त्रिमार्ग: Difference between revisions

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त्रिमार्ग मोक्ष (अंतिम मुक्त) प्राप्त करने के विभिन्न मार्ग। हिन्दू मोक्ष के तीन मार्गों को मान्यता देते हैं। अत्यंत प्रभावशाली धर्मग्रंथ भगवद्गीता[1] में मोक्ष प्राप्त करने के तीन मार्ग[2] बताए गए हैं, जिसके अनुसार कर्म स्वयं नहीं, बल्कि उसके फल की इच्छा से उत्पादित होता है और इस प्रकार आसक्ति पैदा होती है।

मोक्ष प्राप्ति के मार्ग

मोक्ष प्राप्ति के तीन मार्ग हैं-

  1. कर्म मार्ग, आनुष्ठानिक तथा सामाजिक कर्तव्यों का निष्काम भाव से संपादन
  2. ज्ञान मार्ग, ब्रह्य के साथ अपनी एकात्मता की पराबौद्धिक अंतर्दृष्टि प्राप्त करने के लिए ध्यान का उपयोग, जिसके पहले एक लंबा और प्रणालीबद्ध नैतिक प्रशिक्षण 'योग' होता है
  3. भक्ति मार्ग, अपने इष्टदेव के प्रति भक्ति

उपरोक्त तीनों मार्गों को विभिन्न प्रकार के लोगों के लिए उचित माना जाता है।

खोज

हालांकि मोक्ष की खोज बहुत थोड़े-से हिन्दुओं का ही लक्ष्य रहा है, मुक्ति एक धार्मिक आदर्श है, जिनने सभी लोगों को प्रभावित किया है। मोक्ष ने न केवक भारतीय सामाजिक संस्थानाकओं तथा धार्मिक सिद्धांतों व आचारों के पदानुक्रमिक मूल्य निर्धारित किए हैं, बल्कि भारतीय दर्शन के कार्यों भी निर्धारित किया है, भारतीय दर्शन में इसकी विवेचना है कि संसार[3] से मुक्ति और आध्यात्मिक स्वतंत्रता की प्राप्ति हेतु प्रत्यक्ष अनुभव के माध्यम से पूर्ण संतुष्टि की तलाश के लिए किया जाना चाहिए और क्या लक्षित करना चाहिए। जिन लोगों तक औपचारिक भारतीय दर्शन नहीं पहुंचा, उन्हें 'कर्म' और 'मोक्ष' के सिद्धांतों का अस्पष्ट ज्ञान ही है। इन सिद्धांतों के अर्द्ध लोकप्रिय वातावरण के अनुमान को और बढ़ावा दिया।[4]

जीवन का मुख्य लक्ष्य

सामान्य हिन्दू के लिए सांसारिक जीवन का मुख्य लक्ष्य सामाजिक व आनुष्ठानिक कर्तव्यों को पूरा करना और अपनी जाति, परिवार तथा व्यवसाय से संबंधित आचारों के परंपरागत नियमों को मानना है। इनमें व्यक्ति के धर्म[5], वृहत्तर स्थायित्व में अपना योगदान, क़ानून एवं व्यवस्था और ब्रह्मांड, प्रकृति व समाज में आधारभूत संतुलन शामिल है। सनातन धर्म एक पारिभाषिक शब्दखंड है, जिसका उपयोग कुछ आधुनिक हिन्दू अपने धर्म को दर्शाने के लिए करते हैं। यह लगभग 'पश्चिम के धार्मिक विश्वासों और आचारों' के समरूप है। धर्म सभी हिन्दुओं के लिए है, किंतु व्यवसाय आश्रित चार प्रमुख वर्णों, ब्राह्मण (पुरोहित तथा उपदेशक), क्षत्रिय (शासक तथा योद्धा), वैश्य (प्राचीन भारत में कृषक, आधुनिक भारत में व्यापारी) और शूद्र (दास या श्रमिक) के लिए कुछ विशेष धर्म समुचित माने गए हैं। इन चारों में हज़ारों जातियों के उनके व्यवसाय तथा सामाजिक स्थितियों के अनूकुल धर्म हैं। रोज़ी-रोटी में लगे लोगों के लिए मोक्ष एक सुदूर लक्ष्य है, फिर भी करोड़ों हिन्दुओं के लिए यह चरम धार्मिक तलाश है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पहली या दूसरी शताब्दी
  2. अलग-अलग आकलित, लेकिन अविशिष्ट
  3. पुनर्जन्म का चक्र या बंधन
  4. भारत ज्ञानकोश, खण्ड-2 |लेखक: इंदु रामचंदानी |प्रकाशक: एंसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली और पॉप्युलर प्रकाशन, मुम्बई |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 397 |
  5. मैलिक कर्तव्य, उचित आचरण

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