वसन्त देसाई: Difference between revisions
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|अन्य जानकारी=वर्ष [[1943]] में [[वी. शांताराम]] अपनी फ़िल्म "शकुंतला" के लिए संगीतकार की तलाश कर रहे थे। वी. शांताराम ने फ़िल्म के संगीत के लिए वसन्त देसाई को चुना। इस फ़िल्म ने सफलता के नए कीर्तिमान स्थापित किए। | |अन्य जानकारी=वर्ष [[1943]] में [[वी. शांताराम]] अपनी फ़िल्म "शकुंतला" के लिए संगीतकार की तलाश कर रहे थे। वी. शांताराम ने फ़िल्म के [[संगीत]] के लिए वसन्त देसाई को चुना। इस फ़िल्म ने सफलता के नए कीर्तिमान स्थापित किए। | ||
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'''वसन्त देसाई''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Vasant Desai'', जन्म- [[9 जून]], [[1912]], [[गोवा]]; मृत्यु- [[22 दिसम्बर]], [[1975]], [[मुम्बई]]) [[भारतीय सिनेमा]] जगत के प्रसिद्ध संगीतकार थे। संगीत लहरियों से फ़िल्मी दुनिया को सजाने, संवारने वाले | '''वसन्त देसाई''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Vasant Desai'', जन्म- [[9 जून]], [[1912]], [[गोवा]]; मृत्यु- [[22 दिसम्बर]], [[1975]], [[मुम्बई]]) [[भारतीय सिनेमा]] जगत के प्रसिद्ध संगीतकार थे। संगीत लहरियों से फ़िल्मी दुनिया को सजाने, संवारने वाले महान् संगीतकार वसन्त देसाई के संगीतबद्ध गीतों की रोशनी फ़िल्म जगत की सतरंगी दुनिया को हमेशा रोशन करती रही है। फ़िल्म 'दो आँखें बारह हाथ' का प्रसिद्ध गीत 'ऐ मालिक तेरे बंदे हम' वसन्त देसाई द्वारा ही संगीतबद्ध किया गया था। यह गीत आज भी श्रोताओं द्वारा पूरे मन से सुना जाता है। इस गीत को पंजाब सरकार ने सभी विद्यालयों में प्रात:कालीन प्रार्थना सभा में शामिल कर लिया था। | ||
==जन्म== | ==जन्म== | ||
वसन्त देसाई का जन्म 9 जून, सन 1912 को [[गोवा]] के कुदाल नामक स्थान पर हुआ था। उनको बचपन के दिनों से ही [[संगीत]] के प्रति रूचि थी। वर्ष [[1929]] में बसंत देसाई [[महाराष्ट्र]] से [[कोल्हापुर]] आ गए थे।<ref name="a">{{cite web |url= http://www.jantv.in/newsdisplay.php?newsid=67287|title=बैकग्राउंड म्यूजिक के महारथी |accessmonthday= 24 जनवरी|accessyear=2017 |last= |first= |authorlink= |format=jantv.in |publisher= |language=हिंदी }}</ref> | वसन्त देसाई का जन्म 9 जून, सन 1912 को [[गोवा]] के कुदाल नामक स्थान पर हुआ था। उनको बचपन के दिनों से ही [[संगीत]] के प्रति रूचि थी। वर्ष [[1929]] में बसंत देसाई [[महाराष्ट्र]] से [[कोल्हापुर]] आ गए थे।<ref name="a">{{cite web |url= http://www.jantv.in/newsdisplay.php?newsid=67287|title=बैकग्राउंड म्यूजिक के महारथी -वसंत देसाई|accessmonthday= 24 जनवरी|accessyear=2017 |last= |first= |authorlink= |format=jantv.in |publisher= |language=हिंदी }}</ref> | ||
