त्रिपुरी: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
('{{पुनरीक्षण}} {{tocright}} '''त्रिपुरी''' आधुनिक मध्य प्रदेश के...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
m (Text replace - "काफी " to "काफ़ी ")
Line 21: Line 21:


====तीसरे काल में अवशेष====
====तीसरे काल में अवशेष====
त्रिपुरी के तीसरे काल में लोगों के जीवन स्तर में काफी उन्नति हुई। मिट्टी के मकानों के अतिरिक्त इस काल में पकी ईंटों के भी मकान बनने लगे थे। यहाँ गन्दे पानी के निकास की समुचित व्यवस्था थी। यहाँ इस काल के पिछले काल की तरह [[ताँबा|ताँबे]] की आहत मुद्राओं का प्रचलन था। यह प्रचलन अब सीमित हो रहा था। इन आहत मुद्राओं के अतिरिक्त यहाँ की त्रिपुरी जनपद की मुद्राएँ भी ढाली जाने लगी थीं। इन मुद्राओं पर ''त्रिपुरी'' लेख [[ब्राह्मी लिपि]] में अंकित मिलता है। काँच के उपयोग का भी प्रमाण इस काल में यहाँ से मिलता है।
त्रिपुरी के तीसरे काल में लोगों के जीवन स्तर में काफ़ी उन्नति हुई। मिट्टी के मकानों के अतिरिक्त इस काल में पकी ईंटों के भी मकान बनने लगे थे। यहाँ गन्दे पानी के निकास की समुचित व्यवस्था थी। यहाँ इस काल के पिछले काल की तरह [[ताँबा|ताँबे]] की आहत मुद्राओं का प्रचलन था। यह प्रचलन अब सीमित हो रहा था। इन आहत मुद्राओं के अतिरिक्त यहाँ की त्रिपुरी जनपद की मुद्राएँ भी ढाली जाने लगी थीं। इन मुद्राओं पर ''त्रिपुरी'' लेख [[ब्राह्मी लिपि]] में अंकित मिलता है। काँच के उपयोग का भी प्रमाण इस काल में यहाँ से मिलता है।


====चतुर्थ काल में अवशेष====
====चतुर्थ काल में अवशेष====

Revision as of 11:27, 14 May 2013

चित्र:Icon-edit.gif इस लेख का पुनरीक्षण एवं सम्पादन होना आवश्यक है। आप इसमें सहायता कर सकते हैं। "सुझाव"

त्रिपुरी आधुनिक मध्य प्रदेश के जबलपुर ज़िले में नर्मदा नदी तट पर स्थित है। इसकी अपनी भौगिलिक, धरीय अवस्थिति के कारण अधिक महत्त्व है। इसकी पहचान जबलपुर-भेड़ाघाट मार्ग पर स्थित तेवर ग्राम अथवा टेवर से की गई है। वृहत्संहिता में एक नगर के रूप में इसका वर्णन मिलता है। उत्तर भारत से दक्षिण भारत की ओर जाने वाले मार्ग के मध्य में स्थित होने के कारण त्रिपुरी का आर्थिक महत्त्व था। यहाँ से 500 ई.पू. से 400 ई. के मध्य की संस्कृतियों के अवशेष मिले हैं। मौर्योत्तर युग में यहाँ व्यापारिक संघों के द्वारा प्रशासनित होता था। पूर्व मध्यकाल में त्रिपुरी में कलचुरी वंश का शासन था।

इतिहास

सर्वप्रथम त्रिपुरी की खोज 1860 ई.में ले. कर्नल युले ने लार्ड कैनिंग के शिविर व्यवस्था की यात्रा के समय की। तदनंतर जनरल कनिंघम ने 1873 -1874 ई. में त्रिपुरी के अवशेषों पर एक सर्वेक्षण रिपोर्ट प्रकाशित की। इसके पश्चात कीलहार्न ने तेवर से प्राप्त अभिलेखों को प्रकाशित किया। 1922 ई. में राखलदास बनर्जी ने पूरे त्रिपुरी राज्य का सर्वेक्षण कर दि हैयहयाज ऑफ त्रिपुरी एण्ड देयर मोनुमेंट्स प्रकाशित किया। 1952 -1953 ई. में सागर विश्वविद्यालय के तत्वावधान में त्रिपुरी का पुरातात्विक कार्य कराया गया। इस उत्खनन में प्राप्त सफलता से सागर विश्वविद्यालय ने 1966 ई. व बाद में भी वहाँ अनेक उत्खनन कराये, जिससे त्रिपुरी की प्राचीनता पर महत्त्वपूर्ण प्रकाश पड़ा। त्रिपुरी के विभिन्न उत्खननों से उसके विभिन्न कालों का ज्ञान हुआ है, यथा-

