शोडाष: Difference between revisions

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षोडास कालीन अभिलेख, प्रथम शताब्दी ई.पू.|thumb|250px शोडास (सोडास) (शासन-काल ई. पूर्व 80 से ई. पूर्व 57) राजुबुल (राजवुल) का पुत्र था। शोडास ने मथुरा पर लम्बे समय तक शासन किया। राजबुल के बाद उसका पुत्र शोडास (लगभग ई. पूर्व 80-57) शासनाधिकारी हुआ। 1869 ई. में मथुरा से पत्थर के एक 'सिंह-शीर्ष' के शिलालेख पर शोडास की उपाधि 'क्षत्रप' अंकित है, किन्तु मथुरा में ही मिले अन्य शिलालेखों में उसे 'महाक्षपत्र' कहा गया है। अनेक सिक्कों का मिलना इसका प्रमाण है। जिन पर “महाक्षत्रप” सम्बोधन है। कंकाली टीला (मथुरा) से प्राप्त एक शिलापट्ट पर सं0 (?) 72 का ब्रह्मी लेख है, जिसके अनुसार 'स्वामी महाक्षत्रप' शोडास के शासनकाल में जैन भिक्षु की शिष्या अमोहिनी ने एक जैन विहार की स्थापना की ।[1] राजुबुल की पत्नी कंबोजिका ने मथुरा में यमुना नदी के तट पर एक बौद्ध-बिहार निर्मित कराया था, जिसके लिए शोडास ने कुछ भूमि दान में दी थी । मथुरा के हीनयान मत वाले बौद्धों की 'सर्वास्तिवादिन्' नामक शाखा के भिक्षुओं के निर्वाह के लिए यह दान दिया गया था। सिंह-शीर्ष के इन खरोष्ठी लेखों से ज्ञात होता है कि शोडास के काल में मथुरा के बौद्धों में हीनयान तथा महायान (महासंधिक)-- मुख्यतः इन दोनों शाखाओं के अनुयायी थे और इनमें परस्पर वाद-विवाद भी होते थे। thumb|250px|शोडाष के समय का लेख

शोडाष के सिक्के

शोडाष के सिक्के दो प्रकार के है, पहले वे है जिन पर सामने की तरफ खड़ी हुई लक्ष्मी की मूर्ति तथा दूसरी तरफ लक्ष्मी का अभिषेक चित्रित है। इन सिक्कों पर हिन्दी में 'राजुबुल पुतस खतपस शोडासस' लिखा हुआ है ।[2] दूसरे प्रकार के सिक्कों पर लेख में केवल 'महाक्षत्रप शोडासस' चित्रित है । इससे अनुमान होता है कि शोडाष के पहले वाले सिक्के उस समय के होगें जब उसका पिता जीवित रहा होगा और दूसरे राजुबुल की मृत्यु के बाद, जब शोडाष को राजा के पूरे अधिकार मिल चुके होगें । [3] शोडाष तथा राजुबुल के सिक्के हिंद -यूनानी शासक स्ट्रैटो तथा मथुरा के मित्र-शासकों के सिक्कों से बहुत मिलते-जुलते हैं । शोडाष के अभिलेखों में सबसे महत्त्वपूर्ण वो लेख है जो एक सिरदल (धन्नी) पर उत्कीर्ण है। यह सिरदल मथुरा छावनी के एक कुएँ पर मिली थी, जो कटरा केशवदेव से लाई गई प्रतीत होती है।

शासन काल

महाक्षत्रप शोडाष का शासन-काल ई. पूर्व 80 से ई. पूर्व 57 के बीच माना जाता है। यह सबसे पहला अभिलेख है जिसमें मथुरा में कृष्ण-मंदिर के निर्माण का उल्लेख मिलता है। शोडाष का समकालीन तक्षशिला का शासक पतिक था। मथुरा के उक्त सिंह- शीर्ष पर खुदे हुए एक लेख में पतिक की उपाधि 'महाक्षत्रप' दी हुई है। तक्षशिला से प्राप्त सं078 में एक दूसरे शिलालेख में 'महादानपति' पतिक का नाम आया है। सम्भवतः ये दोनो पतिक एक ही है और जब शोडाष मथुरा का क्षत्रप था उसी समय पतिक तक्षशिला में महाक्षत्रप था। मथुरा-लेख में पतिक के साथ मेवकि का नाम भी आता है। गणेशरा गाँव (जि0 मथुरा) से मिले एक लेख में क्षत्रप घटाक का नाम भी है।[4] शोडाष के साथ इन क्षत्रपों का क्या संबंध था, यह विवरण कहीं नहीं मिलता है। ई. पूर्व पहली शती का पूर्वार्द्ध पश्चिमोत्तर भारत के शकों के शासन का समय था । इस समय में तक्षशिला से लेकर उत्तरी महाराष्ट्र् तक शकों का ही एकछ्त्र राज्य हो गया था। [5]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. देखिये- दिनेशचन्द्र सरकार-सेलेक्ट इंस्क्रिप्शन, जि.1,पृ. 118-19।
  2. एलन-वही,पृ. 190-91 । कुछ सिक्कों पर 'राजुबुलपुतस' के स्थान पर 'महास्वतपस पुतस 'रहता है।
  3. मथुरा के सिंह-शीर्ष लेख में शोडा के नाम के साथ 'क्षत्रप' ही मिलता है। संभवतःइस लेख के लगने के समय राजुबुल उस समय जीवित था और शोडस उस समय राजकुमार था। मथुरा प्रदेश पर राजुबुल का अधिकार उसकी वृद्धावस्था में हुआ प्रतीत होता है। शोडाष के समय में उत्तर-पश्चिम का एक बडा़ भाग उसके हाथ से निकल गया, पर मथुरा उसके अधिकार में बना रहा। एलन ने सर रिचर्ड बर्न के संग्रह के एक सिक्के का उल्लेख किया है, जिस पर 'महास्वतपसपुतस तोरणदासस' लेख मिलता है। यह सिक्का शोडस के सिक्कों जैसा ही है। एलन का अनुमान है कि तोरणदास(?) संभवतः राजुबुल के दूसरे पुत्र का नाम होगा। मोरा के लेख में राजुबुल के दूसरे पुत्र का उल्लेख मिलता है। (एलन वही, पृष्ठ 112 )
  4. जर्नल आफ रायल एशियाटिक सोसाइटी, 1912,पृ. 121
  5. कुछ विद्वानों का अनुमान है कि ये शासक पार्थियन (पह्ल्व) वशं के थे ठीक नहीं। राजुबुल, नहपान तथा उनके वंश के शासकों के जो चेहरे सिक्कों पर मिलते हैं उन्हें देखने से यह स्पष्ट पता चलता है कि पह्ल्वओं से उनकी नितान्त भिन्नता है।

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