कोनेरू हम्पी: Difference between revisions
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इतनी कम उम्र में हम्पी इतना कुछ पा चुकी है कि आगे उसके लिए खुला आकाश है। अपनी मेहनत के बल पर एक दिन विश्व चैंपियन बन कर दिखाएगी। हम्पी को शतरंज खेलने के अतिरिक्त टी.वी. देखना पसन्द है, जिसमें वह हिन्दी व तेलुगु | इतनी कम उम्र में हम्पी इतना कुछ पा चुकी है कि आगे उसके लिए खुला आकाश है। अपनी मेहनत के बल पर एक दिन विश्व चैंपियन बन कर दिखाएगी। हम्पी को शतरंज खेलने के अतिरिक्त टी.वी. देखना पसन्द है, जिसमें वह हिन्दी व तेलुगु फ़िल्में देखती है। इसके अतिरिक्त पुस्तकें पढ़ने में उसकी रुचि है। वह [[विश्वनाथन आनंद]] को अपना आदर्श मानती है। | ||
==ग्रांड मास्टर== | ==ग्रांड मास्टर== | ||
भारत की सबसे कम उम्र की महिला ग्रांड मास्टर कोनेरू हम्पी की विश्व में वरीयता क्रम नम्बर दो तक पहुँच गई फिर भी उसे कोई स्पांसर नहीं मिल पाया। इन्हीं परिस्थितियों के चलते [[विजयवाड़ा]] की इस खिलाड़ी को [[अगस्त]] [[2006]] में ओ एन. जी. सी. में पर्सनल एडमिनिस्ट्रेटर की नौकरी लेनी पड़ी। कोनेरू का मानना है कि शतरंज एक मंहगा खेल है जिसके लिए खिलाड़ी को टूर्नामेंटों में भाग लेने के लिए अनेकों बार विदेश यात्रा करनी पड़ती है। कोनेरू ने नौकरी इसीलिए की है ताकि उसके यात्रा खर्चे कंपनी वहन कर सके। अधिकांश कंपनियाँ क्रिकेट खिलाड़ियों को स्पांसर करना चाहती हैं। | भारत की सबसे कम उम्र की महिला ग्रांड मास्टर कोनेरू हम्पी की विश्व में वरीयता क्रम नम्बर दो तक पहुँच गई फिर भी उसे कोई स्पांसर नहीं मिल पाया। इन्हीं परिस्थितियों के चलते [[विजयवाड़ा]] की इस खिलाड़ी को [[अगस्त]] [[2006]] में ओ एन. जी. सी. में पर्सनल एडमिनिस्ट्रेटर की नौकरी लेनी पड़ी। कोनेरू का मानना है कि शतरंज एक मंहगा खेल है जिसके लिए खिलाड़ी को टूर्नामेंटों में भाग लेने के लिए अनेकों बार विदेश यात्रा करनी पड़ती है। कोनेरू ने नौकरी इसीलिए की है ताकि उसके यात्रा खर्चे कंपनी वहन कर सके। अधिकांश कंपनियाँ क्रिकेट खिलाड़ियों को स्पांसर करना चाहती हैं। |
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thumb|250px|कोनेरू हम्पी कोनेरू हम्पी (जन्म - 31 मार्च 1987) 9 वर्ष की उम्र में कोनेरू हम्पी ने राष्ट्रीय शतरंज चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीत कर अपने खिलाड़ी जीवन की बेहतरीन शुरुआत कर दी। वह महिला ग्रैंड मास्टर का खिताब भी पा चुकी हैं।
सहयोग
कोनेरू हम्पी के पिता श्री कोनेरू अशोक ही हम्पी के कोच हैं। 1996 में 9 वर्ष से कम आयु वर्ग की लड़कियों की राष्ट्रीय शतरंज चैंपियनशिप में मुम्बई में हम्पी ने स्वर्ण पदक हासिल किया। उसके पश्चात 1997 में दस वर्ष से कम आयु वर्ग की लड़कियों की राष्ट्रीय रैपिड शतरंज चैंपियनशिप में चेन्नैइ में उसने स्वर्ण पदक प्राप्त किया।
कोनेरू हम्पी की शिक्षा चलपथी रेजीडेशिंयल स्कूल, गुंटूर में हुई। उसकी माता का नाम कोनेरू लता है तथा बहन का नाम कोनेरू चन्द्र हासा है।
अशोक ने अपनी बेटी का नाम हम्पी इसलिए रखा क्योंकि इसका एक विदेशी भाषा में अर्थ होता है 'चैम्पियन'। इसके पीछे उसकी अपनी एक इच्छा और एक दृष्टिकोण था कि उसकी बेटी बड़ी होकर विश्व चैम्पियन बनेगी और उसके अधूरे सपनों को पूरा करेगी। बाद में उसने नाम की स्पेलिंग को बदल (Humpi) कर दिया ताकि वह रूसी नाम जैसा प्रतीत हो।
कुछ वर्षों पहले जब कोनेरू के पिता अशोक व माँ लता ने अपने मध्यवर्गीय जीवन में एक टेलीविज़न के स्थान पर कम्प्यूटर खरीदा तो सभी ने उनका खूब मज़ाक उड़ाया। हम्पी की माँ लता को आज भी याद है कि हमारे कप्यूटर खरीदने के निर्णय की लोगों ने किस तरह हँसी उड़ाई थी लेकिन आज जब कोनेरू विश्व चैंम्पियन बन गई है तो माता-पिता को दूसरों के दृष्टिकोण पर हँसी आती है।
कोनेरू के पिता अशोक ने अपनी बेटी हम्पी की इतनी अच्छी कोचिंग दी है कि आंध्र प्रदेश सरकार ने उन्हें राज्य कोच का दर्जा देने का निर्णय किया। इसके अतिरिक्त अच्छी कोचिंग क्षमता के लिए अशोक को पाँच लाख रुपये का नकद इनाम देने का फैसला किया।
अशोक ने स्वयं दो बार शतरंज की राज्य चैम्पियन जीती है। 1985 में गुंटूर में दक्षिण भारत की ओपन चैम्पियनशिप भी उन्होंने जीती थी। अशोक बताते हैं कि उनका और हम्पी का रिश्ता द्रोणाचार्य और अर्जुन का है। जहाँ अधिकांश अभिभावक अपने बच्चे को आगे बढ़ाना चाहते हैं परंतु उसके लिए सार्थक प्रयास नहीं करते, वहाँ हम्पी के पिता अशोक ने उसको आगे बढ़ाने के प्रयास उसके बचपन से ही आरम्भ कर दिए थे।
जब हम्पी मात्र 5 वर्ष की थी तब शतरंज के मोहरों व उनकी चालों की जानकारी उसे दी जाने लगी थी। एक बार जब अशोक शतरंज खेल रहे थे तब 6 वर्षीय हम्पी ने एक चाल बताई। अशोक हैरान रह गए कि वह चाल एक-दम सटीक थी। फिर उन्होंने उसकी प्रतिभा को कई बार जाँचने की कोशिश की, वह अधिकांशतः सही थी। तब अशोक ने हम्पी की रुचि देखते हुए उसकी कोचिंग आरम्भ कर दी। उसके साथ वह अन्य 10 बालकों को भी कोचिंग दिया करते थे। तब 9 वर्ष की छोटी सी अवस्था में कोनेरू 1996 में राष्ट्रीय चैम्पियन बनी।
उसके पूर्व अशोक रसायन विज्ञान के अध्यापक थे, परंतु 1995 में 8 वर्ष से कम आयु वर्ग में हम्पी के चौथे स्थान पर रहने पर पिता अशोक ने शिक्षण कार्य छोड़ हम्पी का प्रशिक्षण आरम्भ कर दिया।
अंतराराष्ट्रीय टूर्नामेट
अंतराराष्ट्रीय टूर्नामेटों में हम्पी की ईलो रेटिंग बढ़ाने के लिए अशोक के आगे आर्थिक समस्या आड़े आई क्योंकि तब तक कोई भी उसे स्पांसर करने को तैयार नहीं था। तभी बैंक ऑफ़ बड़ौदा ने उसे स्पांसर कर दिया और हम्पी आगे बढ़ती गई। हम्पी का कहना है कि मैं अपने पिता की कोचिंग के बिना इतना आगे कभी नहीं बढ़ सकती थी।
खेल जीवन
हम्पी ने शतरंज के क्षेत्र में भारत का नाम रोशन कर के अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त की है। 1998 में हम्पी ने तीन प्रतियोगिताओं में स्वर्ण पदक हासिल कर अपने पदकों की संख्या में वृद्धि की। 1998 मे 6 लड़कियों की 12 वर्ष से कम आयु वर्ग में गुंटूर में होने वाली राष्ट्रीय रैपिड शतरंज चैंपियनशिप में प्रथम स्थान प्राप किया। फिर 1998 में ही 15 वर्ष से कम आयु की लड़कियों की राष्ट्रीय शतरंज चैंपियनशिप में स्वर्ण हासिल किया। उसके बाद 1998 में ही औरंगाबाद के राष्ट्रीय शतरंज चैंपियनशिप में 15 वर्ष से कम आयु वर्ग में स्वर्ण पदक प्राप्त किया।
वर्ष 2000 में 14 वर्ष से कम आयु के बालकों की राष्ट्रीय शतरंज टूर्नामेंट में हम्पी ने अहमदाबाद में स्वर्ण पदक प्राप्त किया।
16 वर्ष की आयु में हम्पी ने वर्ष 2002 में विश्व कप शतरंज टूर्नामेंट में हैदराबाद में भाग लिया। प्रारम्भिक दौर में जीत के पश्चात वह प्रथम सेमी फाइनल मैच में 0.5-1.5 से चीन की जू यूहुआ से हार गई। इस खेल के पश्चात हम्पी के पिता एवं कोच कोनेरू अशोक ने कहा- हम्पी ने कुछ चालें गलत खेल दीं। शायद वह शुरुआत में अपनी चाल में बदलाव करना चाहती थी। अपनी कुछ गलतियों व अनियमित चालों के कारण उसे गेम खोना पड़ा।
इतनी कम उम्र में हम्पी इतना कुछ पा चुकी है कि आगे उसके लिए खुला आकाश है। अपनी मेहनत के बल पर एक दिन विश्व चैंपियन बन कर दिखाएगी। हम्पी को शतरंज खेलने के अतिरिक्त टी.वी. देखना पसन्द है, जिसमें वह हिन्दी व तेलुगु फ़िल्में देखती है। इसके अतिरिक्त पुस्तकें पढ़ने में उसकी रुचि है। वह विश्वनाथन आनंद को अपना आदर्श मानती है।
ग्रांड मास्टर
भारत की सबसे कम उम्र की महिला ग्रांड मास्टर कोनेरू हम्पी की विश्व में वरीयता क्रम नम्बर दो तक पहुँच गई फिर भी उसे कोई स्पांसर नहीं मिल पाया। इन्हीं परिस्थितियों के चलते विजयवाड़ा की इस खिलाड़ी को अगस्त 2006 में ओ एन. जी. सी. में पर्सनल एडमिनिस्ट्रेटर की नौकरी लेनी पड़ी। कोनेरू का मानना है कि शतरंज एक मंहगा खेल है जिसके लिए खिलाड़ी को टूर्नामेंटों में भाग लेने के लिए अनेकों बार विदेश यात्रा करनी पड़ती है। कोनेरू ने नौकरी इसीलिए की है ताकि उसके यात्रा खर्चे कंपनी वहन कर सके। अधिकांश कंपनियाँ क्रिकेट खिलाड़ियों को स्पांसर करना चाहती हैं।
