रिट्ठिणेमि चरिउ: Difference between revisions
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*[[स्वयंभू देव]] की 'रिट्ठणेमिचरिउ' का दूसरा नाम 'हरिवंश पुराण' भी है। अठारह हज़ार श्लोक प्रमाण यह महाकाव्य 112 संधियों (सर्गों) में पूर्ण होता है। | *[[स्वयंभू देव]] की 'रिट्ठणेमिचरिउ' का दूसरा नाम 'हरिवंश पुराण' भी है। अठारह हज़ार श्लोक प्रमाण यह महाकाव्य 112 संधियों (सर्गों) में पूर्ण होता है। | ||
*इसमें तीर्थंकर नेमिनाथ के चरित्र के साथ [[श्रीकृष्ण]] और [[पांडव|पांडवों]] की कथा क विस्तार से वर्णन है। | *इसमें तीर्थंकर नेमिनाथ के चरित्र के साथ [[श्रीकृष्ण]] और [[पांडव|पांडवों]] की कथा क विस्तार से वर्णन है। |
Revision as of 19:01, 30 May 2011
- स्वयंभू देव की 'रिट्ठणेमिचरिउ' का दूसरा नाम 'हरिवंश पुराण' भी है। अठारह हज़ार श्लोक प्रमाण यह महाकाव्य 112 संधियों (सर्गों) में पूर्ण होता है।
- इसमें तीर्थंकर नेमिनाथ के चरित्र के साथ श्रीकृष्ण और पांडवों की कथा क विस्तार से वर्णन है।
- कथा का आधार सामान्यत: महाभारत और हरिवंशपुराण रहा है, लेकिन समसामयिक, राजनैतिक और सामाजिक चित्रांकन हेतु घटनाओं में यथास्थान अनेक परिवर्तन भी किये हैं। उससे काव्य में मौलिकता आ गयी है।
- काव्य में घटना बाहुल्य तो है ही, काव्य का प्राचुर्य भी जम कर देखने को मिलता है।
- इसमें कृष्ण जन्म, कृष्ण की बाललीलाएँ, कृष्ण विवाह कथा, प्रद्युम्न की जन्म कथा और तीर्थंकर नेमिनाथ की के चरित्र का विस्तार से वर्णन किया गया है। साथ ही कौरवों एवं पाण्डवों के जन्म, बाल्यकाल, शिक्षा, उनका परस्पर वैमनस्य, युधिष्ठिर द्वारा द्यूत क्रीड़ा और उसमें सब कुछ हार जाना तथा पांडवों को बारह वर्ष का वनवास आदि अनेक प्रसंगों का विस्तार से चित्रण है। कौरवों तथा पांडवों के युद्ध का वर्णन बड़ा सजीव बन पड़ा है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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