ख़िज़्र ख़ाँ: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
गोविन्द राम (talk | contribs) |
गोविन्द राम (talk | contribs) No edit summary |
||
Line 24: | Line 24: | ||
__INDEX__ | __INDEX__ | ||
__NOTOC__ |
Revision as of 11:47, 17 April 2011
खिज्र ख़ाँ सैय्यद वंश का संस्थापक था। खिज्र ख़ाँ ने 1414 ई. में दिल्ली की राजगद्दी पर अधिकार कर लिया। खिज्र ख़ाँ ने सुल्तान की उपाधि न धारण कर अपने को 'रैयत-ए-आला' की उपाधि से ही खुश रखा।
शासन काल
तैमूर लंग जिस समय भारत से वापस जा रहा था, उसने खिज्र ख़ाँ को मुल्तान, लाहौर एवं दीपालपुर का शासक नियुक्त कर दिया था। खिज्र ख़ाँ अपने को तैमूर के लड़के शाहरूख का प्रतिनिधि बताता था और साथ ही उसे नियमित 'कर' भेजा करता था। उसने खुतबा (प्रशंसात्मक रचना) में तैमूर और उसके उत्तराधिकारी शाहरूख का नाम पढ़वाया। खिज्र ख़ाँ के शासन काल में पंजाब, मुल्तान एवं सिंध पुनः दिल्ली सल्तनत के अधीन हो गये उसने अपने समय में कटेहर, इटावा, खोर, चलेसर, ग्वालियर, बयाना, मेवात, बदायूँ के विद्रोह को कुचल कर उन्हें जीतने का प्रयास किया।
न्यायप्रिय एवं उदार
सुल्तान को राजस्व वसूलने के लिए भी प्रतिवर्ष सैनिक अभियान का सहारा लेना पड़ता था। उसने अपने सिक्कों पर तुग़लक़ सुल्तानों का नाम खुदवाया। फ़रिश्ता ने खिज्र ख़ाँ को एक न्यायप्रिय एवं उदार शासक बताया है।
मृत्यु
20 मई, 1421 को खिज्र ख़ाँ की मृत्यु हो गई। फ़रिश्ता के अनुसार खिज्र ख़ाँ की मृत्यु पर युवा, वृद्ध दास और स्वतंत्र सभी ने काले वस्त्र पहनकर दुःख प्रकट किया।
|
|
|
|
|
संबंधित लेख