नाशपाती: Difference between revisions

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==खाद, सिंचाई तथा अंतरासस्य==  
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पूर्ण फलनप्राप्त पेड़ों को दिसंबर के महीने में प्रति पेड़ लगभग दो मन सड़े गोबर की खाद, तीन पाउंड ऐमोनियम सल्फेट तथा एक पाउंड सुपरफॉस्फेट प्रति वर्ष देना चाहिए। खाद की यह मात्रा पेड़ों की बाढ़ तथा फलन में वृद्धि कराती है। [[मार्च]] में जब फल मटर के दाने से कुछ बड़े हो जाएँ, तब पेड़ों को हफ्तेवार पानी देना चाहिए और [[जून]] के मध्य तक इसी प्रकार सिंचाई करते रहना चाहिए। हर पानी के दो या तीन दिन बाद हल्की गुड़ाई, निराई करके थालों को साफ सुथरा रखना चाहिए।
पूर्ण फलनप्राप्त पेड़ों को दिसंबर के महीने में प्रति पेड़ लगभग दो मन सड़े गोबर की खाद, तीन पाउंड ऐमोनियम सल्फेट तथा एक पाउंड सुपरफॉस्फेट प्रति वर्ष देना चाहिए। खाद की यह मात्रा पेड़ों की बाढ़ तथा फलन में वृद्धि कराती है। [[मार्च]] में जब फल मटर के दाने से कुछ बड़े हो जाएँ, तब पेड़ों को हफ्तेवार पानी देना चाहिए और [[जून]] के मध्य तक इसी प्रकार सिंचाई करते रहना चाहिए। हर पानी के दो या तीन दिन बाद हल्की गुड़ाई, निराई करके थालों को साफ़ सुथरा रखना चाहिए।


थालों को छोड़कर उद्यान की शेष भूमि में [[मटर]], [[चना]], लोबिया जैसी फलीदार फसलों का अंतरासस्य करते रहना चाहिए। इससे केवल अतिरिक्त आमदनी ही नहीं होगी, बल्कि भूमि की उर्वराशक्ति भी बनी रहेगी।
थालों को छोड़कर उद्यान की शेष भूमि में [[मटर]], [[चना]], लोबिया जैसी फलीदार फसलों का अंतरासस्य करते रहना चाहिए। इससे केवल अतिरिक्त आमदनी ही नहीं होगी, बल्कि भूमि की उर्वराशक्ति भी बनी रहेगी।

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thumb|250px|नाशपाती

नाशपाती एक लोकिप्रय फल है। नाशपाती सेब से जुड़ा एक उप-अम्लीय फल है। भारतवर्ष में पैदा होने वाले ठंढे जलवायु के फलों में नाशपाती का महत्व सेब से अधिक है। यह हर साल फल देती है। इसकी कुछ किस्में मैदानी जलवायु में भी पैदा की जाती है और उत्तम फलन देती हैं। नाशपाती के फल खाने में कुरकुरे, रसदार और स्वदिष्ट होते हैं। ये सेब की अपेक्षा सस्ती बिकती हैं। भारत में नाशपाती यूरोप और ईरान से आई और धीरे-धीरे इसकी काश्त बढ़ती गई। अनुमान किया जाता है कि अब हमारे देश में लगभग 4,000 एकड़ में इसकी खेती होने लगी है। पंजाब को कुलू घाटी तथा कश्मीर में यूरोपीय किस्में पैदा की जाती हैं और इनके फलों की गणना संसार के उत्तम फलों में होती है।

मिट्टी तथा जलवायु

नाशपाती के लिए मिट्टी का चुनाव इसके प्रकंद पर निर्भर करता है। क्विंस तथा जंगली नाशपाती, दो प्रकार के प्रकंदप्रसरण के काम आते हैं। पहले के लिए चिकनी दोमट तथा दूसरे के लिए बलुई दोमट मिट्टी सर्वोत्तम समझी जाती है। यूरोपीय मिस्मों के लिए समशीतोष्ण जलवायु अच्छी होती है। साधारण सहिष्णु किस्में मैदानी जलवायु में भी पैदा की जा सकती है। उत्तर प्रदेश की मेरठ कमिश्नरी तथा तराई के ज़िलों में नाशपाती की खेती सफलतापूर्वक होने लगी है।

विसरण

इसका विसरण समुद्भवन द्वारा तथा कलम बाँधकर, दोनों प्रकार से होता है। अधिकांशत: छल्ला चश्मा चढ़ाना और ढाल चश्मा चढ़ाना ही विसरण में प्रयुक्त होते हैं। अप्रैल का प्रथम सप्ताह समुद्भवन के लिए उत्तम समय समझा जात है। जिह्वा चश्मा चढ़ाने का प्रयोग मार्च के अंत में सफलतापूर्वक किया जाता है। बड़े पेड़ों के लिए जंगली नाशपाती (महल) तथा छोटे पौधों के लिए क्विंस प्रकंद काम में लाए जाते हैं।

पौधे लगाना

सर्दी के मौसम में जब नाशपाती के पौधे सुषुप्तावस्था में रहते है, वृक्षारोपण करना चाहिए। महल पर प्रसारित पौधे 20-25 फुट तथा क्विंस पर प्रसारित पौधे 12-15 फुट की दूरी पर गड्ढे खोदकर लगाना चाहिए।

