दीपमलिका पर्व: Difference between revisions
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Revision as of 06:31, 23 March 2012
दीपमलिका पर्व जैन धर्म के अनुयायियों द्वारा कार्तिक मास की अमावस्या को बड़े उल्लास के साथ मनाया जाने वाला पर्व है। जैनियों की यह मान्यता है कि कार्तिक मास की अमावस्या को ही भगवान महावीर ने पावापुरी के एक उद्यान में मोक्ष को प्राप्त किया था। इस समय इन्द्र सहित कई देवताओं ने पावापुरी नगरी दीपों से सजा दिया था। तभी से जैन धर्म में यह पर्व 'दीपमलिका पर्व' के नाम से मनाया जाता है।
ऐतिहासिक तथ्य
दीपमलिका जैन धर्मावलम्बियों का एक प्रमुख त्यौहार है। ऐसी मान्यता है कि जब भगवान महावीर पावापुरी के मनोहर उद्यान में जाकर विराजमान हुए और जब चतुर्थकाल पूरा होने में तीन वर्ष, आठ माह बाकी थे, तब कार्तिक अमावस्या के दिन प्रात:काल के समय स्वाति नक्षत्र के दौरान स्वामी महावीर ने सांसारिक जीवन से मुक्त होकर मोक्षधाम को प्राप्त कर लिया। इस समय देवराज इन्द्र सहित सभी देवों ने आकर भगवान महावीर के शरीर की पूजा की और पूरी पावानगरी को दीपकों से सजाकर प्रकाशयुक्त कर दिया। उसी समय से आज तक यही परम्परा जैन धर्म में चली आ रही है और यही वजह है कि जैन धर्म के अनुयायी इस दिन प्रतिवर्ष दीपमलिका सजाकर महावीर का निर्वाण उत्सव मानते हैं। एक मान्यता यह भी है कि इसी दिन शाम श्री गौतम स्वामी को भी केवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई थी।[1]
अहिंसा का सन्देश
दीपमलिका महापर्व के सुअवसर पर सभी जैन धर्मावलम्बी संध्या के समय दीपों की माला सजाकर नई बहीखातों का शुभारम्भ करते हैं। वे सभी बाधाओं को हरने वाले भगवान गणेश और माता महालक्ष्मी की पूजा करते हैं। श्रद्धालुओं में मान्यता है कि बारह गणों के स्वामी गौतम गणधर ही गौड़ी पुत्र गणेश हैं और भक्तों की सभी समस्याओं का नाश करने वाले हैं। भगवान महावीर और गौतम गणधर की स्मृति का पर्व दीपमलिका मानव समाज को अहिंसा और शांति का सन्देश देता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ दीपमलिका पर्व (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 23 मार्च, 2012।
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