==फ़िल्मी शुरुआत== | ==फ़िल्मी शुरुआत== | ||
वर्ष [[1930]] में उन्हें 'प्रभात फ़िल्म्स' की मूक फ़िल्म "खूनी खंजर" में अभिनय करने का मौका मिला। [[1932]] में वसन्त को "अयोध्या का राजा" में संगीतकार गोविंद राव टेंडे के सहायक के तौर पर काम करने का मौका मिला। इन सबके साथ ही उन्होंने इस फ़िल्म में एक गाना "जय जय राजाधिराज" भी गाया। इस बीच वसन्त फ़िल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने के लिए संघर्ष करते रहे। वर्ष [[1934]] में प्रदर्शित फ़िल्म "अमृत मंथन" में गाया उनका यह गीत "बरसन लगी" श्रोताओं के बीच काफ़ी लोकप्रिय हुआ। | वर्ष [[1930]] में उन्हें 'प्रभात फ़िल्म्स' की मूक फ़िल्म "खूनी खंजर" में अभिनय करने का मौका मिला। [[1932]] में वसन्त को "अयोध्या का राजा" में संगीतकार गोविंद राव टेंडे के सहायक के तौर पर काम करने का मौका मिला। इन सबके साथ ही उन्होंने इस फ़िल्म में एक गाना "जय जय राजाधिराज" भी गाया। इस बीच वसन्त फ़िल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने के लिए संघर्ष करते रहे। वर्ष [[1934]] में प्रदर्शित फ़िल्म "अमृत मंथन" में गाया उनका यह गीत "बरसन लगी" श्रोताओं के बीच काफ़ी लोकप्रिय हुआ। | ||
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इस बीच वसन्त को यह महसूस हुआ कि पार्श्वगायन के बजाए संगीतकार के रूप में उनका भविष्य ज्यादा सुरक्षित रहेगा। इसके बाद उन्होंने उस्ताद आलम ख़ान और उस्ताद इनायत ख़ान से [[संगीत]] की शिक्षा लेनी शुरू कर दी। लगभग चार वर्ष तक वसन्त [[मराठी भाषा|मराठी]] [[नाटक|नाटकों]] में भी [[संगीत]] देते रहे। वर्ष [[1942]] में प्रदर्शित फ़िल्म "शोभा" के जरिए बतौर संगीतकार वसन्त देसाई ने अपने सिने कॅरियर की शुरूआत की, लेकिन फ़िल्म की असफलता से वह बतौर संगीतकार अपनी पहचान नहीं बना सके। वर्ष [[1943]] में [[वी. शांताराम]] अपनी "शकुंतला" के लिए संगीतकार की तलाश कर रहे थे। वी. शांताराम ने फ़िल्म के संगीत के लिए वसन्त को चुना। इस फ़िल्म ने सफलता के नए कीर्तिमान स्थापित किए। इसके बाद वसन्त संगीतकार के रूप में अपनी पहचान बनाने में सफल हो गए।<ref name="a"/> | इस बीच वसन्त को यह महसूस हुआ कि पार्श्वगायन के बजाए संगीतकार के रूप में उनका भविष्य ज्यादा सुरक्षित रहेगा। इसके बाद उन्होंने उस्ताद आलम ख़ान और उस्ताद इनायत ख़ान से [[संगीत]] की शिक्षा लेनी शुरू कर दी। लगभग चार वर्ष तक वसन्त [[मराठी भाषा|मराठी]] [[नाटक|नाटकों]] में भी [[संगीत]] देते रहे। वर्ष [[1942]] में प्रदर्शित फ़िल्म "शोभा" के जरिए बतौर संगीतकार वसन्त देसाई ने अपने सिने कॅरियर की शुरूआत की, लेकिन फ़िल्म की असफलता से वह बतौर संगीतकार अपनी पहचान नहीं बना सके। वर्ष [[1943]] में [[वी. शांताराम]] अपनी "शकुंतला" के लिए संगीतकार की तलाश कर रहे थे। वी. शांताराम ने फ़िल्म के संगीत के लिए वसन्त को चुना। इस फ़िल्म ने सफलता के नए कीर्तिमान स्थापित किए। इसके बाद वसन्त संगीतकार के रूप में अपनी पहचान बनाने में सफल हो गए।<ref name="a"/> | ||
==गीत 'ऐ मालिक तेरे बंदे हम'== | ==गीत 'ऐ मालिक तेरे बंदे हम'== | ||
वर्ष [[1957]] में वसन्त देसाई के संगीत निर्देशन में "दो | वर्ष [[1957]] में वसन्त देसाई के संगीत निर्देशन में "दो आँखें बारह हाथ" का गीत '''ऐ मालिक तेरे बंदे हम''' आज भी श्रोताओं के बीच काफ़ी लोकप्रिय है। इस गीत की लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पंजाब सरकार ने इस गीत को सभी विद्यालयों में प्रात:कालीन प्रार्थना सभा में शामिल कर लिया। वर्ष [[1964]] में प्रदर्शित फ़िल्म "यादें" वसन्त देसाई के कॅरियर की अहम फ़िल्म साबित हुई। इस फ़िल्म में वसन्त को यह जिम्मेदारी दी गई थी कि फ़िल्म के पात्र के निजी जिंदगी के संस्मरणों को बैकग्रांउड स्कोर के माध्यम से पेश करना। वसन्त ने इस बात को एक चुनौती के रूप में लिया और सर्वश्रेष्ठ बैकग्राउंड संगीत देकर फ़िल्म को अमर बना दिया। | ||
इसी तरह वर्ष [[1974]] में फ़िल्म निर्माता [[गुलज़ार]] बिना किसी गानों के फ़िल्म "अचानक" का निर्माण कर रहे थे और वसन्त देसाई से बैकग्राउंड म्यूजिक देने की पेशकश की और इस बार भी वसन्त कसौटी पर खरे उतरे और फ़िल्म के लिये श्रेष्ठ पार्श्व संगीत दिया। वसन्त ने [[हिन्दी]] फ़िल्मों के अलावा लगभग 20 मराठी फ़िल्मों के लिए भी संगीत दिया, जिसमें सभी फ़िल्में सुपरहिट साबित हुई। | इसी तरह वर्ष [[1974]] में फ़िल्म निर्माता [[गुलज़ार]] बिना किसी गानों के फ़िल्म "अचानक" का निर्माण कर रहे थे और वसन्त देसाई से बैकग्राउंड म्यूजिक देने की पेशकश की और इस बार भी वसन्त कसौटी पर खरे उतरे और फ़िल्म के लिये श्रेष्ठ पार्श्व संगीत दिया। वसन्त ने [[हिन्दी]] फ़िल्मों के अलावा लगभग 20 मराठी फ़िल्मों के लिए भी संगीत दिया, जिसमें सभी फ़िल्में सुपरहिट साबित हुई। | ||
==वी. शांताराम के प्रिय संगीतकार== | |||
वसन्त देसाई के बारे में सब जानते हैं कि वे [[वी. शांताराम]] के प्रिय संगीतकार थे। वी. शांताराम की फ़िल्में अपनी गुणवत्ता, निर्देशन, [[नृत्य]] और कलाकारों के साथ अपने मधुर गानों के लिये भी जानी जाती हैं। उनकी लगभग सभी फ़िल्मों में वसन्त देसाई ने [[संगीत]] दिया। वसन्त देसाई फ़िल्म 'खूनी खंजर' में अभिनय भी कर चुके थे और गाने भी गा चुके थे। बाद में वे संगीतकार गोविन्द राव टेम्बे (ताम्बे) के सहायक बने और कई फ़िल्मों में गोविन्द राव के साथ संगीत दिया। बाद में इनमें छिपी संगीत प्रतिभा को शांताराम जी ने पहचाना और अपनी फ़िल्मों में संगीत देने की जिम्मेदारी सौंपी और वसन्त देसाई ने इस काम को बखूबी निभाय़ा और [[राजकमल कला मंदिर|राजकमल]] की फ़िल्मों को अमर कर दिया। | |||
