बिदेसिया: Difference between revisions

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==रचयिता==
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इन सुप्रसिद्ध 'बिदेसिया' गीतों के रचयिता [[भिखारी ठाकुर]] थे, जो [[बिहार]] के छपरा ज़िले के निवासी थे। भिखारी ठाकुर ने अपना परिचय देते हुए स्वयं लिखा है कि- "जाति के हजाम मोर कुतुबपुर ह मोकाम, छपरा से तीन मील दियरा में बाबूजी। पुरुब के कोना पर [[गंगा]] के किनारे पर, जाति पेसा बाटे विद्या नहीं बाटे बाबूजी।" इससे पता चलता है कि भिखारी ठाकुर एक अनपढ़ लोककवि थे, परंतु उनकी प्रतिभा बड़ी विलक्षण थी।
इन सुप्रसिद्ध 'बिदेसिया' गीतों के रचयिता [[भिखारी ठाकुर]] थे, जो [[बिहार]] के छपरा ज़िले के निवासी थे। भिखारी ठाकुर ने अपना परिचय देते हुए स्वयं लिखा है कि- "जाति के हजाम मोर कुतुबपुर ह मोकाम, छपरा से तीन मील दियरा में बाबूजी। पुरुब के कोना पर [[गंगा]] के किनारे पर, जाति पेसा बाटे विद्या नहीं बाटे बाबूजी।" इससे पता चलता है कि भिखारी ठाकुर एक अनपढ़ लोककवि थे, परंतु उनकी प्रतिभा बड़ी विलक्षण थी।<ref name="aa">{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=हिन्दी साहित्य कोश, भाग 1|लेखक= |अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी|संकलन= भारतकोश पुस्तकालय|संपादन= डॉ. धीरेंद्र वर्मा|पृष्ठ संख्या=432|url=}}</ref>
==नाटक==
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भिखारी ठाकुर ने 'बिदेसिया' नामक [[नाटक]] की रचना की है, जिसकी [[कथा]] संक्षेप में इस प्रकार है-
भिखारी ठाकुर ने 'बिदेसिया' नामक [[नाटक]] की रचना की है, जिसकी [[कथा]] संक्षेप में इस प्रकार है-
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"कोई व्यक्ति जीविकोपार्जन के लिए विदेश ([[कलकत्ता]], [[रंगून]]) जाता है। वहाँ जाकर वह अपने घर की सभी सुध-बुध भूल जाता है। उसकी स्त्री उसके वियोग के कारण अनेक कष्ट सहन करती है। अंत में किसी बटोही के द्वारा वह अपना दु:खद सन्देश पति के पास भेजती है, जिसे सुनकर वह अपनी नौकरी छोड़कर घर लौट आता है।"
"कोई व्यक्ति जीविकोपार्जन के लिए विदेश ([[कलकत्ता]], [[रंगून]]) जाता है। वहाँ जाकर वह अपने घर की सभी सुध-बुध भूल जाता है। उसकी स्त्री उसके वियोग के कारण अनेक कष्ट सहन करती है। अंत में किसी बटोही के द्वारा वह अपना दु:खद सन्देश पति के पास भेजती है, जिसे सुनकर वह अपनी नौकरी छोड़कर घर लौट आता है।"
====गीत====
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उपरोक्त कथा को [[भिखारी ठाकुर]] ने बड़ा ही सुन्दर नाटकीय रूप दिया है। इसी नाटक में वह सुप्रसिद्ध गीत उपलब्ध होता है, जो 'बिदेसिया' गीत के नाम से प्रख्यात है। चूँकि इस गीत की प्रत्येक पंक्ति में 'बिदेसिया' का नाम आता है, अत: इस लोकगीत को 'बिदेसिया' के नाम से अभिहित किया जाता है। इस गीत की कुछ पंक्तियाँ इस प्रकार हैं-
उपरोक्त कथा को [[भिखारी ठाकुर]] ने बड़ा ही सुन्दर नाटकीय रूप दिया है। इसी नाटक में वह सुप्रसिद्ध गीत उपलब्ध होता है, जो 'बिदेसिया' गीत के नाम से प्रख्यात है। चूँकि इस गीत की प्रत्येक पंक्ति में 'बिदेसिया' का नाम आता है, अत: इस लोकगीत को 'बिदेसिया' के नाम से अभिहित किया जाता है। इस गीत की कुछ पंक्तियाँ इस प्रकार हैं<ref name="aa"/>-


