दशलक्षण पर्व: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
(''''दशलक्षण पर्व''' जैन धर्म के मानने वालों का प्रमुख प...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
No edit summary
Line 1: Line 1:
'''दशलक्षण पर्व''' [[जैन धर्म]] के मानने वालों का प्रमुख पर्व है। यह पर्व जैनियों के एक और पर्व '[[पर्यूषण पर्व|पर्यूषण]]' के अंतिम दिन से आरम्भ होता है। दशलक्षण पर्व और नवरात्र पर्व संयम और आत्मशुद्धि के त्योहार हैं। दोनों में ही त्याग, तप, उपवास, परिष्कार, संकल्प, स्वाध्याय और आराधना पर प्राय: ज़ोर दिया जाता है। यदि उपवास न भी हो तो भी यथासंभव तामसिक भोजन या कृत्यों से दूर रहने का प्रयास किया जाता है। यद्यपि नवदुर्गा वर्ष में दो बार<ref>शारदीय और वासंतिक</ref> आता है, जबकि दशलक्षण पर्व तीन बार, भादों, माघ और चैत्र के महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी से लेकर चतुर्दशी तक आता है।
'''दशलक्षण पर्व''' [[जैन धर्म]] के मानने वालों का प्रमुख पर्व है। यह पर्व जैनियों के एक और पर्व '[[पर्यूषण पर्व|पर्यूषण]]' के अंतिम दिन से आरम्भ होता है। दशलक्षण पर्व और [[नवरात्र]] पर्व संयम और आत्मशुद्धि के त्योहार हैं। दोनों में ही त्याग, तप, उपवास, परिष्कार, संकल्प, स्वाध्याय और आराधना पर प्राय: ज़ोर दिया जाता है। यदि [[उपवास]] न भी हो तो भी यथासंभव तामसिक भोजन या कृत्यों से दूर रहने का प्रयास किया जाता है। यद्यपि नवदुर्गा वर्ष में दो बार<ref>शारदीय और वासंतिक</ref> आता है, जबकि दशलक्षण पर्व तीन बार, [[भादों]], [[माघ मास|माघ]] और [[चैत्र मास|चैत्र]] के महीने के [[शुक्ल पक्ष]] की [[पंचमी]] से लेकर [[चतुर्दशी]] तक आता है।
==लक्षण==
==लक्षण==
दशलक्षण पर्व के दस मुख्य लक्षण माने गये हैं-
दशलक्षण पर्व के दस मुख्य लक्षण माने गये हैं-
Line 13: Line 13:
#ब्रह्मचर्य
#ब्रह्मचर्य
==शिक्षा तथा व्रत==
==शिक्षा तथा व्रत==
जैनियों का यह प्रमुख पर्व त्याग, संकल्प और आराधना पर अत्यधिक बल देता है। जैन धर्म के लोगों के लिए यह पर्व बहुत ही महत्वपूर्ण है। इसलिए इस पर्व को 'राजा' कहा जाता है। जैनियों का यह पवित्र पर्व मानव समाज को 'जिओ और जीने दो' का मानवीय सन्देश देता है। इस दिन जैन श्रद्धालु मंदिरों को भव्यतापूर्वक सजाते हैं। भगवान का अभिषेक कर उनकी [[पूजा]] करते हैं। दोपहर के बाद [[जल]] यात्रा की विशाल शोभा यात्रा निकाली जाती है और संध्या के समय धर्म पर आधारिक कुछ कार्यक्रम होते हैं। संयम और आत्मशुद्धि का त्यौहार दशलक्षण पर्व के दौरान श्रद्धालु श्रद्धापूर्वक उपवास रखते हैं। मंदिरों में जाकर स्वाध्याय करते हैं। इस व्रत के दौरान बाज़ार की खाद्य वस्तु पूरी तरह से खाना निषिद्ध है। इस दिन जो भी व्रती जैसा व्रत लेते हैं, उसी के अनुसार अपना व्रत पूर्ण करते हैं। इस पावन पर्व के दौरान जैन मुनियों के सत्संग आयोजित किए जाते हैं। इनमें बड़ी संख्यां में जैन श्रद्धालु भाग लेकर अपने जीवन को सार्थक तथा सफल बनाने की कामना करते हैं।
जैनियों का यह प्रमुख पर्व त्याग, संकल्प और आराधना पर अत्यधिक बल देता है। [[जैन धर्म]] के लोगों के लिए यह पर्व बहुत ही महत्वपूर्ण है। इसलिए इस पर्व को 'राजा' कहा जाता है। जैनियों का यह पवित्र पर्व मानव समाज को 'जिओ और जीने दो' का मानवीय सन्देश देता है। इस दिन जैन श्रद्धालु मंदिरों को भव्यतापूर्वक सजाते हैं। भगवान का [[अभिषेक]] कर उनकी [[पूजा]] करते हैं। दोपहर के बाद [[जल]] यात्रा की विशाल शोभा यात्रा निकाली जाती है और संध्या के समय धर्म पर आधारिक कुछ कार्यक्रम होते हैं। संयम और आत्मशुद्धि का त्यौहार दशलक्षण पर्व के दौरान श्रद्धालु श्रद्धापूर्वक उपवास रखते हैं। मंदिरों में जाकर स्वाध्याय करते हैं। इस व्रत के दौरान बाज़ार की खाद्य वस्तु पूरी तरह से खाना निषिद्ध है। इस दिन जो भी व्रती जैसा व्रत लेते हैं, उसी के अनुसार अपना व्रत पूर्ण करते हैं। इस पावन पर्व के दौरान [[जैन]] मुनियों के सत्संग आयोजित किए जाते हैं। इनमें बड़ी संख्यां में जैन श्रद्धालु भाग लेकर अपने जीवन को सार्थक तथा सफल बनाने की कामना करते हैं।