  1. प्रथम काल (1000 ई.पू. से 500 ई.पू.)
  2. द्वितीय काल (500 ई.पू. से 300 ई.पू.)
  3. तृतीयक काल (300 ई. से 100 ई.पू.)
  4. चतुर्थ काल (100 ई. से 200 ई.)
  5. पंचम काल (200 ई.से 350 ई.)

उत्खनन

प्रथम काल में अवशेष

यह उल्लेखनीय है कि प्रथम काल से ताम्रश्मयुगीन संस्कृति की सामग्री मिली है। यहाँ के उत्खनन से सूक्ष्म पाषाण अस्त्र और लाल सतह पर काली चित्रकारी से युक्त मृद्भाण्डों के अवशेष मिले हैं।

द्वितीय काल में अवशेष

द्वितीय काल में बस्ती के निवासी मिट्टी की दीवारों और छाये हुए छप्परों वालों घरों में रहते थे। वे कहीं-कहीं खपरैल का भी प्रयोग करते थे। इस काल के निवासी पकी मिट्टी के बर्तनों का उपयोग करते थे। यहाँ से उत्तरी-काले ओपदार (एन.बी.पी.) मिट्टी के बर्तनों के अवशेष भी मिले हैं।

तीसरे काल में अवशेष

त्रिपुरी के तीसरे काल में लोगों के जीवन स्तर में काफ़ी उन्नति हुई। मिट्टी के मकानों के अतिरिक्त इस काल में पकी ईंटों के भी मकान बनने लगे थे। यहाँ गन्दे पानी के निकास की समुचित व्यवस्था थी। यहाँ इस काल के पिछले काल की तरह ताँबे की आहत मुद्राओं का प्रचलन था। यह प्रचलन अब सीमित हो रहा था। इन आहत मुद्राओं के अतिरिक्त यहाँ की त्रिपुरी जनपद की मुद्राएँ भी ढाली जाने लगी थीं। इन मुद्राओं पर त्रिपुरी लेख ब्राह्मी लिपि में अंकित मिलता है। काँच के उपयोग का भी प्रमाण इस काल में यहाँ से मिलता है।

चतुर्थ काल में अवशेष

चतुर्थ काल में त्रिपुरी का अबाध गति से विकास हुआ। यहाँ से दैनिक जीवन के उपयोग की वस्तुएँ मिली हैं। इन वस्तुओं में पैर वाली चक्की उल्लेखनीय है। इस काल के स्तर से सातवाहनों की ताँबे, सीसे और पोटिन की मुद्राएँ बड़ी संख्या में मिली हैं, जिनसे इस काल में यहाँ पर सातवाहनों के शासन का ज्ञान होता है। परंतु चतुर्थ काल में त्रिपुरी का महत्व गौण ही रहा।

पंचम काल में अवशेष

पंचम काल के स्तर से त्रिपुरी से प्राप्त वस्तुओं में लोहे के भाले, बर्छे, बाणों के फलक बड़ी संख्या में मिले हैं। इस काल के स्तर में अभ्रक के लेप से युक्त चिकने लाल मिट्टी के बर्तन मिले हैं। इस काल के स्तर के मकान कुछ अव्यवस्थित मिले हैं। विद्वानों का विचार है कि इस काल में त्रिपुरी पर कोई आक्रमण हुआ होगा। पूर्व मध्य काल में त्रिपुरी कलचुरी राज्य की राजधानी बनी। कलचुरियों के राज्याश्रय में त्रिपुरी का सहज विकास हुआ। यहाँ से प्राप्त कलचुरी अभिलेख और कलाकृतियों से त्रिपुरी के गौरवमयी इतिहास का ज्ञान होता है। कलचुरी काल के पश्चात त्रिपुरी का राजनीतिक महत्त्व समाप्त प्रायः हो गया।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ


बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख