करेड़ा पार्श्वनाथ जैन मन्दिर: Difference between revisions

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करेड़ा पार्श्वनाथ जैन मन्दिर राजस्थान के चित्तौड़गढ़ शहर से 50 किलोमीटर दूर स्टेट हाईवे नंबर नौ पर गाँव भूपालसागर में स्थित है। यह मन्दिर मेवाड़ में श्रीनाथजी, चारभुजाजी, एकलिंगजी, रणकपुर एवं केसरियाजी के समान ही महत्वपूर्ण स्थान रखता है। प्रतिवर्ष यहाँ लाखों की संख्या में श्रृद्धालु व पर्यटक वर्ष भर आते रहते हैं। यह खूबसूरत मन्दिर सफ़ेद रंग के पत्थरों से सजकर भव्य रूप धारण किए हुए है। 52 जिनालय युक्त इस मन्दिर में जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ की 31 इंच की श्याम वर्ण पद्मासनस्थ मूर्ति विराजमान है। यह मूर्ति विक्रमी संवत 1656 में बनी बताई जाती है। इस मन्दिर के बारे में यह भी कहा जाता है कि जो व्यक्ति इस मन्दिर के पूर्ण दर्शन कर लेता है, उसे 52 तीर्थों के दर्शन का लाभ मिलता है।

इतिहास

इस मन्दिर के इतिहास के बारे में कई मत हैं, जिनमें प्रमुख है 'सुकृत सागर' ग्रंथ, जिसके अनुसार इस मन्दिर का निर्माण आचार्य धर्मघोष सूरीजी के उपदेश से प्रभावित होकर मांडवगढ़, मध्य प्रदेश के तत्कालीन महामंत्री संघपति देवाशाह के पुत्र पेथड़शाह ने विक्रम संवत 1321 में करवाया था, जिसे संघपति पेथड़शाह के पुत्र झाझड़शाह द्वारा विक्रम संवत 1340 में विशाल रूप दिया गया। 52 जिनालय युक्त इस जैन मन्दिर में जैन सम्प्रदाय के 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ भगवान की 31 इंच बड़ी श्याम वर्ण पद्मासनस्थ मुर्ति स्थापित है, जो कि विक्रम संवत 1656 में बनी थी।[1]

निर्माण शैली

श्वेत पाषाण से बने इस भव्य मन्दिर के गर्भगृह में भगवान पार्श्वनाथ की प्रतिमा विराजमान है, जिसके दर्शन मात्र से ही मन को शांति मिल जाती है। मन्दिर में दो कलश, दो शिखर व दो ध्वज दण्ड़ भी बने हुए हैं। मन्दिर के मण्डप के दोनों तरफ़ छोटे-छोटे मण्डप वाले दो और मन्दिर हैं। इस मन्दिर का विशाल जीर्णोद्धार विक्रम संवत 2029 में प्रारंभ कराया गया था, जो 2 वर्षों तक चलता रहा। इस पर 12 लाख 50 हज़ार रुपये की धनराशि का व्यय हुआ। तब जाकर विक्रम संवत 2033 में माघ माह के शुक्ल पक्ष की 13 तिथि को मन्दिर की पुनः प्रतिष्ठा कराई गई, जिसमें विभिन्न तीर्थों के नाम से 51 पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमाएँ व एक भगवान महावीर के नाम की प्रतिमा विधिवत स्थापित कराई गई। इससे कहा जाता है कि जो व्यक्ति इस मन्दिर के पूर्ण दर्शन कर ले, उसे 52 तीर्थों के दर्शन का लाभ प्राप्त हो जाता है।[1]

मेले का आयोजन

मन्दिर में रंग मंड़प, सभा मंड़प व नव चौकी में कलात्मक खुदाई की हुई है, जो देखने योग्य है। लोगों का यह भी कहना है कि प्रतिवर्ष पौष माह के कृष्ण पक्ष की दशमी को सूर्य की पहली किरण सीधी श्यामवर्ण पार्श्वनाथ प्रतिमा पर पड़ती है, जिसे देखने हज़ारों की संख्या में भक्त यहाँ आते हैं। उसी दिन से श्रीपार्श्वनाथ भगवान के जन्म-दिवस के अवसर पर भूपालसागर में तीन दिवसीय विशाल मेला लगता है, जिसमें आस-पास के गाँवों के साथ ही दूर-दूर से कई जैन यात्री भी दर्शनार्थ आते हैं।

दर्शन का समय

'करेड़ा पार्श्वनाथ जैन मन्दिर' के पट प्रातः 5 बजे खुलते हैं। प्रातःकाल प्रक्षाल पूजा, केसर पूजा, पुष्प पूजा व मुकुट धारण होता है। इसके बाद 10 बजे आरती व सायंकाल 7:30 बजे आरती और मंगलदीप होता है। मन्दिर के बाहर प्रवेश द्वार पर दोनों ओर सवारीयुक्त हाथी बने हुए थे, जिन्हें वर्तमान समय में हटाकर उसके स्थान पर कलात्मक प्रवेश द्वार बनाया गया है।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 करेड़ा पार्श्वनाथ जैन मंदिर (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल.)। । अभिगमन तिथि: 04 मार्च, 2012।

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