खाद, सिंचाई तथा अंतरासस्य

पूर्ण फलनप्राप्त पेड़ों को दिसंबर के महीने में प्रति पेड़ लगभग दो मन सड़े गोबर की खाद, तीन पाउंड ऐमोनियम सल्फेट तथा एक पाउंड सुपरफॉस्फेट प्रति वर्ष देना चाहिए। खाद की यह मात्रा पेड़ों की बाढ़ तथा फलन में वृद्धि कराती है। मार्च में जब फल मटर के दाने से कुछ बड़े हो जाएँ, तब पेड़ों को हफ्तेवार पानी देना चाहिए और जून के मध्य तक इसी प्रकार सिंचाई करते रहना चाहिए। हर पानी के दो या तीन दिन बाद हल्की गुड़ाई, निराई करके थालों को साफ़ सुथरा रखना चाहिए।

थालों को छोड़कर उद्यान की शेष भूमि में मटर, चना, लोबिया जैसी फलीदार फसलों का अंतरासस्य करते रहना चाहिए। इससे केवल अतिरिक्त आमदनी ही नहीं होगी, बल्कि भूमि की उर्वराशक्ति भी बनी रहेगी।

किस्में

फलों के अनुसार नाशपाती की समस्त किस्में निम्नलिखित भागों में विभाजित की जा सकती हैं :

  1. चाइना या साधारण नाशपाती
  2. यूरोपीय नाशपाती
  3. यूरोपीय और चाइना नाशपाती के संकर।

चाइना नाशपाती उत्तर प्रदेश के पश्चिमी ज़िलों में पैदा होती है। इसके फल अन्य के मुकाबले में कठोर होते हैं और मुरब्बा बनाने अथवा डिब्बाबंदी के कार्य में लाए जाते हैं।

यूरोपीय किस्मों में लैक्सटन्स सुपर्व, विलियम्स तथा कॉन्फ्रसें उत्तम किस्में है। इनके फल कोमल, रसदार और मीठे होते हैं। इनकी कृषि कुमाऊँ तथा चकराता में सफलतापूर्वक की जा सकती है। संकर किस्मों को नाख भी कहते हैं। यूरोपीय किस्मों की अपेक्षा ये अधिक सहिष्णु होती हैं। इनमें लेकांट, स्मिथ तथा किफर बहुत ही प्रचलित किस्में हैं।

कांट छाँट

पेड़ लगाने के दूसरे वर्ष से ही हल्की काट छाँट करके पौधे को कटोरे का ढाँचा देना चाहिए। बाहर की तरफ फैलनेवाली शाखों को काट छाँटकर, पेड़ का फैलाव ऊपर की ओर करना चाहिए। ढाँचा प्रतिस्थापित हो जान के बाद फलवाली टहनियों की हल्की कटाई करते रहना चाहिए। सभी प्रकार की काट छाँट का उचित समय दिसंबर या जनवरी है। काट छाँट के बिना पेड़ झाड़ जैसे बन जाते हैं और फलन की कम हो जाता है।

फलन

वसंत के शुरू होते ही पेड़ों पर हरी कोपलें तथा फूल आने शुरू हो जाते हैं। इनके फल जून के अंत में पकने लगते हैं। चाइना नाशपाती की उपज सबसे अधिक होती हैं। पूर्ण वृद्धिप्राप्त पेड़ से लगभग चार मन तक फल उतारे जाते हैं। नाख की उपज ढाई से तीन मन तक होती है। अनुभवी लोगों का कहना है कि उद्यान में दो या तीन किस्मों को साथ साथ लगाने से फसल बढ़ जाती है।

विपणन

नाशपाती के फल को पेड़ पर पूरा नहीं पकने देना चाहिए, क्योंकि यह रस से भर जाता है और उतारने में थोड़ी सी भी खुरच लगने से सड़ने लगता है। ज्योंही फल की सतह पीली होने लगे तथा उसपर के हरे हरे, छोटे छोटे, गोल निशान भूरे होने लगें, फलों का सावधानी से उतारने लगना चाहिए। इनको बक्सों में चार या पाँच दिन तक सुरक्षित रख देने स, ऊपरी सतह पीली पीली हो जाती है और गूदा रसदार और मीठा हो जाता है। 4.5रू सें. ताप पर इसके फल 20-25 दिन तक रखे जा सकते हैं।

उपयोग

चाइना नाशपाती के फल अधिकतर मुरब्बा बनाने तथा डिब्बाबंदी के कार्य में लाए जाते हैं। यूरोपीय और संकर किस्मों के फल ताजे ही खाने के काम में आते हैं।

कीड़े तथा रोग

नाशपाती के फलों में कभी कभी एक प्रकार का कीड़ा पाया जाता है। जैसे ही ये कीड़े फलों में छेद करना शुरू करें, कीड़ेवाले फलों को तोड़कर नष्ट कर देना चाहिए ताकि इनका प्रकोप और न बढ़े। नाशपाती के रोगों में तना फफोला, तना कैंसर तथा दग्ध विवर्णता मुख्य हैं। इनसे बचने के लिए रोगरोधी पदार्थों का उपयोग करना चाहिए।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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