जोगवहिं जिन्हहि प्रान की नाईं: Difference between revisions

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ते सिय रामु साथरीं सोए। श्रमित बसन बिनु जाहिं न जोए॥
जोगवहिं जिन्हहि प्रान की नाईं। महि सोवत तेइ राम गोसाईं॥
मातु पिता परिजन पुरबासी। सखा सुसील दास अरु दासी॥2॥</poem>
पिता जनक जग बिदित प्रभाऊ। ससुर सुरेस सखा रघुराऊ॥3॥</poem>
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सब जिनकी अपने प्राणों की तरह सार-संभार करते थे, वही प्रभु श्री रामचन्द्रजी आज पृथ्वी पर सो रहे हैं। जिनके पिता जनकजी हैं, जिनका प्रभाव जगत में प्रसिद्ध है, जिनके ससुर इन्द्र के मित्र रघुराज [[दशरथ|दशरथजी]] हैं,॥3॥  
सब जिनकी अपने प्राणों की तरह सार-संभार करते थे, वही प्रभु श्री रामचन्द्रजी आज पृथ्वी पर सो रहे हैं। जिनके पिता जनकजी हैं, जिनका प्रभाव जगत् में प्रसिद्ध है, जिनके ससुर इन्द्र के मित्र रघुराज [[दशरथ|दशरथजी]] हैं,॥3॥  


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Latest revision as of 13:57, 30 June 2017

जोगवहिं जिन्हहि प्रान की नाईं
कवि गोस्वामी तुलसीदास
मूल शीर्षक रामचरितमानस
मुख्य पात्र राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि
प्रकाशक गीता प्रेस गोरखपुर
शैली चौपाई, सोरठा, छन्द और दोहा
संबंधित लेख दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा
काण्ड अयोध्या काण्ड
चौपाई

जोगवहिं जिन्हहि प्रान की नाईं। महि सोवत तेइ राम गोसाईं॥
पिता जनक जग बिदित प्रभाऊ। ससुर सुरेस सखा रघुराऊ॥3॥

भावार्थ

सब जिनकी अपने प्राणों की तरह सार-संभार करते थे, वही प्रभु श्री रामचन्द्रजी आज पृथ्वी पर सो रहे हैं। जिनके पिता जनकजी हैं, जिनका प्रभाव जगत् में प्रसिद्ध है, जिनके ससुर इन्द्र के मित्र रघुराज दशरथजी हैं,॥3॥


left|30px|link=ते सिय रामु साथरीं सोए|पीछे जाएँ जोगवहिं जिन्हहि प्रान की नाईं right|30px|link=रामचंदु पति सो बैदेही|आगे जाएँ


चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।




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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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