किंदी: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (Text replacement - " जगत " to " जगत् ")
m (Text replacement - "तेजी " to "तेज़ी")
 
(One intermediate revision by one other user not shown)
Line 2: Line 2:
{{tocright}}
{{tocright}}
==जन्म==
==जन्म==
किंदी का जन्म कूफ़ा में 9वीं सदी ई. के मध्य हुआ था। वह दक्षिण अरब वंशीय होने के कारण फैलसूफुल अरब अथवा अरब का दार्शनिक कहलाया। उनकी शिक्षा-दीक्षा बसरा और [[बग़दाद]] में हुई थी। वहीं रहकर वह उन्नति के शिखर पर पहुँचे। वह अब्बासी खलीफ़ाओं के दरबार में विभिन्न पदों पर रहे।<ref name="aa">{{cite web |url= http://khoj.bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%A6%E0%A5%80|title= किंदी|accessmonthday=20 जून|accessyear= 2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=भारतखोज|language=हिन्दी}}</ref>
किंदी का जन्म कूफ़ा में 9वीं सदी ई. के मध्य हुआ था। वह दक्षिण अरब वंशीय होने के कारण फैलसूफुल अरब अथवा अरब का दार्शनिक कहलाया। उनकी शिक्षा-दीक्षा बसरा और [[बग़दाद]] में हुई थी। वहीं रहकर वह उन्नति के शिखर पर पहुँचे। वह अब्बासी खलीफ़ाओं के दरबार में विभिन्न पदों पर रहे।<ref name="aa">{{cite web |url= http://bharatkhoj.org/india/%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%A6%E0%A5%80|title= किंदी|accessmonthday=20 जून|accessyear= 2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=भारतखोज|language=हिन्दी}}</ref>
====आश्रय====
====आश्रय====
खलीफ़ा मामून (813 ई. - 833 ई.) तथा खलीफ़ा मोतसिम (833 ई. - 852 ई.) उनके बहुत बड़े आश्रयदाता थे। उन्हें कभी [[यूनानी]] दार्शनिकों के [[ग्रंथ]] के अनुवादक एवं संपादक का पद, कभी राजज्योतिषी का पद प्राप्त होता रहा। उस समय अब्बासी ख़लीफाओं के दरबार में मोतजेला दर्शन का बड़ा जोर था। इनका मूल सिद्धांत था कि ईश्वर दिखाई नहीं दे सकता; आदमी जो कुछ करता है, वह स्वयं करता है, ईश्वर कुछ नहीं करता। किंतु जब खलीफ़ा मुतवक्किल (874 ई. - 861ई.) के समय इस विचारधारा का दमन हुआ तब किंदी को काफ़ी हानि उठानी पड़ी।
खलीफ़ा मामून (813 ई. - 833 ई.) तथा खलीफ़ा मोतसिम (833 ई. - 852 ई.) उनके बहुत बड़े आश्रयदाता थे। उन्हें कभी [[यूनानी]] दार्शनिकों के [[ग्रंथ]] के अनुवादक एवं संपादक का पद, कभी राजज्योतिषी का पद प्राप्त होता रहा। उस समय अब्बासी ख़लीफाओं के दरबार में मोतजेला दर्शन का बड़ा जोर था। इनका मूल सिद्धांत था कि ईश्वर दिखाई नहीं दे सकता; आदमी जो कुछ करता है, वह स्वयं करता है, ईश्वर कुछ नहीं करता। किंतु जब खलीफ़ा मुतवक्किल (874 ई. - 861ई.) के समय इस विचारधारा का दमन हुआ तब किंदी को काफ़ी हानि उठानी पड़ी।
Line 16: Line 16:
#दृष्टि के कोण तथा दूरी का दृष्टि पर प्रभाव एवं दृष्टि संबंधी भ्रांतियाँ
#दृष्टि के कोण तथा दूरी का दृष्टि पर प्रभाव एवं दृष्टि संबंधी भ्रांतियाँ


उनके मतानुसार [[प्रकाश]] की किरणें एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचने में कोई समय नहीं लेतीं। हमारी [[आँख]] के शंक्वाकार बन जाने पर प्रकाश किरणें आँख से निकलकर किसी वस्तु विशेष पर पड़ती हैं और उन किरणों के उस वस्तु पर पड़ने के कारण ही हमको उस वस्तु को देख लेने का अनुभव होता है। जिस समय हमारी अन्य चार [[इन्द्रियाँ]] किसी वस्तु के संपर्क में आकर उसके द्वारा उत्पन्न प्रभावों का अनुभव कर रही होती हैं, उस समय हमारी दृगिंद्रिय तत्क्षण अपनी वस्तु को तेजी से पकड़ लेती है।<ref name="aa"/>
उनके मतानुसार [[प्रकाश]] की किरणें एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचने में कोई समय नहीं लेतीं। हमारी [[आँख]] के शंक्वाकार बन जाने पर प्रकाश किरणें आँख से निकलकर किसी वस्तु विशेष पर पड़ती हैं और उन किरणों के उस वस्तु पर पड़ने के कारण ही हमको उस वस्तु को देख लेने का अनुभव होता है। जिस समय हमारी अन्य चार [[इन्द्रियाँ]] किसी वस्तु के संपर्क में आकर उसके द्वारा उत्पन्न प्रभावों का अनुभव कर रही होती हैं, उस समय हमारी दृगिंद्रिय तत्क्षण अपनी वस्तु को तेज़ीसे पकड़ लेती है।<ref name="aa"/>
==किंदी का मत==
==किंदी का मत==
किंदी का मत था कि ईश्वर तथा [[नक्षत्र]] जगत् के मध्य में [[आत्मा]] का जगत् है। उस जीवात्मा ने ही नक्षत्र मंडल का सृजन किया है। मनुष्य आत्मा की उत्पत्ति इस जगदात्मा से ही हुई है। जहाँ तक मनुष्यात्मा का शरीर से संबंध होने का प्रश्न है, यह नक्षत्रों के प्रभाव पर निर्भर है। परंतु जहाँ तक आत्मा की आध्यात्मिक उत्पत्ति तथा अस्तित्व का प्रश्न है, यह स्वतंत्र है, क्योंकि बुद्धिजगत में ही स्वतंत्रता तथा अमृतत्व है। अत: यदि परमोत्कर्ष की प्राप्ति की हमारी इच्छा है तो हमें ईश्वर भय, ज्ञान तथा सत्कार्य जैसी बुद्धि की चिरस्थायी संपत्तियों को प्राप्त करने की ओर लग जाना चाहिए।
किंदी का मत था कि ईश्वर तथा [[नक्षत्र]] जगत् के मध्य में [[आत्मा]] का जगत् है। उस जीवात्मा ने ही नक्षत्र मंडल का सृजन किया है। मनुष्य आत्मा की उत्पत्ति इस जगदात्मा से ही हुई है। जहाँ तक मनुष्यात्मा का शरीर से संबंध होने का प्रश्न है, यह नक्षत्रों के प्रभाव पर निर्भर है। परंतु जहाँ तक आत्मा की आध्यात्मिक उत्पत्ति तथा अस्तित्व का प्रश्न है, यह स्वतंत्र है, क्योंकि बुद्धिजगत में ही स्वतंत्रता तथा अमृतत्व है। अत: यदि परमोत्कर्ष की प्राप्ति की हमारी इच्छा है तो हमें ईश्वर भय, ज्ञान तथा सत्कार्य जैसी बुद्धि की चिरस्थायी संपत्तियों को प्राप्त करने की ओर लग जाना चाहिए।

