सुनु सुग्रीव मारिहउँ: Difference between revisions
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सुनु सुग्रीव मारिहउँ बालिहि एकहिं बान। | सुनु सुग्रीव मारिहउँ बालिहि एकहिं बान। | ||
ब्रह्म रुद्र सरनागत गएँ न उबरिहिं प्रान॥6॥ | ब्रह्म रुद्र सरनागत गएँ न उबरिहिं प्रान॥6॥ |
Latest revision as of 12:20, 21 April 2018
सुनु सुग्रीव मारिहउँ
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | सोरठा, चौपाई और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | किष्किंधा काण्ड |
सुनु सुग्रीव मारिहउँ बालिहि एकहिं बान। |
- भावार्थ
(उन्होंने कहा-) हे सुग्रीव! सुनो, मैं एक ही बाण से बालि को मार डालूँगा। ब्रह्मा और रुद्र की शरण में जाने पर भी उसके प्राण न बचेंगे॥6॥
left|30px|link=इहाँ साप बस आवत नाहीं|पीछे जाएँ | सुनु सुग्रीव मारिहउँ | right|30px|link=जे न मित्र दुख होहिं दुखारी|आगे जाएँ |
दोहा- मात्रिक अर्द्धसम छंद है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख