कार्तिक: Difference between revisions
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*व्रती इस व्रत के आचरण से वर्ष भर के समस्त पापों से मुक्त हो जाता है।<ref> विष्णुधर्मोत्तर, 81, 1-4; कृत्यकल्पतरु, 418 द्वारा अदघृत; हेमाद्रि, 2.762</ref>। | *व्रती इस व्रत के आचरण से वर्ष भर के समस्त पापों से मुक्त हो जाता है।<ref> विष्णुधर्मोत्तर, 81, 1-4; कृत्यकल्पतरु, 418 द्वारा अदघृत; हेमाद्रि, 2.762</ref>। | ||
*कार्तिक मास में समस्त त्यागने योग्य वस्तुओं में मांस विशेष रूप से त्याज्य है। श्रीदत्त के 'समयप्रदीप' <ref>समयप्रदीप (46)</ref> तथा कृत्यरत्नाकर <ref>कृत्यरत्नाकर(पृ. 397-399)</ref> में उदघृत [[महाभारत]] के अनुसार कार्तिक मास में मांसभक्षण, विशेष रूप से [[शुक्ल पक्ष]] में, त्याग देने से इसका पुण्य शत वर्ष तक के तपों के बराबर हो जाता है। साथ ही यह भी कहा जाता है कि [[भारत]] के समस्त महान राजा, जिनमें [[ययाति]], [[राम]] तथा [[नल]] का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है, कार्तिक मास में मांस भक्षण नहीं करते थे। इसी कारण से उनको स्वर्ग की प्राप्ति हुई। [[नारद पुराण]] <ref>नारद पुराण (उत्तरार्द्ध, 21-58)</ref> के अनुसार कार्तिक मास में मांस खानेवाला चाण्डाल हो जाता है। <ref>'बकपंचक'</ref> | *कार्तिक मास में समस्त त्यागने योग्य वस्तुओं में मांस विशेष रूप से त्याज्य है। श्रीदत्त के 'समयप्रदीप' <ref>समयप्रदीप (46)</ref> तथा कृत्यरत्नाकर <ref>कृत्यरत्नाकर(पृ. 397-399)</ref> में उदघृत [[महाभारत]] के अनुसार कार्तिक मास में मांसभक्षण, विशेष रूप से [[शुक्ल पक्ष]] में, त्याग देने से इसका [[पुण्य]] शत वर्ष तक के तपों के बराबर हो जाता है। साथ ही यह भी कहा जाता है कि [[भारत]] के समस्त महान राजा, जिनमें [[ययाति]], [[राम]] तथा [[नल]] का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है, कार्तिक मास में मांस भक्षण नहीं करते थे। इसी कारण से उनको स्वर्ग की प्राप्ति हुई। [[नारद पुराण]] <ref>नारद पुराण (उत्तरार्द्ध, 21-58)</ref> के अनुसार कार्तिक मास में मांस खानेवाला चाण्डाल हो जाता है। <ref>'बकपंचक'</ref> | ||
*[[शिव]], चण्डी, [[सूर्य देवता|सूर्य]] तथा अन्यान्य देवों के मन्दिरों में कार्तिक मास में दीप जलाने तथा प्रकाश करने की बड़ी प्रशंसा की गयी है। | *[[शिव]], चण्डी, [[सूर्य देवता|सूर्य]] तथा अन्यान्य देवों के मन्दिरों में कार्तिक मास में दीप जलाने तथा प्रकाश करने की बड़ी प्रशंसा की गयी है। | ||
*समस्त कार्तिक मास में भगवान केशव का मुनि (अगस्त्य) पुष्पों से पूजन किया जाना चाहिए। ऐसा करने से [[अश्वमेध यज्ञ]] का पुण्य प्राप्त | *समस्त कार्तिक मास में भगवान केशव का मुनि (अगस्त्य) पुष्पों से पूजन किया जाना चाहिए। ऐसा करने से [[अश्वमेध यज्ञ]] का पुण्य प्राप्त |
Revision as of 09:53, 15 July 2011
- कार्तिक मास को दामोदर मास भी कहा जाता है। देखें दामोदर मास
- हिन्दू पंचांग के अनुसार वर्ष के आठवें माह का नाम कार्तिक है।
