प्रयोग:फ़ौज़िया3: Difference between revisions

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{{सूचना बक्सा ऑक्सीजन}}
([[अंग्रेज़ी भाषा|अंग्रेज़ी]]:Oxygen) ऑक्सीजन गैस की खोज सर्वप्रथम स्वीडन के शीले नामक वैज्ञानिक ने 1772 में की थी। ऑक्सीजन [[आवर्त सारणी]] का आठवाँ [[तत्व]] है। ऑक्सीजन का प्रतीकानुसार '''O''' है। इसका [[इलेक्ट्रॉनिक विन्यास]] 1s<sup>2</sup>, 2s<sup>2</sup>, 2p<sup>4</sup> होता है। इसे अवार्त सारणी के उपवर्ग 6A में रखा गया है। ऑक्सीजन रंग, स्वाद तथा गंधरहित एक गैस है। इसकी खोज, प्राप्ति अथवा प्रारंभिक अध्ययन में जे. प्रीस्टले और सी.डब्ल्यू. शेले ने महत्वपूर्ण कार्य किया है।
==प्राप्ति==
ऑक्सीजन पृथ्वी के अनेक पदार्थों में रहता है और वास्तव में अन्य तत्वों की तुलना में इसकी मात्रा सबसे अधिक है। ऑक्सीजन वायुमंडल में स्वतंत्र रूप में मिलता है और आयतन के अनुसार उसका लगभग पाँचवाँ भाग है। यौगिक रूप में पानी, खनिज तथा चट्टानों का यह महत्वपूर्ण अंश है। वनस्पति तथा प्राणियों के प्राय: सब शारीरिक पदार्थों का ऑक्सीजन एक आवश्यक तत्व है।
==प्रकृति==
ऑक्सीजन एक रंगहीन, गंधहीन [[गैस]] है तथा वायु से कुछ भारी होती है। ठण्डा करने पर यह [[नीला रंग|नीले रंग]] के [[द्रव]] में परिवर्तित हो जाती है। यह गैस स्वयं नहीं जलती है, परन्तु जलने में सहायक होती है। इसकी प्रकृति अनुचुम्बकीय है। ऑक्सीजन को कृत्रिम [[श्वसन]] के रूप में प्रयोग करते हैं। तथा इसे प्राण वायु कहते हैं। यह [[धातु|धातुओं]] को जोड़ने तथा [[क्लोरीन]], सल्फ्यूरिक [[अम्ल]] आदि के औद्योगिक निर्माण में प्रयोग की जाती है। वायु में क़रीब 29.29% मात्रा ऑक्सीजन की होती है। [[चांदी]] को गर्म करने पर यह ऑक्सीजन को अवशोषित कर लेती है तथा ठण्डा करने पर अवशोषित ऑक्सीजन निकल जाती है। इसे चाँदी का उदवमन कहते हैं।
==आक्साइड==
कई प्रकार के आक्साइडों (जैसे [[पारा]], [[चाँदी]] इत्यादि के) अथवा डाइआक्साइडों ([[लेड]], [[मैंगनीज]], [[बेरियम]] के) तथा ऑक्सीजनवाले बहुत से लवणों (जैसे पोटैशियम नाइट्रेट, क्लोरेट, परमैंगनेट तथा डाइक्रोमेट) को गरम करने से ऑक्सीजन प्राप्त हो सकता है। जब कुछ पराक्साइड पानी के साथ प्रक्रिया करते हैं तब भी ऑक्सीजन उत्पन्न होता है। अत: सोडियम पराक्साइड तथा मैंगनीज़ डाइआक्साइड या चूने के [[क्लोराइड]] का चूर्णित मिश्रण (अथवा इसी प्रकार के अन्य मिश्रण भी) ऑक्सीजन उत्पादन के लिए प्रयुक्त होते हैं। हाइपोक्लोराइड अथवा हाइपोब्रोमाइट (जैसे ब्लीचिंग पाउडर) के विघटन से या [[गंधक]] के [[अम्ल]] तथा मैंगनीज डाइआक्साइड या पोटैशियम परमैंगनेट की क्रिया से भी ऑक्सीजन मिलता है। गैसो की थोड़ी मात्रा तैयार करने के लिए हाइड्रोजन पराक्साइड अकेले अथवा उत्प्रेरक के साथ अधिक उपयुक्त है।