फ़िल्म 'जनक झनक पायल बाजे' के 'नैन सो नैन नाही मिलाओ....' गीत को वसन्त देसाई ने राग मालगुंजी में ढ़ाला था। इस फ़िल्म में [[लता मंगेशकर]] ने कई गीत गाये, उनमें से प्रमुख है- 'मेरे ए दिल बता', 'प्यार तूने किया पाई मैने सज़ा', 'सैंया जाओ जाओ तोसे नांही बोलूं', 'जो तुम तोड़ो पिया मैं नाहीं तोड़ूं' आदि थे। चूंकि यह फ़िल्म ही [[संगीत]]/[[नृत्य]] के विषय पर बनी है तो इसमें संगीत तो बढ़िया होना ही था। साथ ही इस फ़िल्म का विशेष आकर्षण थे, सुप्रसिद्ध नृत्यकार गोपीकृष्ण- जिन्होंने एक नायक के रूप में इस फ़िल्म में अभिनय भी किया है।<ref name="a">{{cite web |url=http://shrota.blogspot.in/2008/09/blog-post_24.html|title='नैन सो नैन नाही मिलाओ' -वसंत देसाई |accessmonthday= 24 जनवरी|accessyear=2017 |last= |first= |authorlink= |format=jantv.in |publisher= |language=हिंदी }}</ref> | |||
====प्रमुख फिल्में व गीत==== | |||
वसन्त देसाई ने 'दो आँखे बारह हाथ', 'तीन बत्ती चार रास्ता', 'डॉ. कोटनीस की अमर कहानी', 'सैरन्ध्री', 'तूफान और दिया' आदि कुल 45 फ़िल्मों में संगीत दिया। | |||
{| width="100%" class="bharattable-pink" | |||
|+वसंत देसाई द्वारा संगीतबद्ध गीत | |||
|- | |||
! क्र.सं. | |||
! गीत | |||
! गायक | |||
! संगीतकार | |||
! गीतकार | |||
! फ़िल्म | |||
! वर्ष | |||
! अभिनेता/अभिनेत्री | |||
|- | |||
|1. | |||
| ऐ मालिक तेरे बंदे हम | |||
| [[लता मंगेशकर]] | |||
| वसंत देसाई | |||
| [[भरत व्यास]] | |||
| दो आँखें बारह हाथ | |||
| [[1975]] | |||
|संध्या, [[वी. शांताराम]] | |||
|- | |||
|2. | |||
| नैन सो नैन नाहीं मिलाओ | |||
| लता मंगेशकर, [[हेमंत कुमार]] | |||
| वसंत देसाई | |||
| हजरत जयपुरी | |||
| झनक झनक पायल बाजे | |||
| [[1955]] | |||
| संध्या, गोपी कृष्णा | |||
|- | |||
|3. | |||
| निर्बल से लड़ाई बलवान की, ये कहानी है दिये की और तूफान की | |||
| [[मन्ना डे]] | |||
| वसंत देसाई | |||
| भरत व्यास | |||
|तूफान और दिया | |||
| [[1956]] | |||
| [[नंदा]], उल्हास, [[राजेंद्र कुमार]] | |||
|- | |||
|4. | |||
| टिम टिम टिम तारों के दीप जले | |||
| [[तलत महमूद]], [[लता मंगेशकर]] | |||
| वसंत देसाई | |||
| [[भरत व्यास]] | |||
| मौसी | |||
| [[1958]] | |||
| सुमती गुप्ते | |||
|- | |||
|5. | |||
| तेरे सुर और मेरे गीत, दोनों मिल कर बनेंगे गीत | |||
| [[लता मंगेशकर]] | |||
| वसंत देसाई | |||
| भरत व्यास | |||
| गूँज उठी शहनाई | |||
| [[1959]] | |||
| अनिता गुहा, अमीता, [[राजेंद्र कुमार]] | |||
|- | |||
|6. | |||
| सैंय्या झूठों का बड़ा शरताज निकला | |||
| [[लता मंगेशकर]] | |||
| वसंत देसाई | |||
| भरत व्यास | |||
| दो आँखें बारह हाथ | |||
