परवीन सुल्ताना: Difference between revisions

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==जन्म तथा शिक्षा==
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Revision as of 12:43, 23 December 2012

परवीन सुल्ताना
पूरा नाम परवीन सुल्ताना
जन्म 10 जुलाई, 1950
जन्म भूमि असम
पति/पत्नी दिलशाद ख़ान
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र शास्त्रीय गायन
मुख्य फ़िल्में 'गदर', 'कुदरत' और 'पाकीज़ा' आदि।
पुरस्कार-उपाधि 'पद्मश्री' (1976), 'गंधर्व कला नीधि' (1980), 'मियाँ तानसेन पुरस्कार' (1986)
प्रसिद्धि शास्त्रीय गायिका
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी परवीन सुल्ताना ने मात्र बारह वर्ष की आयु में अपना प्रथम संगीत कार्यक्रम दिया था।

बेगम परवीन सुल्ताना (जन्म- 10 जुलाई, 1950, असम) भारत की प्रसिद्ध शास्त्रीय गायिका हैं। वह 'पटियाला घराना' से सम्बन्धित हैं। परवीन सुल्ताना ऐसी विलक्षण प्रतिभाशाली गायिका हैं, जिन्हें वर्ष 1976 में 'पद्मश्री' से सम्मानित किया गया था। असमिया पृष्ठभूमि से ताल्लुक रखने वाली परवीन सुल्ताना ने पटियाला घराने की गायकी में अपना अलग मुकाम बनाया है। उनके परिवार में कई पीढ़ियों से शास्त्रीय संगीत की परम्परा रही है। उनके गुरुओं में आचार्य चिन्मय लाहिरी और उस्ताद दिलशाद ख़ान प्रमुख रहे हैं। गीत को अपनी अन्तरात्मा मानने वाली परवीन सुल्ताना की जन्म-भूमि असम और कर्म-भूमि मुम्बई रही है।

जन्म तथा शिक्षा

परवीन सुल्ताना का जन्म 10 जुलाई, 1950 को नोगोंग ग्राम, असम में हुआ था। उनके पिता का नाम इकरामुल माजिद और माता का नाम मारूफा माजिद था। परवीन के पिता उनके प्रथम गुरु थे और वे उनकी शिक्षा के प्रति बहुत सख्त थे। परवीन सुल्तान ने अपने दादा मोहम्मद नजीफ़ ख़ान से भी संगीत की शिक्षा पाई थी। बचपन से ही उन्हें संगीत में गहरी रूचि रही थी। उन्होंने अपना सबसे प्रथम संगीत कार्यक्रम बारह वर्ष कि आयु में दिया। उन्होंने पंडित लहरी से भी संगीत की शिक्षा अर्जित की और उसके बाद उस्ताद दिलशाद ख़ान से, जो बाद में उनके शौहर बने। परवीन सुल्ताना उन चुनिन्दा शास्त्रीय गायिकाओं में से एक हैं, जिन्हें ईश्वर ने एक ऐसी अनोखी और खूबसूरत आवाज़ से नवाजा, जिसका कोई सानी नहीं था। उनकी लगन और तालीम ने उन्हें खूबसूरत आवाज़ और एक गरिमामय व्यक्तित्व का धनी बनाया था, इसीलिए उन्हें 'भारतीय शास्त्रीय संगीत की रानी' कहा जाता है।

फ़िल्मों में गायन

परवीन सुल्ताना ने कुछ फ़िल्मों में भी गायन किया है, जिनमें 'गदर', 'कुदरत' और 'पाकीज़ा' आदि हैं, लेकिन 'कुदरत' फ़िल्म गीत "हमें तुमसे प्यार कितना, ये हम नहीं जानते" (संगीत निर्देशक आर. डी. बर्मन) और फ़िल्म "पाकीज़ा" का 'कौन गली गयो श्याम' सबसे अधिक पसंद किया गया था। शास्त्रीय संगीत में जहाँ ख़्याल गायन में इनको प्रवीणता हासिल रही, वहीं शास्त्रीय सुगम संगीत में ठुमरी, दादरा, चैती, कजरी आदि बेहद पसंद की गईं। राग हंसध्वनी का तराना श्रोताओं की विशेष फरमाइश हुआ करता था। वहीँ कबीर के भजन भी उतनी ही खूबसूरती से प्रस्तुत किये। फ़िल्म 'परवाना' में 1971 में आशा भोंसले के साथ परवीन सुल्ताना ने 'पिया की गली' (संगीतकार मदन मोहन) गीत गाया था। गज़ल भी वह उतनी ही मधुरता और डूब कर गाती हैं, जितना शास्त्रीय संगीत का ख्याल। 'ये धुआं सा कह से उठता है' उनके द्वारा गाई गई गज़ल काफ़ी चर्चित रही थी।

उपशास्त्रीय संगीत में दक्षता

परवीन सुल्ताना को उपशास्त्रीय संगीत में दक्षता प्राप्त है। 'टप्पा' एक विधा है, जिसे गाना सभी के वश कि बात नहीं होती। इसकी वजह यह है कि इसमें आवाज़ और स्वरों को घुमाते हुए एक विशेष तरीके से बहुत संतुलित क्रम और सधे हुए स्वरों में गाया जाता है। इस एहतियात के साथ कि जटिल स्वर-संरचना के बाद भी स्वर बिखरें नहीं। परवीन सुल्ताना को टप्पे में भी महारथ हासिल थी। उनकी तानें झरने की तरह बहती तो अलाप उतने ही गंभीर और गहरे होते, जैसे किसी गहरे कूप में से ऊपर को उठती ध्वनियाँ। जितनी मिठास तार सप्तक में उतनी ही बुलंदी मंद्र सप्तक के स्वरों में, ये विविधता निस्संदेह एक कठिन साधना है। कठिन से कठिन तानें वो इतनी आसानी से लेती कि श्रोता आश्चर्य चकित रह जाते थे।

पुरस्कार व सम्मान

  1. क्लियोपेट्रा ऑफ म्यूज़िक - 1972
  2. पद्मश्री - 1976
  3. गंधर्व कला नीधि - 1980
  4. मियाँ तानसेन पुरस्कार - 1986
  5. संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार - 1999


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

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