जब बेरियम आक्साइड को तप्त किया जाता है (लगभग 500° सें. तक) तब वह हवा से ऑक्सीजन लेकर पराक्साइड बनाता है। अधिक तापक्रम (लगभग 800° सें.) पर इसके विघटन से ऑक्सीजन प्राप्त होता है तथा पुन: उपयोग के लिए बेरियम आक्साइड बच रहता है। औद्योगिक उत्पादन के लिए ब्रिन विधि इसी क्रिया पर आधारित थी। ऑक्सीजन प्राप्त करने के विचार से कुछ अन्य आक्साइड भी (जैसे [[ताँबा]], पारा आदि के आक्साइड) इसी प्रकार उपयोगी हैं। हवा से ऑक्सीजन अलग करने के लिए अब [[द्रव]] हवा का अत्यधिक उपयोग होता है, जिसके प्रभाजित आसवन से ऑक्सीजन प्राप्त किया जाता है, पानी के विद्युत्श्लेषण (इलेक्ट्रॉलिसिस) से हाइड्रोजन के उत्पादन में ऑक्सीजन भी उपजात (बाइप्रॉडक्ट) के रूप में मिलता है।
==भौतिक गुण==
*द्रव ऑक्सीजन हल्के नीले रंग का होता है।
*ऑक्सीजन का घनत्व 1.4290 ग्राम प्रति लीटर है (0° सें., 750 मिलीमीटर [[दाब]] पर) और वायु की अपेक्षा यह गैस 1.10527 गुना भारी है।
*ऑक्सीजन का विशिष्टताप (स्थिर दाब पर) 0.2178 कैलोरी प्रति ग्राम, 15° सें. पर, है तथा स्थिर आयतन के विशिष्ट ताप से इसका अनुपात (15° सें. पर) 1.401 है।
*ऑक्सीजन के द्रवीकरण में विशेषज्ञों को विशेष कठिनाई हुई थी, क्योंकि इसका क्रांतिक (क्रिटिकल) ताप- 118.8° सें., दाब 49.7 वायुमंडल तथा घनत्व 0.430 ग्राम/सेंटीमीटर ३ है।
*ऑक्सीजन का क्वथनांक 183° सें. तथा ठोस ऑक्सीजन का द्रवणांक 218.4° सें. है। 15° सें. पर संगलन तथा वाष्पायन उष्माएँ क्रमानुसार 3.30 तथा 50.9 कैलोरी प्रति ग्राम है।
*ऑक्सीजन पानी में थोड़ा घुलनशील है, जो जलीय प्राणियों के श्वसन के लिए उपयोगी है। कुछ धातुएँ (जैसे पिघली हुई चाँदी) अथवा दूसरी वस्तुएँ (जैसे कोयला) ऑक्सीजन का शोषण बड़ी मात्रा में कर लेती हैं।
बहुत से तत्व ऑक्सीजन से सीधा संयोग करते हैं। इनमें कुछ (जैसे फासफोरस, सोडियम इत्यादि) तो साधारण ताप पर ही धीरे-धीरे क्रिया करते हैं, परंतु अधिकतर, जैसे कार्बन, गंधक, लोहा, मैग्नीशियम इत्यादि, गरम करने पर। ऑक्सीजन से भरे बर्तन में ये वस्तुएँ दहकती हुई अवस्था में डालते ही जल उठती हैं और जलने से आक्साइड बनता है। ऑक्सीजन में हाइड्रोजन गैस जलती है तथा पानी बनता है। यह क्रिया इन दोनों के गैसीय मिश्रण में विद्युत्‌ चिनगारी से अथवा उत्प्रेरक की उपस्थिति में भी होती है।
बहुत से तत्व ऑक्सीजन से सीधा संयोग करते हैं। इनमें कुछ (जैसे फासफोरस, सोडियम इत्यादि) तो साधारण ताप पर ही धीरे-धीरे क्रिया करते हैं, परंतु अधिकतर, जैसे कार्बन, गंधक, लोहा, मैग्नीशियम इत्यादि, गरम करने पर। ऑक्सीजन से भरे बर्तन में ये वस्तुएँ दहकती हुई अवस्था में डालते ही जल उठती हैं और जलने से आक्साइड बनता है। ऑक्सीजन में हाइड्रोजन गैस जलती है तथा पानी बनता है। यह क्रिया इन दोनों के गैसीय मिश्रण में विद्युत्‌ चिनगारी से अथवा उत्प्रेरक की उपस्थिति में भी होती है।