| [[1957]] | |||
| संध्या, [[वी. शांताराम]] | |||
|- | |||
|7. | |||
| बिखर गये बचपन के सपने, कह दो कोई न करे यहाँ प्यार | |||
| [[मोहम्मद रफ़ी]] | |||
| बसंत देसाई | |||
| भरत व्यास | |||
| गूँज उठी शहनाई | |||
| [[1959]] | |||
| राजेंद्र कुमार, अमीता, अनिता गुहा | |||
|- | |||
|8. | |||
| ऐ मालिक तेरे बंदे हम (पुरुष स्वर) | |||
| [[वी. शांताराम]] | |||
| वसंत देसाई | |||
| [[भरत व्यास]] | |||
| दो आँखें बारह हाथ | |||
| [[1957]] | |||
| [[वी. शांताराम]] | |||
|- | |||
|9. | |||
| मैं गाऊँ तू चुप हो जा | |||
| [[लता मंगेशकर]] | |||
| वसंत देसाई | |||
| भरत व्यास | |||
| दो आँखें बारह हाथ | |||
| [[1957]] | |||
| - | |||
|- | |||
|10. | |||
| बोले रे पपीहरा, पपीहरा | |||
| वानी जयराम | |||
| वसंत देसाई | |||
| [[गुलज़ार]] | |||
| गुड्डी | |||
| [[1971]] | |||
| [[जया भादुड़ी]] | |||
|} | |||
==मृत्यु== | ==मृत्यु== | ||
[[22 दिसंबर]], [[1975]] को एच.एम.भी स्टूडियो से | [[22 दिसंबर]], [[1975]] को एच.एम.भी स्टूडियो से रिकॉर्डिंग पूरी करने के बाद वसन्त देसाई अपने घर पहुंचे। जैसे ही उन्होंने अपने अपार्टमेंट की लिफ्ट में कदम रखा, किसी तकनीकी खराबी के कारण लिफ्ट उन पर गिर पड़ी और उन्हें कुचल डाला, जिससे उनकी मौत हो गई।<ref name="a"/> | ||
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक= प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} | {{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक= प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} | ||
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<references/> | <references/> | ||
==बाहरी कड़ियाँ== | ==बाहरी कड़ियाँ== | ||
*[http://www.imdb.com/name/nm0220848/ Vasant Desai] | |||
*[https://books.google.co.in/books?id=AcP5HPRDgewC&pg=PA272&lpg=PA272&dq=%E0%A4%B5%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%A4+%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%88&source=bl&ots=4UIBAoNp_p&sig=_ZGc4T3O_EYjMJgiTz8JWMG-YsM&hl=hi&sa=X&ved=0ahUKEwjbuavzs8vRAhXFWhoKHZDmDU4Q6AEIMDAD#v=onepage&q=%E0%A4%B5%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%A4%20%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%88&f=false वसन्त देसाई] | *[https://books.google.co.in/books?id=AcP5HPRDgewC&pg=PA272&lpg=PA272&dq=%E0%A4%B5%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%A4+%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%88&source=bl&ots=4UIBAoNp_p&sig=_ZGc4T3O_EYjMJgiTz8JWMG-YsM&hl=hi&sa=X&ved=0ahUKEwjbuavzs8vRAhXFWhoKHZDmDU4Q6AEIMDAD#v=onepage&q=%E0%A4%B5%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%A4%20%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%88&f=false वसन्त देसाई] | ||
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Latest revision as of 05:26, 4 February 2021
वसन्त देसाई
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पूरा नाम | वसन्त देसाई |
जन्म | 9 जून, 1912 |
जन्म भूमि | कुदाल, गोवा |
मृत्यु | 22 दिसम्बर, 1975 |
मृत्यु स्थान | मुम्बई, महाराष्ट्र |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | भारतीय सिनेमा |
मुख्य फ़िल्में | 'दो आँखे बारह हाथ', 'तीन बत्ती चार रास्ता', 'डॉ. कोटनीस की अमर कहानी', 'सैरन्ध्री', 'तूफान और दिया' आदि। |
प्रसिद्धि | संगीतकार |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | वर्ष 1943 में वी. शांताराम अपनी फ़िल्म "शकुंतला" के लिए संगीतकार की तलाश कर रहे थे। वी. शांताराम ने फ़िल्म के संगीत के लिए वसन्त देसाई को चुना। इस फ़िल्म ने सफलता के नए कीर्तिमान स्थापित किए। |
वसन्त देसाई (अंग्रेज़ी: Vasant Desai, जन्म- 9 जून, 1912, गोवा; मृत्यु- 22 दिसम्बर, 1975, मुम्बई) भारतीय सिनेमा जगत के प्रसिद्ध संगीतकार थे। संगीत लहरियों से फ़िल्मी दुनिया को सजाने, संवारने वाले महान् संगीतकार वसन्त देसाई के संगीतबद्ध गीतों की रोशनी फ़िल्म जगत की सतरंगी दुनिया को हमेशा रोशन करती रही है। फ़िल्म 'दो आँखें बारह हाथ' का प्रसिद्ध गीत 'ऐ मालिक तेरे बंदे हम' वसन्त देसाई द्वारा ही संगीतबद्ध किया गया था। यह गीत आज भी श्रोताओं द्वारा पूरे मन से सुना जाता है। इस गीत को पंजाब सरकार ने सभी विद्यालयों में प्रात:कालीन प्रार्थना सभा में शामिल कर लिया था।
जन्म
वसन्त देसाई का जन्म 9 जून, सन 1912 को गोवा के कुदाल नामक स्थान पर हुआ था। उनको बचपन के दिनों से ही संगीत के प्रति रूचि थी। वर्ष 1929 में बसंत देसाई महाराष्ट्र से कोल्हापुर आ गए थे।[1]
फ़िल्मी शुरुआत
वर्ष 1930 में उन्हें 'प्रभात फ़िल्म्स' की मूक फ़िल्म "खूनी खंजर" में अभिनय करने का मौका मिला। 1932 में वसन्त को "अयोध्या का राजा" में संगीतकार गोविंद राव टेंडे के सहायक के तौर पर काम करने का मौका मिला। इन सबके साथ ही उन्होंने इस फ़िल्म में एक गाना "जय जय राजाधिराज" भी गाया। इस बीच वसन्त फ़िल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने के लिए संघर्ष करते रहे। वर्ष 1934 में प्रदर्शित फ़िल्म "अमृत मंथन" में गाया उनका यह गीत "बरसन लगी" श्रोताओं के बीच काफ़ी लोकप्रिय हुआ।
संगीतकार के रूप में प्रतिष्ठापना