भारत की एकमात्र महिला शतरंज खिलाड़ी होने के अतिरिक्त पुरुषों का ग्रैंडमास्टर नाम पा जाने वाली कोनेरू एक विदेशी कोच पाने को मोहताज रही। उसे यही सोच कर संतोष करना पड़ा कि वह अपने पिता की कोचिंग से ही विश्व की नम्बर दो रैंकिग वाली खिलाड़ी बन गई है। अगस्त 2006 में कोनेरू की ईलो रेटिंग 2545 थीं।
शानदार प्रदर्शन
2006 के दिसम्बर में हुए दोहा एशियाई खेलों में कोनेरू हम्पी ने शानदार प्रदर्शन किया। महिलाओं के रेपिड चेस में कोनेरू ने स्वर्ण पदक जीता। उसके बाद टीम इवेंट, क्लॉसिकल स्विस राउंड में भी स्वर्ण पदक जीत लिया। दोहा एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक का आगाज़ भी शतरंज से हुआ और अंत भी शतरंज के स्वर्ण से ही हुआ। कोनेरू हम्पी ने के. शशिकिरण व हरिकृष्णा के साथ मिलकर टीम का स्वर्ण पदक जीता। ग्रैंडमास्टर के. शशिकिरण, जी. हरिकृष्णा और कोनेरू हम्पी की तिकड़ी ने लगातार आठ मुक़ाबले जीतकर नौ दौर की इवेंट में अपने अंकों की संख्या को 21 तक पहुँचा दिया और चीन से पाँच अंकों की बढ़त हासिल कर ली। के. शशिकिरण ने यूतेत एडियांतो को मात दी। दूसरे बोर्ड पर हरिकृष्णा की सुसांतो मेगरांतो से बाज़ी ड्रा रही। महिलाओं के मुक़ाबले में हम्पी ने इरीन खारासियामा को आसानी से मात दी। इस प्रकार भारत ने इंडोनेशिया को आधे अंक के मुक़ाबले ढाई अंकों से हराकर एक राउंड के रहते गोल्ड मेडल जीता।
उपलब्धियाँ
- हम्पी पुरुषों का ग्रैंड मास्टर जीतने वाली सबसे कम उम्र की प्रथम भारतीय लड़की है। इसके पूर्व हंगरी की प्रथम भारतीय लड़की है। इसके पूर्व हंगरी की जुदित पोलगर ने यह खिताब जीता था, वह उस वक्त 15 वर्ष 4 माह 27 दिन की थीं।
- कोनेरू हम्पी ने 15 वर्ष 1 माह 27 दिन की आयु में पुरुषों का ग्रैंड मास्टर खिताब जीता जो एक रिकार्ड है।
- हम्पी पुरुष ग्रैंड मास्टर जीतने वाली प्रथम भारतीय महिला है।
- कोनेरू हम्पी दो बार ग्रैंड मास्टर बनने वाली प्रथम भारतीय लड़की है।
- हम्पी टॉप 20 खिलाड़ियों में विश्व की नम्बर एक खिलाड़ी बनने वाली प्रथम भारतीय लड़की है।
- विश्व की टॉप 50 महिलाओं की सूची में 16 वां स्थान पाने वाली कोनेरू प्रथम भारतीय लड़की है।
- ई एल ओ रेटिंग में इतना ऊँचा स्थान पाने वाली हम्पी भारतीय शतरंज के इतिहास की प्रथम भारतीय लड़की है।
- विश्व जूनियर महिला शतरंज चैम्पियनशिप में जीतने वाली हम्पी एक-मात्र भारतीय लड़की है।
- शतरंज में विश्व खिताब जीतने वाली प्रथम भारतीय लड़की है।
- विश्व चैंपियनशिप मुक़ाबलों में दस, बारह व चौदह वर्ष के आयु वर्ग में लगातार विजेता रही है।
- एशियन जूनियर शतरंज चैंपियनशिप की वह विजेता है।