ऑक्सीजन बहुत से यौगिकों से भी क्रिया करता है। नाइट्रिक आक्साइड, फेरस तथा मैंगनस हाइड्राक्साइड का आक्सीकरण साधारण ताप पर ही होता है। हाइड्रोजन फास्फाइड, सिलिकन हाइड्राइड तथा जिंक इथाइल से तो क्रिया में इतना ताप उत्पन्न होता है कि संपूर्ण वस्तुएँ ही प्रज्वलित हो उठती हैं। लोहा, निकल इत्यादि महीन रूप में रहने पर और लेड सल्फाइड तथा कार्बन क्लोराइड सूर्य के प्रकाश में क्रिया करते हैं। इन क्रियाओं में पानी की उपस्थिति, चाहे यह सूक्ष्म मात्रा में ही क्यों न रहे, बहुत महत्वपूर्ण है।
ऑक्सीजन बहुत से यौगिकों से भी क्रिया करता है। नाइट्रिक आक्साइड, फेरस तथा मैंगनस हाइड्राक्साइड का आक्सीकरण साधारण ताप पर ही होता है। हाइड्रोजन फास्फाइड, सिलिकन हाइड्राइड तथा जिंक इथाइल से तो क्रिया में इतना ताप उत्पन्न होता है कि संपूर्ण वस्तुएँ ही प्रज्वलित हो उठती हैं। लोहा, निकल इत्यादि महीन रूप में रहने पर और लेड सल्फाइड तथा कार्बन क्लोराइड सूर्य के प्रकाश में क्रिया करते हैं। इन क्रियाओं में पानी की उपस्थिति, चाहे यह सूक्ष्म मात्रा में ही क्यों न रहे, बहुत महत्वपूर्ण है।
==उपयोग==
 
*जीवित प्राणियों के लिए ऑक्सीजन अति आवश्यक है। इसे वे श्वसन द्वारा ग्रहण करते हैं।
*द्रव ऑक्सीजन तथा [[कार्बन]], पेट्रोलियम, इत्यादि का मिश्रण अति विस्फोटक है। इसलिए इनका उपयोग कड़ी वस्तुओं (चट्टान इत्यादि) के तोड़ने में होता है।
*लोहे की मोटी चद्दर काटने अथवा मशीन के टूटे भागों को जोड़ने के लिए ऑक्सीजन तथा दहनशील गैस को ब्लो पाइप में जलाया जाता है। इस प्रकार उत्पन्न ज्वाला का ताप बहुत अधिक होता है।
*साधारण ऑक्सीजन के साथ हाइड्रोजन या ऐसिटिलीन जलाई जाती है। इसके लिए ये गैसें इस्पात के बेलनों में अति संपीडित अवस्था में बिकती हैं।
*ऑक्सीजन सिरका, वार्निश इत्यादि बनाने तथा असाध्य रोगियों के साँस लेने के लिए भी उपयोगी है।


