बहरूपिया कला: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replace - " फकीर" to " फ़कीर") |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replace - "श्रृंगार" to "शृंगार") |
||
Line 1: | Line 1: | ||
बहरूपिया कला पूरे [[राजस्थान]] में प्रचलित है। बहुरूपिए अपना रूप चरित्र के अनुसार बदल लेते हैं और उसी के चरित्र के अनुरूप अभिनय करने में प्रवीण होते हैं । अपने | बहरूपिया कला पूरे [[राजस्थान]] में प्रचलित है। बहुरूपिए अपना रूप चरित्र के अनुसार बदल लेते हैं और उसी के चरित्र के अनुरूप अभिनय करने में प्रवीण होते हैं । अपने शृंगार और वेषभूषा की सहायता से वे प्राय: वही चरित्र लगने लग जाते हैं, जिसके रूप की नकल वह करते हैं। कई बार तो असल और नकल में भेद भी नहीं कर पाते हैं और लोग चकरा जाते हैं। | ||
==मनोरंजक नाट्य कला== | ==मनोरंजक नाट्य कला== | ||
किसी गाँव में आ जाने पर ये बहुत दिनों तक बालकों, वृद्धों सहित सभी नर-नारियों का मनोरंजन करते हैं। ये प्राय: शादी-ब्याह या मेलों-उत्सव आदि के अवसर पर गाँव में पहुँचते हैं। ये अपनी नकलची कला में अत्यंत ही दक्ष होते हैं। | किसी गाँव में आ जाने पर ये बहुत दिनों तक बालकों, वृद्धों सहित सभी नर-नारियों का मनोरंजन करते हैं। ये प्राय: शादी-ब्याह या मेलों-उत्सव आदि के अवसर पर गाँव में पहुँचते हैं। ये अपनी नकलची कला में अत्यंत ही दक्ष होते हैं। |
Revision as of 13:20, 25 June 2013
बहरूपिया कला पूरे राजस्थान में प्रचलित है। बहुरूपिए अपना रूप चरित्र के अनुसार बदल लेते हैं और उसी के चरित्र के अनुरूप अभिनय करने में प्रवीण होते हैं । अपने शृंगार और वेषभूषा की सहायता से वे प्राय: वही चरित्र लगने लग जाते हैं, जिसके रूप की नकल वह करते हैं। कई बार तो असल और नकल में भेद भी नहीं कर पाते हैं और लोग चकरा जाते हैं।
मनोरंजक नाट्य कला
किसी गाँव में आ जाने पर ये बहुत दिनों तक बालकों, वृद्धों सहित सभी नर-नारियों का मनोरंजन करते हैं। ये प्राय: शादी-ब्याह या मेलों-उत्सव आदि के अवसर पर गाँव में पहुँचते हैं। ये अपनी नकलची कला में अत्यंत ही दक्ष होते हैं।
पात्र
देवी – देवताओं, इतिहास पुरुषों व महापुरुषों का रूप धारण करने के अलावा ये गाँव के धनी-मानी लोगों की भी नकल करते हैं। गाँव के बोहरा, सेठजी, बनिया आदि भी इनके मुख्य पात्र होते हैं। पौराणिक ग्रंथों में भी इस कला के प्रचलित होने के प्रमाण मिलते हैं। हिन्दू राजाओं तथा मुग़ल बादशाह ने भी इस कला को उचित प्रश्रय दिया था।
विशिष्ट कला
बहरूपिया कला राजस्थान की अपनी विशेष कला है किन्तु आज के विकसित तकनीकी समाज में यह कला लगातार कम होती जा रही है।
- इस विलुप्तप्राय: कला का सबसे नामी कलाकार 'केलवा का परशुराम' है।
- भीलवाड़ा के जानकीलाल भाँड ‘बहरूपिया ‘ भी राजस्थान में प्रसिद्ध है और उसने अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक इस कला को पहुँचाया है। उसने दिल्ली में आयोजित भारत का ‘अपना उत्सव’, लंदन में आयोजित ‘इंटरनेशनल फेस्टिवल ऑफ स्ट्रीट म्यूजिक’ में राजस्थान का प्रतिनिधित्व भी किया तथा अनेक स्वांग का प्रदर्शन कर मनोरंजन किया। अपना उत्सव में तो वे फ़कीर के वेश में पहुंचे तो सुरक्षाकर्मी उन्हें भ्रमवश बाहर निकालने लग गए थे। वे उनके परिचय पत्र पर भी विश्वास नहीं कर रहे थे।
|
|
|
|
|