कुन्थुनाथ: Difference between revisions
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*जैन धर्मावलम्बियों के अनुसार भगवान कुन्थुनाथ के गणधरों की कुल संख्या 35 थी, जिनमें सांब स्वामी इनके प्रथम गणधर थे। | *जैन धर्मावलम्बियों के अनुसार भगवान कुन्थुनाथ के गणधरों की कुल संख्या 35 थी, जिनमें सांब स्वामी इनके प्रथम गणधर थे। |
Latest revision as of 12:30, 25 October 2017
कुन्थुनाथ जैन धर्म के सत्रहवें तीर्थंकर थे। इनका जन्म हस्तिनापुर के इक्ष्वाकु वंश के राजा सूर्य की धर्मपत्नी माता श्रीदेवी के गर्भ से वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को कृत्तिका नक्षत्र में हुआ था। इनके शरीर का वर्ण सुवर्ण और चिह्न बकरा था।
- इनके पिता का नाम 'शूरसेन' (सूर्य) और माता का नाम 'श्रीकांता' (श्री देवी) था।[1]
- कुन्थुनाथ के यक्ष का नाम गन्धर्व और यक्षिणी का नाम बला देवी था।
- जैन धर्मावलम्बियों के अनुसार भगवान कुन्थुनाथ के गणधरों की कुल संख्या 35 थी, जिनमें सांब स्वामी इनके प्रथम गणधर थे।
- वैशाख कृष्ण पक्ष की पंचमी को कुन्थुनाथ ने हस्तिनापुर में दीक्षा ग्रहण की थी।
- दीक्षा प्राप्ति के पश्चात् सोलह वर्ष तक कठोर तप करने के बाद कुन्थुनाथ को चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को हस्तिनापुर में ही 'तिलक वृक्ष' के नीचे 'कैवल्य ज्ञान' की प्राप्ति हुई।
- सत्य और अहिंसा के साथ कई वर्षों तक साधक जीवन बिताने के बाद वैशाख कृष्ण पक्ष की एकादशी को सम्मेद शिखर पर कुन्थुनाथ ने निर्वाण प्राप्त किया था।[2]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ कुन्थुनाथ (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 21 फ़रवरी, 2014।
- ↑ श्री कुंथुनाथ जी (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 27 फ़रवरी, 2012।
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