दहकते हुए तिनके के प्रज्वलित होने से ऑक्सीजन की पहचान होती है (नाइट्रस आक्साइड से इसको भिन्नता नाइट्रिक आक्साइड के उपयोग से जानी जा सकती है)। ऑक्सीजन की मात्रा क्यूप्रस क्लोराइड, क्षारीय पायरोगैलोल के घोल, ताँबा अथवा इसी प्रकार की दूसरी उपयुक्त वस्तुओं द्वारा शोषित कराने से ज्ञात की जाती है।
दहकते हुए तिनके के प्रज्वलित होने से ऑक्सीजन की पहचान होती है (नाइट्रस आक्साइड से इसको भिन्नता नाइट्रिक आक्साइड के उपयोग से जानी जा सकती है)। ऑक्सीजन की मात्रा क्यूप्रस क्लोराइड, क्षारीय पायरोगैलोल के घोल, ताँबा अथवा इसी प्रकार की दूसरी उपयुक्त वस्तुओं द्वारा शोषित कराने से ज्ञात की जाती है।

Revision as of 17:08, 22 April 2011

बहुत से तत्व ऑक्सीजन से सीधा संयोग करते हैं। इनमें कुछ (जैसे फासफोरस, सोडियम इत्यादि) तो साधारण ताप पर ही धीरे-धीरे क्रिया करते हैं, परंतु अधिकतर, जैसे कार्बन, गंधक, लोहा, मैग्नीशियम इत्यादि, गरम करने पर। ऑक्सीजन से भरे बर्तन में ये वस्तुएँ दहकती हुई अवस्था में डालते ही जल उठती हैं और जलने से आक्साइड बनता है। ऑक्सीजन में हाइड्रोजन गैस जलती है तथा पानी बनता है। यह क्रिया इन दोनों के गैसीय मिश्रण में विद्युत्‌ चिनगारी से अथवा उत्प्रेरक की उपस्थिति में भी होती है।

ऑक्सीजन बहुत से यौगिकों से भी क्रिया करता है। नाइट्रिक आक्साइड, फेरस तथा मैंगनस हाइड्राक्साइड का आक्सीकरण साधारण ताप पर ही होता है। हाइड्रोजन फास्फाइड, सिलिकन हाइड्राइड तथा जिंक इथाइल से तो क्रिया में इतना ताप उत्पन्न होता है कि संपूर्ण वस्तुएँ ही प्रज्वलित हो उठती हैं। लोहा, निकल इत्यादि महीन रूप में रहने पर और लेड सल्फाइड तथा कार्बन क्लोराइड सूर्य के प्रकाश में क्रिया करते हैं। इन क्रियाओं में पानी की उपस्थिति, चाहे यह सूक्ष्म मात्रा में ही क्यों न रहे, बहुत महत्वपूर्ण है।


दहकते हुए तिनके के प्रज्वलित होने से ऑक्सीजन की पहचान होती है (नाइट्रस आक्साइड से इसको भिन्नता नाइट्रिक आक्साइड के उपयोग से जानी जा सकती है)। ऑक्सीजन की मात्रा क्यूप्रस क्लोराइड, क्षारीय पायरोगैलोल के घोल, ताँबा अथवा इसी प्रकार की दूसरी उपयुक्त वस्तुओं द्वारा शोषित कराने से ज्ञात की जाती है।

सं.ग्रं-जै.डब्ल्यू. मेलर : ए कॉम्प्रिहेंसिव ट्रीटाइज़ ऑन इनआर्गेनिक ऐंड थ्योरेटिकल केमिस्ट्री (१९२२); जे.आर. पारटिंगटन : ए टेक्स्ट बुक ऑव अनआर्गैनिक केमिस्ट्री। (विं.वा.प्र.)


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