बैर न बिग्रह आस न त्रासा: Difference between revisions
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बैर न बिग्रह आस न त्रासा। सुखमय ताहि सदा सब आसा॥ | बैर न बिग्रह आस न त्रासा। सुखमय ताहि सदा सब आसा॥ | ||
अनारंभ अनिकेत अमानी। अनघ अरोष दच्छ बिग्यानी॥3॥ | अनारंभ अनिकेत अमानी। अनघ अरोष दच्छ बिग्यानी॥3॥ |
Latest revision as of 13:08, 22 June 2016
बैर न बिग्रह आस न त्रासा
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | सोरठा, चौपाई, छन्द और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | उत्तरकाण्ड |
बैर न बिग्रह आस न त्रासा। सुखमय ताहि सदा सब आसा॥ |
- भावार्थ
न किसी से वैर करे, न लड़ाई-झगड़ा करे, न आशा रखे, न भय ही करे। उसके लिए सभी दिशाएँ सदा सुखमयी हैं। जो कोई भी आरंभ (फल की इच्छा से कर्म) नहीं करता, जिसका कोई अपना घर नहीं है (जिसकी घर में ममता नहीं है), जो मानहीन, पापहीन और क्रोधहीन है, जो (भक्ति करने में) निपुण और विज्ञानवान् है॥3॥
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चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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