ब्रज चौरासी कोस की यात्रा: Difference between revisions

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#ग्राम पडरारी के वनखंडी में शिव मंदिर,  
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Revision as of 12:16, 25 May 2010

परिक्रमा मार्ग

इसी यात्रा में मथुरा की अंतरग्रही परिक्रमा भी शामिल है। मथुरा से चलकर यात्रा सबसे पहले भक्त ध्रुव की तपोस्थली

  1. मधुवन पहुँचती है। यहां से
  2. तालवन,
  3. कुमुदवन,
  4. शांतनु कुण्ड
  5. सतोहा,
  6. बहुलावन,
  7. राधा-कृष्ण कुण्ड,
  8. गोवर्धन
  9. काम्यक वन,
  10. संच्दर सरोवर,
  11. जतीपुरा,
  12. डीग का लक्ष्मण मंदिर,
  13. साक्षी गोपाल मंदिर
  14. जल महल,
  15. कमोद वन,
  16. चरन पहाड़ी कुण्ड,
  17. काम्यवन,
  18. बरसाना,
  19. नंदगांव,
  20. जावट,
  21. कोकिलावन,
  22. कोसी,
  23. शेरगढ,
  24. चीर घाट,
  25. नौहझील,
  26. श्री भद्रवन,
  27. भांडीरवन,
  28. बेलवन,
  29. राया वन, यहां का
  30. गोपाल कुण्ड,
  31. कबीर कुण्ड,
  32. भोयी कुण्ड,
  33. ग्राम पडरारी के वनखंडी में शिव मंदिर,
  34. दाऊजी,
  35. महावन,
  36. ब्रह्मांड घाट,
  37. चिंताहरण महादेव,
  38. गोकुल,
  39. लोहवन,
  40. वृन्दावन का मार्ग में तमाम पौराणिक स्थल हैं।

दर्शनीय स्थल

ब्रज चौरासी कोस यात्रा में दर्शनीय स्थलों की भरमार है। पुराणों के अनुसार उनकी उपस्थिति अब कहीं-कहीं रह गयी है। प्राचीन उल्लेख के अनुसार यात्रा मार्ग में

  • 12 वन,
  • 24 उपवन,
  • चार कुंज,
  • चार निकुंज,
  • चार वनखंडी,
  • चार ओखर,
  • चार पोखर,
  • 365 कुण्ड,
  • चार सरोवर,
  • दस कूप,
  • चार बावरी,
  • चार तट,
  • चार वट वृक्ष,
  • पांच पहाड़,
  • चार झूला,
  • 33 स्थल रास लीला के तो हैं हीं, इनके अलावा कृष्णकालीन अन्य स्थल भी हैं। चौरासी कोस यात्रा मार्ग मथुरा में ही नहीं, अलीगढ़, भरतपुर, गुड़गांव, फरीदाबाद की सीमा तक में पड़ता है, लेकिन इसका अस्सी फीसदी हिस्सा मथुरा में है।

36 नियमों का नित्य पालन ब्रज यात्रा के अपने नियम हैं इसमें शामिल होने वालों के प्रतिदिन 36 नियमों का कड़ाई से पालन करना होता है, इनमें प्रमुख हैं धरती पर सोना, नित्य स्नान, ब्रह्मचर्य पालन, जूते-चप्पल का त्याग, नित्य देव पूजा, कर्थसंकीर्तन, फलाहार, क्रोध, मिथ्या, लोभ, मोह व अन्य दुर्गुणों का त्याग प्रमुख है।