पुण्यं पापहरं सदा शिवकरं: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
('{{सूचना बक्सा पुस्तक |चित्र=Sri-ramcharitmanas.jpg |चित्र का नाम=रा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
m (Text replacement - "अर्थात " to "अर्थात् ")
 
(One intermediate revision by one other user not shown)
Line 42: Line 42:
;भावार्थ
;भावार्थ
यह [[राम|श्री रामचरित]] मानस पुण्य रूप, पापों का हरण करने वाला, सदा कल्याणकारी, विज्ञान और [[भक्ति]] को देने वाला, माया मोह और मल का नाश करने वाला, परम निर्मल प्रेम रूपी [[जल]] से परिपूर्ण तथा मंगलमय है। जो मनुष्य [[भक्ति|भक्तिपूर्वक]] इस मानसरोवर में गोता लगाते हैं, वे संसाररूपी [[सूर्य]] की अति प्रचण्ड किरणों से नहीं जलते॥2॥  
यह [[राम|श्री रामचरित]] मानस पुण्य रूप, पापों का हरण करने वाला, सदा कल्याणकारी, विज्ञान और [[भक्ति]] को देने वाला, माया मोह और मल का नाश करने वाला, परम निर्मल प्रेम रूपी [[जल]] से परिपूर्ण तथा मंगलमय है। जो मनुष्य [[भक्ति|भक्तिपूर्वक]] इस मानसरोवर में गोता लगाते हैं, वे संसाररूपी [[सूर्य]] की अति प्रचण्ड किरणों से नहीं जलते॥2॥  
{{लेख क्रम4| पिछला=यत्पूर्वं प्रभुणा कृतं |मुख्य शीर्षक=रामचरितमानस |अगला=श्रीरामायण जी की आरती}}
{{लेख क्रम4| पिछला=यत्पूर्वं प्रभुणा कृतं |मुख्य शीर्षक=रामचरितमानस |अगला=रामचरितमानस प्रथम सोपान (बालकाण्ड)}}
'''श्लोक'''-  [[संस्कृत]] की दो पंक्तियों की रचना, जिनके द्वारा किसी प्रकार का कथोपकथन किया जाता है, को [[श्लोक]] कहते हैं। प्रायः श्लोक [[छंद]] के रूप में होते हैं अर्थात इनमें गति, यति और लय होती है।  
'''श्लोक'''-  [[संस्कृत]] की दो पंक्तियों की रचना, जिनके द्वारा किसी प्रकार का कथोपकथन किया जाता है, को [[श्लोक]] कहते हैं। प्रायः श्लोक [[छंद]] के रूप में होते हैं अर्थात् इनमें गति, यति और लय होती है।  


<center>'''मासपारायण, तीसवाँ विश्राम'''</center>
<center>'''मासपारायण, तीसवाँ विश्राम'''</center>

Latest revision as of 07:54, 7 November 2017

पुण्यं पापहरं सदा शिवकरं
कवि गोस्वामी तुलसीदास
मूल शीर्षक रामचरितमानस
मुख्य पात्र राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि
प्रकाशक गीता प्रेस गोरखपुर
शैली सोरठा, चौपाई, छन्द और दोहा
संबंधित लेख दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा
काण्ड उत्तरकाण्ड
सभी (7) काण्ड क्रमश: बालकाण्ड‎, अयोध्या काण्ड‎, अरण्यकाण्ड, किष्किंधा काण्ड‎, सुंदरकाण्ड, लंकाकाण्ड‎, उत्तरकाण्ड
श्लोक

पुण्यं पापहरं सदा शिवकरं विज्ञानभक्तिप्रदं।
मायामोहमलापहं सुविमलं प्रेमाम्बुपूरं शुभम्‌।
श्रीमद्रामचरित्रमानसमिदं भक्त्यावगाहन्ति ये
ते संसारपतंगघोरकिरणैर्दह्यन्ति नो मानवाः॥2॥

भावार्थ

यह श्री रामचरित मानस पुण्य रूप, पापों का हरण करने वाला, सदा कल्याणकारी, विज्ञान और भक्ति को देने वाला, माया मोह और मल का नाश करने वाला, परम निर्मल प्रेम रूपी जल से परिपूर्ण तथा मंगलमय है। जो मनुष्य भक्तिपूर्वक इस मानसरोवर में गोता लगाते हैं, वे संसाररूपी सूर्य की अति प्रचण्ड किरणों से नहीं जलते॥2॥


left|30px|link=यत्पूर्वं प्रभुणा कृतं|पीछे जाएँ पुण्यं पापहरं सदा शिवकरं right|30px|link=रामचरितमानस प्रथम सोपान (बालकाण्ड)|आगे जाएँ

श्लोक- संस्कृत की दो पंक्तियों की रचना, जिनके द्वारा किसी प्रकार का कथोपकथन किया जाता है, को श्लोक कहते हैं। प्रायः श्लोक छंद के रूप में होते हैं अर्थात् इनमें गति, यति और लय होती है।

मासपारायण, तीसवाँ विश्राम
नवाह्नपारायण, नवाँ विश्राम
इति श्रीमद्रामचरितमानसे सकलकलिकलुषविध्वंसने सप्तमः सोपानः समाप्तः।
कलियुग के समस्त पापों का नाश करने वाले श्री रामचरित मानस का यह सातवाँ सोपान समाप्त हुआ।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

पुस्तक- श्रीरामचरितमानस (उत्तरकाण्ड) |प्रकाशक- गीताप्रेस, गोरखपुर |संकलन- भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|पृष्ठ संख्या-544

संबंधित लेख