जग्गू सेठ अखाड़ा, वाराणसी: Difference between revisions

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बाँसफाटक की ढलान से उतरते हुए [[गिरनार]] के इधर ही, सेवा सदन तक जाने वाली गली में, घुँघरानी गली में घुसते ही, यह अखाड़ा मौजूद है। यह लगभग सवा दो सौ वर्ष पुराना अखाड़ा है। मीरघाट के स्थानीय निवासी जग्गू सेठ ने अपने निजी खरीद पर यह अखाड़ा बनाया। इस अखाड़े के पास ही हनुमान मन्दिर, शिव मन्दिर तथा एक [[कुआँ]] भी है। जग्गू गुरू बनारस की हस्ती थे और बेजोड़ पहलवान भी। आठ हजार बैठकी पाँच हजार डण्ड मारकर सैकड़ों पट्ठों को उसी दम लड़ाना मामूली बात थी। ईश्वरी नारायण सिंह जी के समय में रामनगर में एक दंगल हुआ था। काशी नरेश स्वयं वहाँ थे। मुकाबला जग्गू गुरू और मेरठ के बादी पहलवान से तय था। बादी के बारे में कहा जाता कि वह कभी हारा ही नहीं। अखाड़े में हाथ मिलाते ही जग्गू गुरू ने उसे ‘ढाँक’ पर दे मारा। इनके पुत्र छन्नू गुरू ने भी खूब नाम कमाया। [[1918]] में छन्नू गुरू का यौवन और शौर्य उनके प्रतिद्वन्द्वियों में काँटे घोल गयी। [[भारत]] प्रसिद्ध पहलवान वाहिद खाँ का नाम उस समय सुर्खियों में था। वह भी यहीं का शिष्य था बाद में वह अन्यत्र चला गया। छन्नू गुरू ने एक कुश्ती में लड़ते-लड़ते एक ऐसा हिक्का मारा कि मुँह से अँजुलियों खून निकल आया। छन्नू गुरू ने कई बड़े-बड़े पहलवानों को यहीं के अखाड़े पर पटक कर अखाड़े का मान वर्द्धन किया। आज भी इस अखाड़े में सैकड़ों पट्ठे जोर आजमाइश करते हैं।<ref>{{cite web |url=http://www.kashikatha.com/%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A4%A4/%E0%A4%85%E0%A4%96%E0%A4%BE%E0%A4%A1%E0%A4%BC%E0%A5%87%E0%A4%B5%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%8F%E0%A4%81/ |title= अखाड़े/व्यायामशालाएँ|accessmonthday=19 जनवरी |accessyear=2014 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=काशीकथा |language=हिंदी }}</ref>
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बाँसफाटक की ढलान से उतरते हुए गिरनार के इधर ही, सेवा सदन तक जाने वाली गली में, घुँघरानी गली में घुसते ही, यह अखाड़ा मौजूद है। यह लगभग सवा दो सौ वर्ष पुराना अखाड़ा है। मीरघाट के स्थानीय निवासी जग्गू सेठ ने अपने निजी ख़रीद पर यह अखाड़ा बनाया। इस अखाड़े के पास ही हनुमान मन्दिर, शिव मन्दिर तथा एक कुआँ भी है। जग्गू गुरू बनारस की हस्ती थे और बेजोड़ पहलवान भी। आठ हजार बैठकी पाँच हजार डण्ड मारकर सैकड़ों पट्ठों को उसी दम लड़ाना मामूली बात थी। ईश्वरी नारायण सिंह जी के समय में रामनगर में एक दंगल हुआ था। काशी नरेश स्वयं वहाँ थे। मुकाबला जग्गू गुरू और मेरठ के बादी पहलवान से तय था। बादी के बारे में कहा जाता कि वह कभी हारा ही नहीं। अखाड़े में हाथ मिलाते ही जग्गू गुरू ने उसे ‘ढाँक’ पर दे मारा। इनके पुत्र छन्नू गुरू ने भी खूब नाम कमाया। 1918 में छन्नू गुरू का यौवन और शौर्य उनके प्रतिद्वन्द्वियों में काँटे घोल गयी। भारत प्रसिद्ध पहलवान वाहिद खाँ का नाम उस समय सुर्खियों में था। वह भी यहीं का शिष्य था बाद में वह अन्यत्र चला गया। छन्नू गुरू ने एक कुश्ती में लड़ते-लड़ते एक ऐसा हिक्का मारा कि मुँह से अँजुलियों ख़ून निकल आया। छन्नू गुरू ने कई बड़े-बड़े पहलवानों को यहीं के अखाड़े पर पटक कर अखाड़े का मान वर्द्धन किया। आज भी इस अखाड़े में सैकड़ों पट्ठे जोर आजमाइश करते हैं।[1]



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अखाड़े/व्यायामशालाएँ (हिंदी) काशीकथा। अभिगमन तिथि: 19 जनवरी, 2014।

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