मैं बन जाउँ तुम्हहि लेइ साथा: Difference between revisions
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गुरु पितु मातु प्रजा परिवारू। सब कहुँ परइ दुसह | गुरु पितु मातु प्रजा परिवारू। सब कहुँ परइ दुसह दु:ख भारू॥2॥</poem> | ||
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Latest revision as of 14:02, 2 June 2017
मैं बन जाउँ तुम्हहि लेइ साथा
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | चौपाई, सोरठा, छन्द और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | अयोध्या काण्ड |
मैं बन जाउँ तुम्हहि लेइ साथा। होइ सबहि बिधि अवध अनाथा॥ |
- भावार्थ
इस अवस्था में मैं तुमको साथ लेकर वन जाऊँ तो अयोध्या सभी प्रकार से अनाथ हो जाएगी। गुरु, पिता, माता, प्रजा और परिवार सभी पर दुःख का दुःसह भार आ पड़ेगा॥2॥
left|30px|link=अस जियँ जानि सुनहु सिख भाई|पीछे जाएँ | मैं बन जाउँ तुम्हहि लेइ साथा | right|30px|link=रहहु करहु सब कर परितोषू|आगे जाएँ |
चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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