इस बीच वसन्त को यह महसूस हुआ कि पार्श्वगायन के बजाए संगीतकार के रूप में उनका भविष्य ज्यादा सुरक्षित रहेगा। इसके बाद उन्होंने उस्ताद आलम ख़ान और उस्ताद इनायत ख़ान से संगीत की शिक्षा लेनी शुरू कर दी। लगभग चार वर्ष तक वसन्त मराठी नाटकों में भी संगीत देते रहे। वर्ष 1942 में प्रदर्शित फ़िल्म "शोभा" के जरिए बतौर संगीतकार वसन्त देसाई ने अपने सिने कॅरियर की शुरूआत की, लेकिन फ़िल्म की असफलता से वह बतौर संगीतकार अपनी पहचान नहीं बना सके। वर्ष 1943 में वी. शांताराम अपनी "शकुंतला" के लिए संगीतकार की तलाश कर रहे थे। वी. शांताराम ने फ़िल्म के संगीत के लिए वसन्त को चुना। इस फ़िल्म ने सफलता के नए कीर्तिमान स्थापित किए। इसके बाद वसन्त संगीतकार के रूप में अपनी पहचान बनाने में सफल हो गए।[1]
गीत 'ऐ मालिक तेरे बंदे हम'
वर्ष 1957 में वसन्त देसाई के संगीत निर्देशन में "दो आँखें बारह हाथ" का गीत ऐ मालिक तेरे बंदे हम आज भी श्रोताओं के बीच काफ़ी लोकप्रिय है। इस गीत की लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पंजाब सरकार ने इस गीत को सभी विद्यालयों में प्रात:कालीन प्रार्थना सभा में शामिल कर लिया। वर्ष 1964 में प्रदर्शित फ़िल्म "यादें" वसन्त देसाई के कॅरियर की अहम फ़िल्म साबित हुई। इस फ़िल्म में वसन्त को यह जिम्मेदारी दी गई थी कि फ़िल्म के पात्र के निजी जिंदगी के संस्मरणों को बैकग्रांउड स्कोर के माध्यम से पेश करना। वसन्त ने इस बात को एक चुनौती के रूप में लिया और सर्वश्रेष्ठ बैकग्राउंड संगीत देकर फ़िल्म को अमर बना दिया।
इसी तरह वर्ष 1974 में फ़िल्म निर्माता गुलज़ार बिना किसी गानों के फ़िल्म "अचानक" का निर्माण कर रहे थे और वसन्त देसाई से बैकग्राउंड म्यूजिक देने की पेशकश की और इस बार भी वसन्त कसौटी पर खरे उतरे और फ़िल्म के लिये श्रेष्ठ पार्श्व संगीत दिया। वसन्त ने हिन्दी फ़िल्मों के अलावा लगभग 20 मराठी फ़िल्मों के लिए भी संगीत दिया, जिसमें सभी फ़िल्में सुपरहिट साबित हुई।
वी. शांताराम के प्रिय संगीतकार
वसन्त देसाई के बारे में सब जानते हैं कि वे वी. शांताराम के प्रिय संगीतकार थे। वी. शांताराम की फ़िल्में अपनी गुणवत्ता, निर्देशन, नृत्य और कलाकारों के साथ अपने मधुर गानों के लिये भी जानी जाती हैं। उनकी लगभग सभी फ़िल्मों में वसन्त देसाई ने संगीत दिया। वसन्त देसाई फ़िल्म 'खूनी खंजर' में अभिनय भी कर चुके थे और गाने भी गा चुके थे। बाद में वे संगीतकार गोविन्द राव टेम्बे (ताम्बे) के सहायक बने और कई फ़िल्मों में गोविन्द राव के साथ संगीत दिया। बाद में इनमें छिपी संगीत प्रतिभा को शांताराम जी ने पहचाना और अपनी फ़िल्मों में संगीत देने की जिम्मेदारी सौंपी और वसन्त देसाई ने इस काम को बखूबी निभाय़ा और राजकमल की फ़िल्मों को अमर कर दिया।