Latest revision as of 08:23, 10 February 2021

किंदी अबू यूस्फ़ु इब्ने इसहाक़ अलकिंदी अरब के प्रसिद्ध दार्शनिक थे। दर्शनशास्त्र, ज्योतिष, भौतिक विज्ञान, प्रकाश विज्ञान[1] कीमिया तथा संगीतशास्त्र जैसे तत्कालीन सभी ज्ञान विज्ञान में उन्होंने बड़ी दक्षता प्राप्त की थी। वह अपने काल के बहुत बड़े ज्योतिषी माने जाते थे। उत्तर कालीन यूनानी विचारधारा के अनुसार किंदी को तत्वज्ञानी अथवा विचारवादी माना जाता है। उन्होंने नव-पाइथेगोरसवादी गणित को समस्त विज्ञानों का आधार माना और अफ़लातून (प्लेटो) तथा अरस्तु के विचारों का नव प्लेटो संबंधी ढंग से समन्वय का प्रयत्न किया। किंदी ने प्रकाश विज्ञान पर भी विशद रूप से प्रकाश डाला।

जन्म

किंदी का जन्म कूफ़ा में 9वीं सदी ई. के मध्य हुआ था। वह दक्षिण अरब वंशीय होने के कारण फैलसूफुल अरब अथवा अरब का दार्शनिक कहलाया। उनकी शिक्षा-दीक्षा बसरा और बग़दाद में हुई थी। वहीं रहकर वह उन्नति के शिखर पर पहुँचे। वह अब्बासी खलीफ़ाओं के दरबार में विभिन्न पदों पर रहे।[2]

आश्रय

खलीफ़ा मामून (813 ई. - 833 ई.) तथा खलीफ़ा मोतसिम (833 ई. - 852 ई.) उनके बहुत बड़े आश्रयदाता थे। उन्हें कभी यूनानी दार्शनिकों के ग्रंथ के अनुवादक एवं संपादक का पद, कभी राजज्योतिषी का पद प्राप्त होता रहा। उस समय अब्बासी ख़लीफाओं के दरबार में मोतजेला दर्शन का बड़ा जोर था। इनका मूल सिद्धांत था कि ईश्वर दिखाई नहीं दे सकता; आदमी जो कुछ करता है, वह स्वयं करता है, ईश्वर कुछ नहीं करता। किंतु जब खलीफ़ा मुतवक्किल (874 ई. - 861ई.) के समय इस विचारधारा का दमन हुआ तब किंदी को काफ़ी हानि उठानी पड़ी।

रचना

दर्शनशास्त्र, ज्योतिष, भौतिक विज्ञान, प्रकाश विज्ञान, कीमिया तथा संगीतशास्त्र जैसे तत्कालीन सभी ज्ञान विज्ञान में उन्होंने बड़ी दक्षता प्राप्त की थी। कहा जाता है कि किंदी ने लगभग 265 ग्रंथों की रचना की, किंतु दुर्भाग्यवश लगभग सभी ग्रंथ नष्ट हो गए। केवल वे ही ग्रंथ बच रहे, जिनका अरबी से लातीनी भाषा में अनुवाद हो गया था। 10वीं शती ई. के विद्वानों के गणित तथा दर्शनशास्त्र संबंधी सिद्धांतों में उसकी छाप स्पष्ट रूप में लक्षित होती है। वह अपने काल के बहुत बड़े ज्योतिषी माने जाते थे, किंतु उन्हें केवल ज्योतिष के मूल सिद्धांतों के प्रति ही रुचि थी, फलित ज्योतिष में नहीं। कीमिया के संबंध में उनका मत था कि सोना केवल खानों से ही प्राप्त हो सकता है, और किसी ओषधि द्वारा ताँबे अथवा पीतल को सोना नहीं बनाया जा सकता। उनके संगीतशास्त्र संबंधी ग्रंथों पर यूनानी प्रभाव दिखाई देता है। किंदी ने ताल अथवा ठेका[3] को अरबी संगीत का विशेष अंग बताया।[2]

तत्वज्ञानी अथवा विचारवादी

उत्तरकालीन यूनानी विचारधारा के अनुसार किंदी को तत्वज्ञानी अथवा विचारवादी माना जाता है। उन्होंने नव-पाइथेगोरसवादी गणित को समस्त विज्ञानों का आधार माना और अफ़लातून (प्लेटो) तथा अरस्तु के विचारों का नव प्लेटो संबंधी ढंग से समन्वय का प्रयत्न किया। उन्होंने गणित के सिद्धांतों का प्रयोग भौतिक शास्त्र में ही नहीं किया, अपितु चिकित्साशास्त्र में भी किया। उनका मत था कि शीतलता, उष्णता, जलहीनता अथवा नमी जैसे प्राकृतिक गुण प्रकृति में एक ज्योमित अनुपात में मिश्रित हैं। उन्होंने ओषधियों के प्रभाव तथा उनकी प्रक्रिया की व्याख्या इसी ज्योमित अनुपात के आधार पर की थी। इसी कारण यूरोप के पुनर्जागरण काल के दार्शनिक कार्डन ने उन्हें 12 विलक्षण बुद्धि वालों में से एक माना है।

प्रकाश विज्ञान

किंदी ने प्रकाश विज्ञान पर भी विशद रूप से प्रकाश डाला। थीओन द्वारा शोधित उनकी इस विषय की मुख्य कृति 'युक्लिड' प्रकाश विज्ञान पर आधारित है। इस रचना में उन्होंने निम्नलिखित बातों का प्रतिपादन किया है-

  1. प्रकाश का सीधी रेखाओं में चलना
  2. दृष्टि की सीधी रीति
  3. दर्पण द्वारा दृष्टि की रीति
  4. दृष्टि के कोण तथा दूरी का दृष्टि पर प्रभाव एवं दृष्टि संबंधी भ्रांतियाँ

उनके मतानुसार प्रकाश की किरणें एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचने में कोई समय नहीं लेतीं। हमारी आँख के शंक्वाकार बन जाने पर प्रकाश किरणें आँख से निकलकर किसी वस्तु विशेष पर पड़ती हैं और उन किरणों के उस वस्तु पर पड़ने के कारण ही हमको उस वस्तु को देख लेने का अनुभव होता है। जिस समय हमारी अन्य चार इन्द्रियाँ किसी वस्तु के संपर्क में आकर उसके द्वारा उत्पन्न प्रभावों का अनुभव कर रही होती हैं, उस समय हमारी दृगिंद्रिय तत्क्षण अपनी वस्तु को तेज़ीसे पकड़ लेती है।[2]

किंदी का मत

किंदी का मत था कि ईश्वर तथा नक्षत्र जगत् के मध्य में आत्मा का जगत् है। उस जीवात्मा ने ही नक्षत्र मंडल का सृजन किया है। मनुष्य आत्मा की उत्पत्ति इस जगदात्मा से ही हुई है। जहाँ तक मनुष्यात्मा का शरीर से संबंध होने का प्रश्न है, यह नक्षत्रों के प्रभाव पर निर्भर है। परंतु जहाँ तक आत्मा की आध्यात्मिक उत्पत्ति तथा अस्तित्व का प्रश्न है, यह स्वतंत्र है, क्योंकि बुद्धिजगत में ही स्वतंत्रता तथा अमृतत्व है। अत: यदि परमोत्कर्ष की प्राप्ति की हमारी इच्छा है तो हमें ईश्वर भय, ज्ञान तथा सत्कार्य जैसी बुद्धि की चिरस्थायी संपत्तियों को प्राप्त करने की ओर लग जाना चाहिए।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ऑप्टिक्स
  2. 2.0 2.1 2.2 किंदी (हिन्दी) भारतखोज। अभिगमन तिथि: 20 जून, 2014।
  3. ईका

संबंधित लेख