ओशो रजनीश: Difference between revisions
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Revision as of 08:12, 17 January 2013
ओशो रजनीश
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पूरा नाम | चन्द्र मोहन जैन |
अन्य नाम | आचार्य रजनीश |
जन्म | 11 दिसम्बर, 1931 |
जन्म भूमि | जबलपुर, मध्य प्रदेश |
मृत्यु | 19 जनवरी 1990 |
मृत्यु स्थान | पुणे, महाराष्ट्र |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | आध्यात्मिक गुरु |
मुख्य रचनाएँ | 'सम्भोग से समाधि तक', 'मृत्यु है द्वार अमृत का', संम्भावनाओं की आहट', 'प्रेमदर्शन' |
शिक्षा | स्नातकोत्तर |
विद्यालय | सागर विश्वविद्यालय |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | बड़े-बड़े उद्योगपति, विदेशी धनुकुबेर, फ़िल्म अभिनेता इनके शिष्य रहे हैं। |
ओशो रजनीश (अंग्रेज़ी: Osho Rajneesh, जन्म: 11 दिसम्बर, 1931 - मृत्यु: 19 जनवरी 1990) का पूरा नाम चन्द्र मोहन जैन है जो 'ओशो रजनीश' के नाम से प्रख्यात हैं। ये अपने विवादास्पद नये धार्मिक (आध्यात्मिक) आन्दोलन के लिये मशहूर हुए और भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका में रहे।
जन्म और शिक्षा
रजनीश का जन्म 11 दिसम्बर, 1931 को जबलपुर (मध्य प्रदेश) में हुआ था। उन्हें बचपन में 'रजनीश चन्द्र मोहन' के नाम से जाना जाता था। 1955 में जबलपुर विश्वविद्यालय से उन्होंने स्नातक एवं सागर विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर की शिक्षा प्राप्त करने के बाद 1959 में व्याख्याता का पद सम्भाला। वह इस समय तक धर्म एवं दर्शन शास्त्र के ज्ञाता बन चुके थे। 1980-86 तक के काल में वे 'विश्व-सितारे' बन गये। बड़े-बड़े उद्योगपति, विदेशी धनुकुबेर, फ़िल्म अभिनेता इनके शिष्य रहे हैं।
प्रसिद्धि
रजनीश स्वयं को 20वीं सदी के सबसे बड़े तमाशेबाज़ों में से एक मानते हैं। अपने बुद्धि कौशल से उन्होंने विश्वभर में अपने अनुययियों को जिस सूत्र में बांधा वह काफ़ी हंगामेदार साबित हुआ। उनकी भोगवादी विचारधारा के अनुयायी सभी देशों में पाये जाते हैं। रजनीश ने पुणे में 'रजनीश केन्द्र' की स्थापना की और अपने विचित्र भोगवादी दर्शन के कारण शीघ्र ही विश्व में चर्चित हो गये। एक दिन बिना अपने शिष्यों को बताए वे चुपचाप अमेरिका चले गए। वहाँ पर भी अपना जाल फैलाया। मई 1981 में उन्होंने ओरेगोन (यू.एस.ए.) में अपना कम्यून बनाया। ओरेगोन के निर्जन भूखण्ड को रजनीश ने जिस तरह आधुनिक, भव्य और विकसित नगर का रूप दिया वह उनके बुद्धि चातुर्य का साक्षी है। रजनीश ने सभी विषयों पर सबसे पृथक और आपत्तिजनक भी विचार व्यक्ति किये हैं, वह उनकी एक अलग छवि बनाते हैं। उन्होंने पुरातनवाद के ऊपर नवीनता तथा क्रान्तिकारी विजय पाने का प्रयास किया है।
रचनाएँ
रजनीश की कई कृतियाँ चर्चित रहीं हैं, इनमें 'सम्भोग से समाधि तक', 'मृत्यु है द्वार अमृत का', संम्भावनाओं की आहट', 'प्रेमदर्शन' के नाम प्रमुख हैं। अपना निज़ी अध्यात्म गढ़कर उसका 'काम' के साथ समन्वय करके रजनीश ने एक अदभुत मायालोक की सृष्टि की है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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