फ़िल्म 'जनक झनक पायल बाजे' के 'नैन सो नैन नाही मिलाओ....' गीत को वसन्त देसाई ने राग मालगुंजी में ढ़ाला था। इस फ़िल्म में लता मंगेशकर ने कई गीत गाये, उनमें से प्रमुख है- 'मेरे ए दिल बता', 'प्यार तूने किया पाई मैने सज़ा', 'सैंया जाओ जाओ तोसे नांही बोलूं', 'जो तुम तोड़ो पिया मैं नाहीं तोड़ूं' आदि थे। चूंकि यह फ़िल्म ही संगीत/नृत्य के विषय पर बनी है तो इसमें संगीत तो बढ़िया होना ही था। साथ ही इस फ़िल्म का विशेष आकर्षण थे, सुप्रसिद्ध नृत्यकार गोपीकृष्ण- जिन्होंने एक नायक के रूप में इस फ़िल्म में अभिनय भी किया है।[1]
प्रमुख फिल्में व गीत
वसन्त देसाई ने 'दो आँखे बारह हाथ', 'तीन बत्ती चार रास्ता', 'डॉ. कोटनीस की अमर कहानी', 'सैरन्ध्री', 'तूफान और दिया' आदि कुल 45 फ़िल्मों में संगीत दिया।
क्र.सं. | गीत | गायक | संगीतकार | गीतकार | फ़िल्म | वर्ष | अभिनेता/अभिनेत्री |
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1. | ऐ मालिक तेरे बंदे हम | लता मंगेशकर | वसंत देसाई | भरत व्यास | दो आँखें बारह हाथ | 1975 | संध्या, वी. शांताराम |
2. | नैन सो नैन नाहीं मिलाओ | लता मंगेशकर, हेमंत कुमार | वसंत देसाई | हजरत जयपुरी | झनक झनक पायल बाजे | 1955 | संध्या, गोपी कृष्णा |
3. | निर्बल से लड़ाई बलवान की, ये कहानी है दिये की और तूफान की | मन्ना डे | वसंत देसाई | भरत व्यास | तूफान और दिया | 1956 | नंदा, उल्हास, राजेंद्र कुमार |
4. | टिम टिम टिम तारों के दीप जले | तलत महमूद, लता मंगेशकर | वसंत देसाई | भरत व्यास | मौसी | 1958 | सुमती गुप्ते |
5. | तेरे सुर और मेरे गीत, दोनों मिल कर बनेंगे गीत | लता मंगेशकर | वसंत देसाई | भरत व्यास | गूँज उठी शहनाई | 1959 | अनिता गुहा, अमीता, राजेंद्र कुमार |
6. | सैंय्या झूठों का बड़ा शरताज निकला | लता मंगेशकर | वसंत देसाई | भरत व्यास | दो आँखें बारह हाथ | 1957 | संध्या, वी. शांताराम |
7. | बिखर गये बचपन के सपने, कह दो कोई न करे यहाँ प्यार | मोहम्मद रफ़ी | बसंत देसाई | भरत व्यास | गूँज उठी शहनाई | 1959 | राजेंद्र कुमार, अमीता, अनिता गुहा |
8. | ऐ मालिक तेरे बंदे हम (पुरुष स्वर) | वी. शांताराम | वसंत देसाई | भरत व्यास | दो आँखें बारह हाथ | 1957 | वी. शांताराम |
9. | मैं गाऊँ तू चुप हो जा | लता मंगेशकर | वसंत देसाई | भरत व्यास | दो आँखें बारह हाथ | 1957 | - |
10. | बोले रे पपीहरा, पपीहरा | वानी जयराम | वसंत देसाई | गुलज़ार | गुड्डी | 1971 | जया भादुड़ी |
मृत्यु
22 दिसंबर, 1975 को एच.एम.भी स्टूडियो से रिकॉर्डिंग पूरी करने के बाद वसन्त देसाई अपने घर पहुंचे। जैसे ही उन्होंने अपने अपार्टमेंट की लिफ्ट में कदम रखा, किसी तकनीकी खराबी के कारण लिफ्ट उन पर गिर पड़ी और उन्हें कुचल डाला, जिससे उनकी मौत हो गई।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 1.2 1.3
बैकग्राउंड म्यूजिक के महारथी -वसंत देसाई (हिंदी) (jantv.in)। । अभिगमन तिथि: 24 जनवरी, 2017। Cite error: Invalid
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बाहरी कड़ियाँ
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