- कार्तिक बड़ा ही पवित्र मास माना जाता है। यह समस्त तीर्थों तथा धार्मिक कृत्यों से भी पवित्रतर है। इसका माहात्म्य स्कन्द पुराण [1], नारद पुराण [2], पद्म पुराण [3] में मिलता है।
- कार्तिक मास में एक हज़ार बार यदि गंगा स्नान करें और माघ मास में सौ बार स्नान करें, वैशाख मास में नर्मदा में करोड़ बार स्नान करें तो उन स्नानों का जो फल होता है वह फल प्रयाग में कुम्भ के समय पर स्नान करने से प्राप्त होता है।
- सम्पूर्ण कार्तिक मास में गृह से बाहर किसी नदी अथवा सरोवर में स्नान करना चाहिए।
- गायत्री मंत्र का जाप करते हुए हविष्यान्न केवल एक बार ग्रहण करना चाहिए।
- व्रती इस व्रत के आचरण से वर्ष भर के समस्त पापों से मुक्त हो जाता है।[4]।
- कार्तिक मास में समस्त त्यागने योग्य वस्तुओं में मांस विशेष रूप से त्याज्य है। श्रीदत्त के 'समयप्रदीप' [5] तथा कृत्यरत्नाकर [6] में उदघृत महाभारत के अनुसार कार्तिक मास में मांसभक्षण, विशेष रूप से शुक्ल पक्ष में, त्याग देने से इसका पुण्य शत वर्ष तक के तपों के बराबर हो जाता है। साथ ही यह भी कहा जाता है कि भारत के समस्त महान राजा, जिनमें ययाति, राम तथा नल का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है, कार्तिक मास में मांस भक्षण नहीं करते थे। इसी कारण से उनको स्वर्ग की प्राप्ति हुई। नारद पुराण [7] के अनुसार कार्तिक मास में मांस खानेवाला चाण्डाल हो जाता है। [8]
- शिव, चण्डी, सूर्य तथा अन्यान्य देवों के मन्दिरों में कार्तिक मास में दीप जलाने तथा प्रकाश करने की बड़ी प्रशंसा की गयी है।
- समस्त कार्तिक मास में भगवान केशव का मुनि (अगस्त्य) पुष्पों से पूजन किया जाना चाहिए। ऐसा करने से अश्वमेध यज्ञ का पुण्य प्राप्त
होता है[9]।
- कार्तिक पूर्णिमा शरद ऋतु की अन्तिम तिथि है। जो बहुत ही पवित्र और पुण्यदायिनी मानी जाती है। इस अवसर पर कई स्थानों पर मेले लगते हैं।
- सोनपुर में हरिहर क्षेत्र का मेला तथा गढ़मुक्तेश्वर, मेरठ, बटेश्वर, आगरा, पुष्कर, अजमेर आदि के विशाल मेले इसी पर्व पर लगते हैं।
- ब्रजमण्डल और कृष्णोपासना से प्रभावित अन्य प्रदेशों में इस समय रासलीला होती है।
- इस तिथि पर किसी को भी बिना स्नान और दान के नहीं रहना चाहिए।
- स्नान पवित्र स्थान एवं पवित्र नदियों में एवं दान अपनी शक्ति के अनुसार करना चाहिए। न केवल ब्राह्मण को अपितु निर्धन सम्बन्धियों, बहिन, बहिन के पुत्रों, पिता की बहिनों के पुत्रों, फूफा आदि को भी दान देना चाहिए।
- पुष्कर, कुरुक्षेत्र तथा वाराणसी के तीर्थ स्थान इस कार्तिकी स्नान और दान के लिए अति महत्त्वपूर्ण हैं।
- कार्तिकेय व्रत कार्तिक माह की षष्ठी को इस व्रत का अनुष्ठान किया जाता है। स्वामी कार्तिकेय इसके देवता हैं [10]।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ स्कन्द पुराण के वैष्णव खण्ड का नवम अध्याय
- ↑ नारद पुराण (उत्तरार्द्ध) अध्याय 22;
- ↑ पद्म पुराण 4.92
- ↑ विष्णुधर्मोत्तर, 81, 1-4; कृत्यकल्पतरु, 418 द्वारा अदघृत; हेमाद्रि, 2.762
- ↑ समयप्रदीप (46)
- ↑ कृत्यरत्नाकर(पृ. 397-399)
- ↑ नारद पुराण (उत्तरार्द्ध, 21-58)
- ↑ 'बकपंचक'
- ↑ तिथितत्त्व 147
- ↑ हेमाद्रि, व्रतखण्ड, 1.605; व्रतकालविवेक, पृष्ठ 24