गुरु हर किशन सिंह: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
गोविन्द राम (talk | contribs) No edit summary |
गोविन्द राम (talk | contribs) m (श्रेणी:प्रसिद्ध व्यक्तित्व (को हटा दिया गया हैं।)) |
||
Line 14: | Line 14: | ||
[[Category:सिक्ख_धर्म_कोश]] | [[Category:सिक्ख_धर्म_कोश]] | ||
[[Category:सिक्खों_के_गुरु]] | [[Category:सिक्खों_के_गुरु]] | ||
[[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व कोश]] | [[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व कोश]] | ||
[[Category:चरित कोश]] | [[Category:चरित कोश]] | ||
__INDEX__ | __INDEX__ | ||
__NOTOC__ | __NOTOC__ |
Revision as of 14:26, 10 September 2012
चित्र:Plus.gif | इस लेख में और पाठ सामग्री का जोड़ा जाना अत्यंत आवश्यक है। आप इसमें सहायता कर सकते हैं। "सुझाव" |
गुरु हर किशन सिंह अथवा गुरु हरि किशन (जन्म 7 जुलाई, 1656 पंजाब - मृत्यु- 30 मार्च, 1664)[1] सिक्खों के आठवें गुरु थे।
जीवन परिचय
गुरु हर किशन का जन्म 1656 में कीरतपुर के पंजाब में हुआ था। सिक्खों के आठवें गुरु थे, जो सिर्फ़ पाँच वर्ष की आयु में गद्दी पर बैठे और जिन्होंने सिर्फ़ तीन वर्ष तक शासन किया, लेकिन वह बहुत बड़े ज्ञानी थे और हिन्दू धर्मग्रंथ भगवद्गीता के ज्ञान से अपने पास आने वाले ब्राह्मणों को चमत्कृत कर देते थे। उनके बारे में कई चमत्कारों का वर्णन मिलता है। बालक के ज्ञान की परीक्षा लेने के उद्देश्य से राजा जय सिंह ने अपनी एक रानी को दासी के वेश में गुरु के चरणों के पास अन्य दासियों के साथ बिठा दिया। बताया जाता है कि गुरु हर किशन ने तुरंत रानी को पहचान लिया। हर किशन के बड़े भाई राम राय, जो पहले से ही मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब के समर्थक थे, ने उन्हें गुरु नियुक्त किए जाने का विरोध किया। इस मामले का फ़ैसला करने के लिए औरंगज़ेब ने आठ वर्षीय हर किशन को दिल्ली बुलाया।
मृत्यु
जब गुरु हर किशन दिल्ली पहुँचे, तो वहाँ हैज़े की महामारी फैली हुई थी। कई लोगों को स्वास्थ्य लाभ कराने के बाद उन्हें स्वयं चेचक निकल आई। 30 मार्च सन् 1664 में मरते समय उनके मुँह से 'बाबा बकाले' शब्द निकले, जिसका अर्थ था कि उनका उत्तराधिकारी बकाला गाँव में ढूँढा जाए।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख