मातृ नवमी: Difference between revisions

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==नवमी श्राद्ध का महत्त्व==
==नवमी श्राद्ध का महत्त्व==
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==विधि==
==विधि==
मातृ नवमी के श्राद्ध की विधि इस प्रकार है-
मातृ नवमी के श्राद्ध की विधि इस प्रकार है-
*नवमी श्राद्ध में पांच ब्राह्मणों और एक ब्राह्मणी को भोजन करवाने का विधान है।
*नवमी श्राद्ध में पांच [[ब्राह्मण|ब्राह्मणों]] और एक ब्राह्मणी को भोजन करवाने का विधान है।
*सर्वप्रथम नित्यकर्म से निवृत होकर घर की दक्षिण दिशा में हरा वस्त्र बिछाएं।
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*भोजन के बाद सभी को यथाशक्ति वस्त्र, धन-दक्षिणा देकर उनको विदा करने से पूर्व आशीर्वाद ग्रहण करना चाहिए।
*भोजन के बाद सभी को यथाशक्ति वस्त्र, धन-दक्षिणा देकर उनको विदा करने से पूर्व आशीर्वाद ग्रहण करना चाहिए।



Revision as of 06:21, 17 September 2014

मातृ नवमी
अन्य नाम 'डोकरा नवमी', 'सौभाग्यवती श्राद्ध'
अनुयायी हिन्दू
उद्देश्य शास्त्रानुसार नवमी का श्राद्ध करने पर श्राद्धकर्ता को धन, संपत्ति व ऐश्वर्य प्राप्त होता है तथा सौभाग्य सदा बना रहता है।
प्रारम्भ वैदिक-पौराणिक
तिथि आश्विन माह, कृष्ण पक्ष, नवमी
संबंधित लेख श्राद्ध के नियम, तर्पण, पितर, श्राद्ध करने का स्थान, श्राद्ध की महत्ता, श्राद्ध फलसूची, श्राद्ध विधि, पिण्डदान
विशेष पितृ पक्ष के श्राद्ध यानी 16 श्राद्ध वर्ष के ऐसे सुनहरे दिन हैं, जिनमें व्यक्ति श्राद्ध प्रक्रिया में शामिल होकर 'देव ऋण', 'ऋषि ऋण' तथा 'पितृ ऋण', तीनों ऋणों से मुक्त हो सकता है।
अन्य जानकारी मातृ नवमी के दिन पुत्रवधूएँ अपनी स्वर्गवासी सास व माता के सम्मान एवं मर्यादा हेतु श्रद्धाजंलि देती हैं और धार्मिक कृत्य करती हैं।

मातृ नवमी आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि को कहा जाता है। इस नवमी तिथि का श्राद्ध पक्ष में बहुत ही महत्त्व है। सनातन धर्म की मान्यता के अनुसार श्राद्ध करने के लिए एक पूरा पखवाड़ा ही निश्चित कर दिया गया है। सभी तिथियाँ इन सोलह दिनों में आ जाती हैं। कोई भी पूर्वज जिस तिथि को इस लोक को त्यागकर परलोक गया हो, उसी तिथि को इस पक्ष में उनका श्राद्ध किया जाता है, लेकिन स्त्रियों के लिए नवमी तिथि विशेष मानी गई है, जिसे 'मातृ नवमी' भी कहते हैं। मातृ नवमी के दिन पुत्रवधूएँ अपनी स्वर्गवासी सास व माता के सम्मान एवं मर्यादा हेतु श्रद्धाजंलि देती हैं और धार्मिक कृत्य करती हैं।

नवमी श्राद्ध का महत्त्व

आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि पर पितृगणों की प्रसन्नता हेतु "नवमी का श्राद्ध" किया जाता है। यह तिथि माता और परिवार की विवाहित महिलाओं के श्राद्ध के लिए श्रेष्ठ मानी जाती है। यह तिथि मातृ नवमी भी कहलाती है। कुछ स्थानों पर इसे डोकरा नवमी भी कहा जाता है। नवमी तिथि का श्राद्ध मूल रूप से माता के निमित्त किया जाता है। इस श्राद्ध के दिन का एक और नियम भी है। इस दिन पुत्रवधुएं भी व्रत रखती हैं। यदि उनकी सास अथवा माता जीवित नहीं हो तो। इस श्राद्ध को सौभाग्यवती श्राद्ध भी कहा जाता है। शास्त्रानुसार नवमी का श्राद्ध करने पर श्राद्धकर्ता को धन, संपत्ति व ऐश्वर्य प्राप्त होता है तथा सौभाग्य सदा बना रहता है।[1]

विधि

मातृ नवमी के श्राद्ध की विधि इस प्रकार है-

  • नवमी श्राद्ध में पांच ब्राह्मणों और एक ब्राह्मणी को भोजन करवाने का विधान है।
  • सर्वप्रथम नित्यकर्म से निवृत होकर घर की दक्षिण दिशा में हरा वस्त्र बिछाएं।
  • पितृगण के चित्र अथवा प्रतीक हरे वस्त्र पर स्थापित करें।
  • पितृगण के निमित, तिल के तेल का दीपक जलाएं, सुघंधित धूप करें, जल में मिश्री और तिल मिलाकर तर्पण करें।
  • अपने पितरों के समक्ष गोरोचन और तुलसी पत्र समर्पित करना चाहित्य।
  • श्राद्धकर्ता को कुशासन पर बैठकर भागवत गीता के नवें अध्याय का पाठ करना चाहित।
  • इसके उपरांत ब्राह्मणों को लौकी की खीर, पालक, मूंगदाल, पूड़ी, हरे फल, लौंग-इलायची तथा मिश्री अर्पित करें।
  • भोजन के बाद सभी को यथाशक्ति वस्त्र, धन-दक्षिणा देकर उनको विदा करने से पूर्व आशीर्वाद ग्रहण करना चाहिए।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. नवमी का श्राद्ध-शुभ समय और पूजन विधि (हिन्दी) पंजाब केसरी। अभिगमन तिथि: 17 सितम्बर, 2014।

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