अष्टाध्यायी: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
No edit summary
 
(12 intermediate revisions by 8 users not shown)
Line 1: Line 1:
'''अष्टाध्यायी / Ashtadhyai'''<br />
'''अष्टाध्यायी''' [[पाणिनि]] रचित [[संस्कृत]] व्याकरण का प्रसिद्ध ग्रन्थ है। इसमें आठ अध्याय हैं। इसका भारतीय भाषाओं पर बहुत बड़ा [[प्रभाव]] है। साथ ही इसमें यथेष्ट [[इतिहास]] विषयक सामग्री भी उपलब्ध है।
*[[पाणिनि]] रचित [[संस्कृत]] व्याकरण का प्रसिद्ध ग्रन्थ
*इसमें आठ अध्याय हैं ।
*इसका भारतीय भाषाओं पर बहुत बड़ा प्रभाव है । साथ ही इसमें यथेष्ट इतिहास विषयक सामग्री भी उपलब्ध है ।
*वैदिक भाषा को ज्ञेय , विश्वस्त, बोधगम्य एवं सुन्दर बनाने की परम्परा में पाणिनी अग्रणी हैं ।
*संस्कृत भाषा का तो यह ग्रन्थ आधार ही है । उनके समय तक संस्कृत भाषा में कई परिवर्त्तन हुए थे, किन्तु अष्टाध्यायी के प्रणयन से संस्कृत भाषा में स्थिरता आ गयी तथा यह प्राय: अपरिवर्त्तनशील बन गयी ।
*अष्टाध्यायी में कुल सूत्रों की संख्या 3996 है । इसमें सन्धि, सुबन्त, कृदन्त, उणादि, आख्यात, निपात,उपसंख्यान, स्वरविधि, शिक्षा और तद्धित आदि विषयों का विचार है ।
*अष्टाध्यायी के पारिभाषिक शब्दों में ऐसे अनेक शब्द हैं जो पाणिनि के अपने बनाये हैं और बहुत से ऐसे शब्द हैं जो पूर्वकाल से प्रचलित थे ।
*पाणिनि ने अपने रचे शब्दों की व्याख्या की है और पहले के अनेक पारिभाषिक शब्दों की भी नयी व्याख्या करके उनके अर्थ और प्रयोग का विकास किया है । आरम्भ में उन्होंने चतुर्दश सूत्र दिये हैं । इन्हीं सूत्रों के आधार पर प्रत्याहार बनाये गये हैं, जिनका प्रयोग आदि से अन्त तक पाणिनि ने अपने सूत्रों में किया है । प्रत्याहारों से सूत्रों की रचना में अति लाघव आ गया है ।
*गणसमूह भी इनका अपना ही है । सूत्रों से ही यह भी पता चलता है कि पाणिनि के समय में पूर्व-अंचल और उत्तर-अंचलवासी दो श्रेणी वैयाकरणों की थीं जो पाणिनि की मण्डली से अतिरिक्त रही होंगी ।


