जय राम रमारमनं समनं: Difference between revisions
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जय राम रमारमनं समनं। भवताप भयाकुल पाहि जनं॥ | जय राम रमारमनं समनं। भवताप भयाकुल पाहि जनं॥ | ||
अवधेस सुरेस रमेस बिभो। सरनागत मागत पाहि प्रभो॥1॥ | अवधेस सुरेस रमेस बिभो। सरनागत मागत पाहि प्रभो॥1॥ |
Latest revision as of 06:54, 8 June 2016
जय राम रमारमनं समनं
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | सोरठा, चौपाई, छन्द और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | उत्तरकाण्ड |
जय राम रमारमनं समनं। भवताप भयाकुल पाहि जनं॥ |
- भावार्थ
हे राम! हे रमारमण (लक्ष्मीकांत)! हे जन्म-मरण के संताप का नाश करने वाले! आपकी जय हो, आवागमन के भय से व्याकुल इस सेवक की रक्षा कीजिए। हे अवधपति! हे देवताओं के स्वामी! हे रमापति! हे विभो! मैं शरणागत आपसे यही माँगता हूँ कि हे प्रभो! मेरी रक्षा कीजिए॥1॥
left|30px|link=बैनतेय सुनु संभु तब|पीछे जाएँ | जय राम रमारमनं समनं | right|30px|link=दससीस बिनासन बीस भुजा|आगे जाएँ |
छन्द- शब्द 'चद्' धातु से बना है जिसका अर्थ है 'आह्लादित करना', 'खुश करना'। यह आह्लाद वर्ण या मात्रा की नियमित संख्या के विन्याय से उत्पन्न होता है। इस प्रकार, छंद की परिभाषा होगी 'वर्णों या मात्राओं के नियमित संख्या के विन्यास से यदि आह्लाद पैदा हो, तो उसे छंद कहते हैं'। छंद का सर्वप्रथम उल्लेख 'ऋग्वेद' में मिलता है। जिस प्रकार गद्य का नियामक व्याकरण है, उसी प्रकार पद्य का छंद शास्त्र है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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