- ब्रिटेन के 61 वर्ष के इतिहास में हम्पी सबसे कम उम्र की ब्रिटिश महिला शतरंज चैंपियनशिप की विजेता है।
- हम्पी 12 वर्ष से कम आयु वर्ग में लड़कों की एशियाई शतरंज चैंपियनशिप की एकमात्र लड़की विजेता है।
- हम्पी 14 वर्ष से कम आयु वर्ग के लड़कों के राष्ट्रीय खिताब को अहमदाबाद में जीतने वाली एकमात्र खिलाड़ी है।
- हम्पी एशिया की सबसे कम उम्र की अंतरराष्ट्रीय महिला मास्टर है।
- हम्पी को 1997 व 1998 का स्पोर्ट्स स्टार 'यंग अचीवर एवार्ड' दिया गया।
प्रतियोगिताओं में विजय
- एथेंस (ग्रीस) में 2001 में विजय जूनियर गर्ल्स शतरंज चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक।
- स्पेन में विश्व शतरंज चैंपियनशिप में 2000 में 14 वर्ष से कम आयु वर्ग में स्वर्ण पदक।
- 1999 में स्पेन में विश्व शतरंज चैंपियनशिप में 12 वर्ष से कम आयु वर्ग में रजत पदक।
- 1998 में स्पेन मे 12 वर्ष से कम आयु वर्ग में गर्ल्स शतरंज चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक।
- 10 वर्ष से कम आयु वर्ग में लड़कियों की विश्व शतरंज चैंपियनशिप में फ्रांस में स्वर्ण पदक।
- स्मिथ एंड विलियन सन ब्रिटिश चैंपियनशिप 2002 में विजय।
- हंगरी का 2001 का होटल लीपा ग्रैंड मास्टर्स शतरंज टूर्नामेंट में स्वर्ण पदक।
- सांगली में वर्ष 2000 में कामन वेल्थ शतरंज चैंपियनशिप में महिला व 16 वर्ष से कम आयु लड़कियों के मुक़ाबले में क्रमशः कांस्य व स्वर्ण पदक।
- ब्रिटिश वीमेन चैंपियनशिप 2000 में सोमरसेट, इंग्लैंड में स्वर्ण पदक।
- मुम्बई में 2000 में एशियन जूनियर शतरंज चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक।
- कामनवेल्थ शतरंज चैंपियनशिप (19 वर्ष से कम आयु लड़कियाँ) 1999 में बीकानेर में स्वर्ण पदक, इसी वर्ष इस मुक़ाबले के महिला वर्ग में कांस्य पदक।
- 1999 के महिलाओं की राष्ट्रीय प्रतियोगिता, कालीकट में वूमन मास्टर खिताब हासिल।
- 1999 में लंदन में 21 वर्ष से कम वर्ग के माइंड स्पोर्ट्स ओलंपियाड में स्वर्ण पदक। इसी वर्ष महिला वर्ग में भी स्वर्ण पदक हासिल।
- अहमदाबाद में 1999 में 12 वर्ष से कम आयु के लड़कों की एशियाई शतरंज प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक।
- कोनेरू हम्पी की वर्ष 2003 की शतरंज उपलब्धियों के लिए उन्हें 21 सितम्बर 2004 को 'अर्जुन पुरस्कार' से सम्मानित किया गया।
- हीरो होंडा स्पोर्ट्स अकादमी ने वर्ष 2004 के लिए कोनेरू हम्पी को शतरंज की श्रेष्ठता खिलाड़ी के लिए नामांकित किया।
- 2007 में कोनेरू हम्पी को 'पद्मश्री पुरस्कार' प्रदान किया।
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