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*[[संस्कृत]] में एक शिलालेख से जो यहाँ से प्राप्त हुआ था। विदित होता है कि महाराजधिराज देवपुत्र [[हुविष्क]] के पितामह ने जो सत्य और धर्म से सदैव स्थिर थे एक देवकुल बनवाया था जो कालांतर में नष्ट भ्रष्ट हो गया था। अत: किसी महादंडनायक के पुत्र ने जो राजकर्मचारी था इस देवकुल का जीर्णोद्धार करवाया और [[ब्राह्मण|ब्राह्मणों]] तथा अतिथियों के लिए प्रतिदिन सदाव्रत का प्रबंध किया।  
*माँट से कुषाण सम्राट् [[कनिष्क]] (120 ई0) और विमकेडफिसस की कायपरिमाण मूर्तियाँ प्राप्त हुई थीं जो [[मथुरा संग्रहालय]] में सुरक्षित हैं। कनिष्क की मूर्ति लाल पत्थर की है और वर्तमान दशा में शिरविहीन है। इस मूर्ति से कनिष्क की वेषभूषा का अच्छा ज्ञान होता है। इसमें इसे लंबा चोगा और घुटनों तक ऊंचे जूते पहले दिखाया गया है। यह वेशभूषा [[कुषाण|कुषाणों]] के आदयस्थान पश्चिमी [[चीन]] या [[तुर्किस्तान]] में आज तक प्रचलित है।
*माँट से कुषाण सम्राट् [[कनिष्क]] (120 ई0) और विमकेडफिसस की कायपरिमाण मूर्तियाँ प्राप्त हुई थीं जो [[मथुरा संग्रहालय]] में सुरक्षित हैं। कनिष्क की मूर्ति लाल पत्थर की है और वर्तमान दशा में शिरविहीन है। इस मूर्ति से कनिष्क की वेषभूषा का अच्छा ज्ञान होता है। इसमें इसे लंबा चोगा और घुटनों तक ऊंचे जूते पहले दिखाया गया है। यह वेशभूषा [[कुषाण|कुषाणों]] के आदयस्थान पश्चिमी [[चीन]] या [[तुर्किस्तान]] में आज तक प्रचलित है।
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Revision as of 13:16, 10 January 2011

  • माँट कस्बा भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के मथुरा नामक नगर में स्थित है। माँट मथुरा से आठ मील दूर है।
  • मथुरा - नौहझील मार्ग पर माँट स्थित हैं।
  • यह स्थान श्री कृष्ण-बलराम गोपबालकों के साथ गाय चराने का स्थान था।
  • यहाँ पर पहले से ही दधि, दूध के बड़े-बड़े बर्तन बनते थे और छोटी मटकी बनती थी। यहाँ होकर सखियाँ दधि, दूध के माँट लेकर बेचने हेतु जाया करती थीं, रास्ते में पूर्व वरदान पूर्ति हेतु श्री कृष्ण दधि, दूध लुट कर खाते थे और किसी दिन किसी की और किसी दिन किसी की मटकी गिरा देते थे।
  • इन उपरोक्त दोनों कारणों से इस स्थान का नाम माँट पड़ा। एक पुरानी कहावत भी है----

धनि-धनि माँट गांव के चोर।
वृन्दावन कूँ ऐसे देखे जैसे चन्द्र चकोर॥

  • गांव में श्री दाऊजी, श्री महादेव जी का मन्दिर एंव प्रसिद्ध श्री वैरुआ बाबा (देवराहा बाबा) का आश्रम दर्शनीय हैं।
  • इस ग्राम से कुषाणकाल के अनेक महत्त्वपूर्ण अवशेष प्राप्त हुए हैं।
  • संस्कृत में एक शिलालेख से जो यहाँ से प्राप्त हुआ था। विदित होता है कि महाराजधिराज देवपुत्र हुविष्क के पितामह ने जो सत्य और धर्म से सदैव स्थिर थे एक देवकुल बनवाया था जो कालांतर में नष्ट भ्रष्ट हो गया था। अत: किसी महादंडनायक के पुत्र ने जो राजकर्मचारी था इस देवकुल का जीर्णोद्धार करवाया और ब्राह्मणों तथा अतिथियों के लिए प्रतिदिन सदाव्रत का प्रबंध किया।
  • माँट से कुषाण सम्राट् कनिष्क (120 ई0) और विमकेडफिसस की कायपरिमाण मूर्तियाँ प्राप्त हुई थीं जो मथुरा संग्रहालय में सुरक्षित हैं। कनिष्क की मूर्ति लाल पत्थर की है और वर्तमान दशा में शिरविहीन है। इस मूर्ति से कनिष्क की वेषभूषा का अच्छा ज्ञान होता है। इसमें इसे लंबा चोगा और घुटनों तक ऊंचे जूते पहले दिखाया गया है। यह वेशभूषा कुषाणों के आदयस्थान पश्चिमी चीन या तुर्किस्तान में आज तक प्रचलित है।


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