{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक=|पूर्णता=|शोध=}}
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक=|पूर्णता=|शोध=}}

Revision as of 10:27, 15 March 2012

दशलक्षण पर्व जैन धर्म के मानने वालों का प्रमुख पर्व है। यह पर्व जैनियों के एक और पर्व 'पर्यूषण' के अंतिम दिन से आरम्भ होता है। दशलक्षण पर्व और नवरात्र पर्व संयम और आत्मशुद्धि के त्योहार हैं। दोनों में ही त्याग, तप, उपवास, परिष्कार, संकल्प, स्वाध्याय और आराधना पर प्राय: ज़ोर दिया जाता है। यदि उपवास न भी हो तो भी यथासंभव तामसिक भोजन या कृत्यों से दूर रहने का प्रयास किया जाता है। यद्यपि नवदुर्गा वर्ष में दो बार[1] आता है, जबकि दशलक्षण पर्व तीन बार, भादों, माघ और चैत्र के महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी से लेकर चतुर्दशी तक आता है।

लक्षण

दशलक्षण पर्व के दस मुख्य लक्षण माने गये हैं-

  1. क्षमा
  2. विनम्रता
  3. माया का विनाश
  4. निर्मलता
  5. सत्य
  6. संयम
  7. तप
  8. त्याग
  9. परिग्रह का निवारण
  10. ब्रह्मचर्य

शिक्षा तथा व्रत

जैनियों का यह प्रमुख पर्व त्याग, संकल्प और आराधना पर अत्यधिक बल देता है। जैन धर्म के लोगों के लिए यह पर्व बहुत ही महत्वपूर्ण है। इसलिए इस पर्व को 'राजा' कहा जाता है। जैनियों का यह पवित्र पर्व मानव समाज को 'जिओ और जीने दो' का मानवीय सन्देश देता है। इस दिन जैन श्रद्धालु मंदिरों को भव्यतापूर्वक सजाते हैं। भगवान का अभिषेक कर उनकी पूजा करते हैं। दोपहर के बाद जल यात्रा की विशाल शोभा यात्रा निकाली जाती है और संध्या के समय धर्म पर आधारिक कुछ कार्यक्रम होते हैं। संयम और आत्मशुद्धि का त्यौहार दशलक्षण पर्व के दौरान श्रद्धालु श्रद्धापूर्वक उपवास रखते हैं। मंदिरों में जाकर स्वाध्याय करते हैं। इस व्रत के दौरान बाज़ार की खाद्य वस्तु पूरी तरह से खाना निषिद्ध है। इस दिन जो भी व्रती जैसा व्रत लेते हैं, उसी के अनुसार अपना व्रत पूर्ण करते हैं। इस पावन पर्व के दौरान जैन मुनियों के सत्संग आयोजित किए जाते हैं। इनमें बड़ी संख्यां में जैन श्रद्धालु भाग लेकर अपने जीवन को सार्थक तथा सफल बनाने की कामना करते हैं।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. शारदीय और वासंतिक

संबंधित लेख