<blockquote>"गवना कराइ सइयाँ घर बइठले से अपने चलेले परदेस रे बिदेसिया। चढ़ती जवनियाँ बैरिन भइली हमरी से के मोर हरिहैं कलेस रे बिदेसिया॥ दिनवाँ बीते ला सइयाँ बटिया जोहत तोर रतिया बितेली जागि-जागि रे बिदेसिया। घारि-राति गइले पहर रात गइले से धधके करेजबा में आगि रे बिदेसिया।"</blockquote>
<blockquote>"गवना कराइ सइयाँ घर बइठले से अपने चलेले परदेस रे बिदेसिया। चढ़ती जवनियाँ बैरिन भइली हमरी से के मोर हरिहैं कलेस रे बिदेसिया॥ दिनवाँ बीते ला सइयाँ बटिया जोहत तोर रतिया बितेली जागि-जागि रे बिदेसिया। घारि-राति गइले पहर रात गइले से धधके करेजबा में आगि रे बिदेसिया।"</blockquote>
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इस गीत में बिरह की तीव्र व्यंजना पायी जाती है। लोक कवि ने विरह-वेदना की जो अनुभूति दिखायी है, उसकी उपलब्धि अन्यत्र कठिन है। समस्त गीत [[करुण रस]] से ओतप्रोत है, जिसका प्रभाव श्रोताओं के [[हृदय]] पर अमिट रूप से पड़ता है।
इस गीत में बिरह की तीव्र व्यंजना पायी जाती है। लोक कवि ने विरह-वेदना की जो अनुभूति दिखायी है, उसकी उपलब्धि अन्यत्र कठिन है। समस्त गीत [[करुण रस]] से ओतप्रोत है, जिसका प्रभाव श्रोताओं के [[हृदय]] पर अमिट रूप से पड़ता है।
==लोकप्रियता==
==लोकप्रियता==
[[भोजपुर ज़िला|भोजपुरी प्रदेश]] में बिदेसिया नाटक का इतना अधिक प्रचार व लोकप्रियता है कि सहस्त्रों की संख्या में ग्रामीण जनता इसके अभिनय को देखने के लिए उपस्थित होती है। अपनी युवावस्था में [[भिखारी ठाकुर]] इन अभिनयों में स्वयं भाग लेते थे। अब उनके शिष्यों ने अनेक [[नाटक]] मण्डलियों की स्थापना की है, जो इस नाटक का अभिनय करती हैं। भिखारी ठाकुर के 'बिदेसिया' नाटक की नकल पर अनेक 'बिदेसिया' नामक नाटकों की रचना भी हो गयी है, जिनमें से नाथशरण पाण्डेय की कृति अधिक प्रसिद्ध है। भिखारी ठाकुर ने इस नाटक को लिखकर उस नाटक-सम्प्रदाय की प्रतिष्ठा की है, जो 'बिदेसिया' के नाम से विख्यात है।
[[भोजपुर ज़िला|भोजपुरी प्रदेश]] में बिदेसिया नाटक का इतना अधिक प्रचार व लोकप्रियता है कि सहस्त्रों की संख्या में ग्रामीण जनता इसके अभिनय को देखने के लिए उपस्थित होती है। अपनी युवावस्था में [[भिखारी ठाकुर]] इन अभिनयों में स्वयं भाग लेते थे। अब उनके शिष्यों ने अनेक [[नाटक]] मण्डलियों की स्थापना की है, जो इस नाटक का अभिनय करती हैं। भिखारी ठाकुर के 'बिदेसिया' नाटक की नकल पर अनेक 'बिदेसिया' नामक नाटकों की रचना भी हो गयी है, जिनमें से नाथशरण पाण्डेय की कृति अधिक प्रसिद्ध है। भिखारी ठाकुर ने इस नाटक को लिखकर उस नाटक-सम्प्रदाय की प्रतिष्ठा की है, जो 'बिदेसिया' के नाम से विख्यात है।<ref name="aa"/>


इस नाटक में सामाजिक बुराइयों, विशेषकर '[[बाल विवाह]]' तथा 'वृद्ध विवाह' की और जनता का ध्यान उन्हीं की बोली भोजपुरी में आकर्षित किया गया है। इसकी [[भाषा]] बड़ी प्रांजल, सरस एवं मधुर है। यही कारण है कि यह नाटक जनता को इतना प्रिय है।
इस नाटक में सामाजिक बुराइयों, विशेषकर '[[बाल विवाह]]' तथा 'वृद्ध विवाह' की और जनता का ध्यान उन्हीं की बोली भोजपुरी में आकर्षित किया गया है। इसकी [[भाषा]] बड़ी प्रांजल, सरस एवं मधुर है। यही कारण है कि यह नाटक जनता को इतना प्रिय है।

Revision as of 13:31, 16 June 2015

विदेसिया उत्तर प्रदेश के पूर्वी ज़िलों मे, विशेषकर बलिया, देवरिया तथा बिहार के पश्चिमी ज़िलों (आरा और छपरा) में प्रचलित अत्यंत लोकप्रिय गीत हैं। ये साधारण जनता की जिह्वा पर सदा नाचते रहते हैं। भोजपुरी प्रदेश में बिदेसिया नाटक का इतना अधिक प्रचार व लोकप्रियता है कि सहस्त्रों की संख्या में ग्रामीण जनता इसके अभिनय को देखने के लिए उपस्थित होती है।

रचयिता

इन सुप्रसिद्ध 'बिदेसिया' गीतों के रचयिता भिखारी ठाकुर थे, जो बिहार के छपरा ज़िले के निवासी थे। भिखारी ठाकुर ने अपना परिचय देते हुए स्वयं लिखा है कि- "जाति के हजाम मोर कुतुबपुर ह मोकाम, छपरा से तीन मील दियरा में बाबूजी। पुरुब के कोना पर गंगा के किनारे पर, जाति पेसा बाटे विद्या नहीं बाटे बाबूजी।" इससे पता चलता है कि भिखारी ठाकुर एक अनपढ़ लोककवि थे, परंतु उनकी प्रतिभा बड़ी विलक्षण थी।[1]

नाटक

भिखारी ठाकुर ने 'बिदेसिया' नामक नाटक की रचना की है, जिसकी कथा संक्षेप में इस प्रकार है-

"कोई व्यक्ति जीविकोपार्जन के लिए विदेश (कलकत्ता, रंगून) जाता है। वहाँ जाकर वह अपने घर की सभी सुध-बुध भूल जाता है। उसकी स्त्री उसके वियोग के कारण अनेक कष्ट सहन करती है। अंत में किसी बटोही के द्वारा वह अपना दु:खद सन्देश पति के पास भेजती है, जिसे सुनकर वह अपनी नौकरी छोड़कर घर लौट आता है।"

गीत

उपरोक्त कथा को भिखारी ठाकुर ने बड़ा ही सुन्दर नाटकीय रूप दिया है। इसी नाटक में वह सुप्रसिद्ध गीत उपलब्ध होता है, जो 'बिदेसिया' गीत के नाम से प्रख्यात है। चूँकि इस गीत की प्रत्येक पंक्ति में 'बिदेसिया' का नाम आता है, अत: इस लोकगीत को 'बिदेसिया' के नाम से अभिहित किया जाता है। इस गीत की कुछ पंक्तियाँ इस प्रकार हैं[1]-

"गवना कराइ सइयाँ घर बइठले से अपने चलेले परदेस रे बिदेसिया। चढ़ती जवनियाँ बैरिन भइली हमरी से के मोर हरिहैं कलेस रे बिदेसिया॥ दिनवाँ बीते ला सइयाँ बटिया जोहत तोर रतिया बितेली जागि-जागि रे बिदेसिया। घारि-राति गइले पहर रात गइले से धधके करेजबा में आगि रे बिदेसिया।"

इस गीत में बिरह की तीव्र व्यंजना पायी जाती है। लोक कवि ने विरह-वेदना की जो अनुभूति दिखायी है, उसकी उपलब्धि अन्यत्र कठिन है। समस्त गीत करुण रस से ओतप्रोत है, जिसका प्रभाव श्रोताओं के हृदय पर अमिट रूप से पड़ता है।

लोकप्रियता

भोजपुरी प्रदेश में बिदेसिया नाटक का इतना अधिक प्रचार व लोकप्रियता है कि सहस्त्रों की संख्या में ग्रामीण जनता इसके अभिनय को देखने के लिए उपस्थित होती है। अपनी युवावस्था में भिखारी ठाकुर इन अभिनयों में स्वयं भाग लेते थे। अब उनके शिष्यों ने अनेक नाटक मण्डलियों की स्थापना की है, जो इस नाटक का अभिनय करती हैं। भिखारी ठाकुर के 'बिदेसिया' नाटक की नकल पर अनेक 'बिदेसिया' नामक नाटकों की रचना भी हो गयी है, जिनमें से नाथशरण पाण्डेय की कृति अधिक प्रसिद्ध है। भिखारी ठाकुर ने इस नाटक को लिखकर उस नाटक-सम्प्रदाय की प्रतिष्ठा की है, जो 'बिदेसिया' के नाम से विख्यात है।[1]

इस नाटक में सामाजिक बुराइयों, विशेषकर 'बाल विवाह' तथा 'वृद्ध विवाह' की और जनता का ध्यान उन्हीं की बोली भोजपुरी में आकर्षित किया गया है। इसकी भाषा बड़ी प्रांजल, सरस एवं मधुर है। यही कारण है कि यह नाटक जनता को इतना प्रिय है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 हिन्दी साहित्य कोश, भाग 1 |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |संपादन: डॉ. धीरेंद्र वर्मा |पृष्ठ संख्या: 432 |

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