[[Category:विविध]]
*वैदिक भाषा को ज्ञेय , विश्वस्त, बोधगम्य एवं सुन्दर बनाने की परम्परा में पाणिनी अग्रणी हैं।
*संस्कृत भाषा का तो यह ग्रन्थ आधार ही है। उनके समय तक संस्कृत भाषा में कई परिवर्त्तन हुए थे, किन्तु अष्टाध्यायी के प्रणयन से संस्कृत भाषा में स्थिरता आ गयी तथा यह प्राय: अपरिवर्त्तनशील बन गयी।
*अष्टाध्यायी में कुल सूत्रों की संख्या 3996 है। इसमें सन्धि, सुबन्त, कृदन्त, उणादि, आख्यात, निपात,उपसंख्यान, स्वरविधि, शिक्षा और तद्धित आदि विषयों का विचार है।
*अष्टाध्यायी के पारिभाषिक शब्दों में ऐसे अनेक शब्द हैं जो पाणिनि के अपने बनाये हैं और बहुत से ऐसे शब्द हैं जो पूर्वकाल से प्रचलित थे।
*पाणिनि ने अपने रचे शब्दों की व्याख्या की है और पहले के अनेक पारिभाषिक शब्दों की भी नयी व्याख्या करके उनके अर्थ और प्रयोग का विकास किया है। आरम्भ में उन्होंने चतुर्दश सूत्र दिये हैं। इन्हीं सूत्रों के आधार पर प्रत्याहार बनाये गये हैं, जिनका प्रयोग आदि से अन्त तक पाणिनि ने अपने सूत्रों में किया है। प्रत्याहारों से सूत्रों की रचना में अति लाघव आ गया है।
*गणसमूह भी इनका अपना ही है। सूत्रों से ही यह भी पता चलता है कि पाणिनि के समय में पूर्व-अंचल और उत्तर-अंचलवासी दो श्रेणी वैयाकरणों की थीं जो पाणिनि की मण्डली से अतिरिक्त रही होंगी।
*पाणिनि कृत अष्टाध्यायी वैसे तो व्याकरण का ग्रंथ माने जाते हैं किन्तु इन गंथों में कहीं-कहीं राजाओं-महाराजाओं एवं जनतंत्रों के घटनाचक्र का विवरण भी मिलता हैं।
*गोत्र जनपद और वैदिक चरणों के नाम से स्त्रियों के नामकरण की प्रथा का 'अष्टाध्यायी' में पर्याप्त उल्लेख हुआ है। इससे स्त्रियों की सामाजिक प्रतिष्ठा और गौरवात्मक स्थिति का संकेत मिलता है।  एक जनपद में उत्पन्न राजकुमारियां या स्त्रियां [[विवाह]] के बाद जब दूसरे जनपद में जाती थीं, तब पतिगृह में वह अपने जनपदीय नामों से पुकारी जाती थीं। [[राजस्थान]] के राजघराने में प्रायः अभी तक यह प्रथा विद्यमान है, जैसे- हाडौती या ढूंढारी रानी। महाभारत काल में प्राय: प्रसिद्ध स्त्रियों के नाम [[माद्री]], [[कुंती]], [[गांधारी]] आदि इसी प्रकार के हैं।
*[[पाणिनि]] ने निम्नलिखित नामों का सूत्र में उल्लेख किया है- [[अवंती जनपद]] के क्षत्रिय की कन्या अवंती, कुंती जनपद या कोंतवार देश की राजकुमारी कुंती, [[कुरु जनपद|कुरु राष्ट्र]] की राजकुमारी कुरु, भर्ग जनपद की राजकुमारी भार्गी<ref>4/1/176-178</ref> आदि। पांचाली, वैदेही, आंगी, वांगी, मागधी, यह नाम प्राच्य देश के जनपदों की स्त्रियों के थे।<ref>4/1/178</ref>पाणिनि ने यौधेय नामक गणराज्य की स्त्री के लिए “यौधेयी” शब्द का उल्लेख किया है।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=पाणिनीकालीन भारत|लेखक=वासुदेवशरण अग्रवाल|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=चौखम्बा विद्याभवन, वाराणसी-1|संकलन= भारतकोश पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=101|url=}}</ref>
====वर्ण  और जाति====
'अष्टाध्यायी' में वर्ण, जाति और बंधु यह तीन शब्द आए हैं। वर्ण प्राचीन शब्द था। उसके स्थान पर जाति शब्द चलने लगा था, जो इस अर्थ में अपेक्षाकृत नवीन था। [[कात्यायन]] के 'श्रौतसूत्र' में जाति का अर्थ केवल [[परिवार]] है। एक वर्ण में उत्पन्न हुए व्यक्ति परस्पर सवर्ण होते थे।<ref>6/3/85, सम्मान वर्ण</ref> जाति का एक-एक व्यक्ति 'बंधु' कहलाता था। जात्यंताच्छ  बंधुनी<ref>5/4/9</ref> सूत्र का अभिप्राय यह है कि जातिवादी शब्द से छ प्रत्यय लगाकर उस जाति के एक व्यक्ति का बोध किया जाता है, जैसे- ब्राह्मणजातीय:, क्षत्रियजातीय:, वैश्यजातीय:।
 
 
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक= प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
==संबंधित लेख==
{{संस्कृत साहित्य2}}
[[Category:संस्कृत साहित्य]][[Category:साहित्य_कोश]]
__INDEX__
__INDEX__

Latest revision as of 07:53, 11 April 2018

अष्टाध्यायी पाणिनि रचित संस्कृत व्याकरण का प्रसिद्ध ग्रन्थ है। इसमें आठ अध्याय हैं। इसका भारतीय भाषाओं पर बहुत बड़ा प्रभाव है। साथ ही इसमें यथेष्ट इतिहास विषयक सामग्री भी उपलब्ध है।

  • वैदिक भाषा को ज्ञेय , विश्वस्त, बोधगम्य एवं सुन्दर बनाने की परम्परा में पाणिनी अग्रणी हैं।
  • संस्कृत भाषा का तो यह ग्रन्थ आधार ही है। उनके समय तक संस्कृत भाषा में कई परिवर्त्तन हुए थे, किन्तु अष्टाध्यायी के प्रणयन से संस्कृत भाषा में स्थिरता आ गयी तथा यह प्राय: अपरिवर्त्तनशील बन गयी।
  • अष्टाध्यायी में कुल सूत्रों की संख्या 3996 है। इसमें सन्धि, सुबन्त, कृदन्त, उणादि, आख्यात, निपात,उपसंख्यान, स्वरविधि, शिक्षा और तद्धित आदि विषयों का विचार है।
  • अष्टाध्यायी के पारिभाषिक शब्दों में ऐसे अनेक शब्द हैं जो पाणिनि के अपने बनाये हैं और बहुत से ऐसे शब्द हैं जो पूर्वकाल से प्रचलित थे।
  • पाणिनि ने अपने रचे शब्दों की व्याख्या की है और पहले के अनेक पारिभाषिक शब्दों की भी नयी व्याख्या करके उनके अर्थ और प्रयोग का विकास किया है। आरम्भ में उन्होंने चतुर्दश सूत्र दिये हैं। इन्हीं सूत्रों के आधार पर प्रत्याहार बनाये गये हैं, जिनका प्रयोग आदि से अन्त तक पाणिनि ने अपने सूत्रों में किया है। प्रत्याहारों से सूत्रों की रचना में अति लाघव आ गया है।
  • गणसमूह भी इनका अपना ही है। सूत्रों से ही यह भी पता चलता है कि पाणिनि के समय में पूर्व-अंचल और उत्तर-अंचलवासी दो श्रेणी वैयाकरणों की थीं जो पाणिनि की मण्डली से अतिरिक्त रही होंगी।
  • पाणिनि कृत अष्टाध्यायी वैसे तो व्याकरण का ग्रंथ माने जाते हैं किन्तु इन गंथों में कहीं-कहीं राजाओं-महाराजाओं एवं जनतंत्रों के घटनाचक्र का विवरण भी मिलता हैं।
  • गोत्र जनपद और वैदिक चरणों के नाम से स्त्रियों के नामकरण की प्रथा का 'अष्टाध्यायी' में पर्याप्त उल्लेख हुआ है। इससे स्त्रियों की सामाजिक प्रतिष्ठा और गौरवात्मक स्थिति का संकेत मिलता है। एक जनपद में उत्पन्न राजकुमारियां या स्त्रियां विवाह के बाद जब दूसरे जनपद में जाती थीं, तब पतिगृह में वह अपने जनपदीय नामों से पुकारी जाती थीं। राजस्थान के राजघराने में प्रायः अभी तक यह प्रथा विद्यमान है, जैसे- हाडौती या ढूंढारी रानी। महाभारत काल में प्राय: प्रसिद्ध स्त्रियों के नाम माद्री, कुंती, गांधारी आदि इसी प्रकार के हैं।
  • पाणिनि ने निम्नलिखित नामों का सूत्र में उल्लेख किया है- अवंती जनपद के क्षत्रिय की कन्या अवंती, कुंती जनपद या कोंतवार देश की राजकुमारी कुंती, कुरु राष्ट्र की राजकुमारी कुरु, भर्ग जनपद की राजकुमारी भार्गी[1] आदि। पांचाली, वैदेही, आंगी, वांगी, मागधी, यह नाम प्राच्य देश के जनपदों की स्त्रियों के थे।[2]पाणिनि ने यौधेय नामक गणराज्य की स्त्री के लिए “यौधेयी” शब्द का उल्लेख किया है।[3]

वर्ण और जाति

'अष्टाध्यायी' में वर्ण, जाति और बंधु यह तीन शब्द आए हैं। वर्ण प्राचीन शब्द था। उसके स्थान पर जाति शब्द चलने लगा था, जो इस अर्थ में अपेक्षाकृत नवीन था। कात्यायन के 'श्रौतसूत्र' में जाति का अर्थ केवल परिवार है। एक वर्ण में उत्पन्न हुए व्यक्ति परस्पर सवर्ण होते थे।[4] जाति का एक-एक व्यक्ति 'बंधु' कहलाता था। जात्यंताच्छ बंधुनी[5] सूत्र का अभिप्राय यह है कि जातिवादी शब्द से छ प्रत्यय लगाकर उस जाति के एक व्यक्ति का बोध किया जाता है, जैसे- ब्राह्मणजातीय:, क्षत्रियजातीय:, वैश्यजातीय:।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 4/1/176-178
  2. 4/1/178
  3. पाणिनीकालीन भारत |लेखक: वासुदेवशरण अग्रवाल |प्रकाशक: चौखम्बा विद्याभवन, वाराणसी-1 |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 101 |
  4. 6/3/85, सम्मान वर्ण
  5. 5/4/9

संबंधित लेख