलाल, कल्याण जी - आनन्द जी, बसंत देसाई, [[आर डी बर्मन]], [[सी. रामचन्द्र]] जैसे दिग्गज संगीतकारों के लिए भी गीत रचना की, लेकिन उनकी जबर्दस्त हिट जोड़ी एस. एन. त्रिपाठी साहब से बनी। बहुआयामी प्रतिभा के धनी भरत व्यास ने न केवल अपने गीतों में देशभक्ति, राष्ट्रीय एकता और बलिदान का संदेश दिया, बल्कि प्रेम से परिपूरित भावनाओं के भी गीत भी लिखे। 'नवरंग', 'सारंगा', 'गूंज उठी शहनाई', 'रानी रूपमती', 'बेदर्द जमाना क्या जाने', 'प्यार की प्यास', 'स्त्री', 'परिणीता' आदि ऐसी कई प्रसिद्ध फ़िल्में­ हैं, जिनमें उनकी कलम ने प्रेम भावनाओं से ओत-प्रोत गीत लिखे।<ref name="kavitakosh"/>
==निधन==
==निधन==
पं. भरत व्यास का निधन [[4 जुलाई]] [[1982]] को हुआ। भले ही भरत व्यास आज हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनके लिखे गीत आज भी चारों ओर गूँज रहे हैं। उनके गीतों के रस में डूबने को उतावला मन 'रानी रूपमती' फ़िल्म के लिए भरत व्यास के लिखे इस गीत की तर्ज पर बस यही गुनगुनाता है- ‘आ लौट के आजा मेरे मीत, तुझे मेरे गीत बुलाते हैं...’
पं. भरत व्यास का निधन [[4 जुलाई]] [[1982]] को हुआ। भले ही भरत व्यास आज हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनके लिखे गीत आज भी चारों ओर गूँज रहे हैं। उनके गीतों के रस में डूबने को उतावला मन 'रानी रूपमती' फ़िल्म के लिए भरत व्यास के लिखे इस गीत की तर्ज पर बस यही गुनगुनाता है- ‘आ लौट के आजा मेरे मीत, तुझे मेरे गीत बुलाते हैं...’
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Latest revision as of 05:10, 4 February 2021

भरत व्यास
पूरा नाम पंडित भरत व्यास
जन्म 6 जनवरी, 1918
जन्म भूमि बीकानेर, राजस्थान
मृत्यु 4 जुलाई 1982
मृत्यु स्थान मुम्बई, महाराष्ट्र
कर्म भूमि मुम्बई
कर्म-क्षेत्र गीतकार, नाटककार
मुख्य फ़िल्में दो आँखे बारह हाथ, नवरंग, बूँद जो बन गई मोती, ’गूंज उठी शहनाई‘, ’रानी रूपमती‘, ’बेदर्द जमाना क्या जाने‘, ’प्यार की प्यास‘ आदि।
नागरिकता भारतीय
प्रसिद्ध गीत आधा है चंद्रमा, रात आधी, (नवरंग), ऐ मालिक तेरे बंदे हम (दो आँखें बारह हाथ), जोत से जोत जलाते चलो (संत ज्ञानेश्वर)
अन्य जानकारी बहुआयामी प्रतिभा के धनी भरत व्यास ने न केवल अपने गीतों में देशभक्ति, राष्ट्रीय एकता और बलिदान का संदेश दिया, बल्कि प्रेम से परिपूरित भावनाओं के भी गीत भी लिखे।

भरत व्यास (अंग्रेज़ी: Bharat Vyas, जन्म: 6 जनवरी 1918 - मृत्यु: 4 जुलाई 1982) हिन्दी फ़िल्मों के प्रसिद्ध गीतकार थे। इनका जन्म 6 जनवरी 1918 को बीकानेर में हुआ था जाति से पुष्करणा ब्राह्मण थे। मूल रूप से चूरू के थे। बचपन से ही इनमें कवि प्रतिभा दिखने लगी थी। उन्होंने 17-18 वर्ष की उम्र तक लेखन शुरू कर दिया था। चूरू से मैट्रिक करने के बाद वे कलकत्ता चले गए। उनका लिखा पहला गीत था- आओ वीरो हिलमिल गाए वंदे मातरम। उनके द्वारा रामू चन्ना नामक नाटक भी लिखा गया। 1942 के बाद वे बम्बई आ गए उन्होंने कुछ फ़िल्मों में भी भूमिका निभाई लेकिन प्रसिद्धि गीत लेखन से मिली। उन्होंने दो आँखे बारह हाथ, नवरंग, बूँद जो बन गई मोती जैसी फ़िल्मों में गीत लिखे हैं।

जीवन परिचय

चूरू के पुष्करणा ब्राह्मण परिवार में विक्रम संवत 1974 में मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की अष्टमी को जन्मे भरत व्यास जब दो वर्ष के थे, तभी उनके पिता का निधन हो गया और इस तरह कठिनाइयों ने जीवन के आरंभ में ही उनके लिए एक बड़ी चुनौती पेश कर दी। भरत जी बचपन से ही प्रतिभा संपन्न थे और उनके भीतर का कवि छोटी आयु से ही प्रकट होने लगा था। भरतजी ने पहले दर्जे से लेकर हाई स्कूल तक की शिक्षा चूरू में ही प्राप्त की और चूरू के लक्ष्मीनारायण बागला हाईस्कूल से हाई स्कूल परीक्षा पास करने के बाद उन्होंने आगे की पढ़ाई के लिए बीकानेर के डूंगर कॉलेज में प्रवेश लिया। स्कूल समय में ही वे तुकबंदी करने लगे थे और फ़िल्मी गीतों की पैरोडी में भी उन्होंने दक्षता हासिल कर ली। मजबूत कद-काठी के धनी भरत व्यास डूंगर कॉलेज बीकानेर में अध्ययन के दौरान वॉलीबाल टीम के कप्तान भी रहे।[1]

आरंभिक जीवन

बीकानेर से कॉमर्स विषय में इंटर करने के बाद नौकरी की तलाश में कलकत्ता पहंचे लेकिन उनके भाग्य में शायद कुछ और ही लिखा था। इस दौरान उन्होंने रंगमंच अभिनय में भी हाथ आजमाया और अच्छे अभिनेता बन गए। अभिनेता-गीतकार भरत व्यास ने शायद यह तय कर लिया था कि आखिर एक दिन वे अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाकर रहेंगे। चूरू में वे लगातार रंगमंच पर सक्रिय थे और एक अच्छे रंगकर्मी के रूप में उनकी पहचान भी बनी लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर पहली कामयाबी उन्हें तब मिली, जब कलकत्ता के प्राचीन अल्फ्रेड थिएटर से उनका नाटक ‘रंगीला मारवाड़’ प्रदर्शित हुआ। इस सफलता से भरत जी को काफ़ी प्रसिद्धि मिली और यहीं से उनके कामयाब जीवन की शुरुआत हुई। इस नाटक के बाद उन्होंने ‘रामू चनणा’ एवं ‘ढोला मरवण’ के भी जोरदार शो किए। ये नाटक स्वयं भरतजी ने ही लिखे थे। कलकत्ता में ही प्रदशित नाटक ‘मोरध्वज’ में भरत जी ने मोरध्वज की शानदार भूमिका निभाई। दूसरे विश्वयुद्ध के समय भरत व्यास कलकत्ता से लौटे और कुछ समय बीकानेर में रहे। बाद में एक दोस्त के जरिए वे अपनी किस्मत चमकाने सपनों की नगरी मुंबई पहुंच गए, जहां उन्हें अपने गीतों के जरिए इतिहास बनाना था।[1]

फ़िल्म जगत् में पदार्पण

फ़िल्म निर्देशक और अनुज बी. एम. व्यास ने भरतजी को फ़िल्मी दुनिया में ब्रेक दिया। फ़िल्म ‘दुहाई’ के लिए उन्होंने भरतजी का पहला गीत ख़रीदा और दस रुपए बतौर पारिश्रमिक दिए। भरत जी ने इस अवसर का खूब फायदा उठाया और एक से बढ़कर एक गीत लिखते गए। सफलता उनके कदम चूमती गई और वे फ़िल्मी दुनिया के ख्यातनाम गीतकार बन गए। ‘आधा है चंद्रमा, रात आधी..’ ‘जरा सामने तो आओ छलिये’, ‘ऐ मालिक तेरे बंद­ हम’, ‘जा तोसे नहीं बोलूं, घूंघट नहीं खोलूं’, ‘चाहे पास हो चाहे दूर हो’, ‘तू छुपी है कहां, मैं तड़पता यहां’, ‘जोत से जोत जलाते चलो’, ‘कहा भी न जाए, चुप रहा भी न जाए’ जैसे भरतजी की कलम से निकले जाने कितने ही गीत है जो आज बरसों बीत जाने के बाद भी उतने ही ताजा हैं और सुनने वाले को तरोताजा कर देते हैं।

प्रमुख गीत

फ़िल्मी दुनिया का मायावी संसार और तदानुकूल गीत। भरतजी व्यास का सफर भी यही रहा लेकिन उनकी लेखनी में एक ख़ास बात थी तो वह थी हिन्दी प्रेम। फ़िल्मी दुनिया में उस वक्त हिंदी प्रयोग के प्रति संघर्ष का दौर था। हिन्दी शब्दों का प्रयोग गीतों में अधिकाधिक हो, समकालीन गीतकार इसी दिशा में रत थे। भरतजी के आगमन से इस आंदोलन को और मुखरता मिली और भरतजी इस आंदोलन के अगुवा हो गये। श्री मदनचंद कोठीवाल के अनुसार भरतजी ने बहुत कम गीत फ़िल्मों की मांग के अनुरूप लिखे। परिस्थितियों से कवि मन में भाव उत्पन्न हुए और गीत के रूप में काग़ज़ पर उतरे तथा समय पाकर वे फ़िल्मों में समाविष्ट होते चले गये। उन्होंने फूहड़ता और अश्लीलता का कभी साथ नहीं दिया और जहां तक हुआ इसका विरोध किया। भरत व्यास के अनेक गीत हिट रहे। कुछ हिट हिन्दी गीत तो आज भी लोकजुबान पर हैं।[2]

भरत व्यास के प्रसिद्ध गीत[2]
गीत फ़िल्म
आधा है चंद्रमा, रात आधी नवरंग
जरा सामने तो आओ छलिये जनम-जनम के फेरे
ऐ मालिक तेरे बंदे हम दो आँखें बारह हाथ
जा तोसे नहीं बोलूं, घूंघट नहीं खोलूं सम्राट चंद्रगुप्त
तुम छुपी हो कहां, मैं तड़पता यहां नवरंग
जोत से जोत जलाते चलो संत ज्ञानेश्वर
कहा भी न जाए, चुप रहा भी न जाए बदर्द जमाना क्या जाने
निर्बल की लड़ाई बलवान की, यह कहानी तूफान और दीया (सन् 1956 का सर्वश्रेष्ठ गीत)
आ लौट के आजा मेरे मीत रानी रूपमति
चली राधे रानी भर अंखियों में पानी अपने परिणिता
चाहे पास हो, चाहे दूर हो सम्राट चंद्रगुप्त
ओ चांद ना इतराना मन की जीत

प्रसिद्धि और लोकप्रियता

भरत व्यास ने अपने गीतों में मानवीय संवेदना, विरह-वेदना, संयोग-वियोग, भक्ति व दर्शन का ही समावेश ही नहीं किया, बल्कि उनके गीतों में सुरम्यता और भाषा शैली का भी जोरदार समावेश था। उनकी प्रसिद्धि की वजह से बड़े-बड़े निर्माताओं की फ़िल्मों में­ गीत लिखने का अवसर उन्हें मिला। भरत व्यास के लिखे अधिकांश गीतों को मुकेशलता मंगेशकर की आवाज़ का सौभाग्य प्राप्त हुआ। एक समय तो वी. शांताराम का निर्माण- निर्देशन और पंडित भरत व्यास के गीत एक दूसरे के पर्याय बन गए थे एवं सफलता की गारंटी भी। वैसे भरत व्यास ने लक्ष्मीकांत - प्यारेलाल, कल्याण जी - आनन्द जी, बसंत देसाई, आर डी बर्मन, सी. रामचन्द्र जैसे दिग्गज संगीतकारों के लिए भी गीत रचना की, लेकिन उनकी जबर्दस्त हिट जोड़ी एस. एन. त्रिपाठी साहब से बनी। बहुआयामी प्रतिभा के धनी भरत व्यास ने न केवल अपने गीतों में देशभक्ति, राष्ट्रीय एकता और बलिदान का संदेश दिया, बल्कि प्रेम से परिपूरित भावनाओं के भी गीत भी लिखे। 'नवरंग', 'सारंगा', 'गूंज उठी शहनाई', 'रानी रूपमती', 'बेदर्द जमाना क्या जाने', 'प्यार की प्यास', 'स्त्री', 'परिणीता' आदि ऐसी कई प्रसिद्ध फ़िल्में­ हैं, जिनमें उनकी कलम ने प्रेम भावनाओं से ओत-प्रोत गीत लिखे।[1]

निधन

पं. भरत व्यास का निधन 4 जुलाई 1982 को हुआ। भले ही भरत व्यास आज हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनके लिखे गीत आज भी चारों ओर गूँज रहे हैं। उनके गीतों के रस में डूबने को उतावला मन 'रानी रूपमती' फ़िल्म के लिए भरत व्यास के लिखे इस गीत की तर्ज पर बस यही गुनगुनाता है- ‘आ लौट के आजा मेरे मीत, तुझे मेरे गीत बुलाते हैं...’


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 भरत व्यास / परिचय (हिंदी) (एच.टी.एम.एल) कविताकोश। अभिगमन तिथि: 6 फ़रवरी, 2013।
  2. 2.0 2.1 सिने जगत् के गीत-संगीत में भगत व्यास का योगदान (हिंदी) पं. भरत व्यास। अभिगमन तिथि: 6 फ़रवरी, 2013।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख