|
|
Line 7: |
Line 7: |
| | | | | |
| <quiz display=simple> | | <quiz display=simple> |
| {[[रामायण]] कालीन [[सरयू नदी]] को वर्तमान में क्या कहते हैं?
| |
| |type="()"}
| |
| -[[यमुना नदी|यमुना]]
| |
| +[[घाघरा नदी|घाघरा]]
| |
| -[[गोमती नदी|गोमती]]
| |
| -[[गंगा नदी|गंगा]]
| |
| ||[[चित्र:Karnali-River-2.jpg|right|100px|घाघरा नदी]][[श्रीराम]] की जन्म-भूमि [[अयोध्या]] [[उत्तर प्रदेश]] में [[सरयू नदी]] के दाएँ तट पर स्थित है। नदियों में ऐतिहासिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण सरयू नदी का अस्तित्व भी अब खतरे में है। '[[रामायण]]' के अनुसार भगवान राम ने इसी नदी में [[जल]] समाधि ली थी। सरयू नदी का उद्गम [[उत्तर प्रदेश]] के [[बहराइच ज़िला|बहराइच ज़िले]] से हुआ है। [[बहराइच]] से निकलकर यह नदी [[गोंडा ज़िला|गोंडा]] से होती हुई [[अयोध्या]] तक जाती है। पहले यह नदी गोंडा के परसपुर तहसील में 'पसका' नामक [[तीर्थ स्थान]] पर [[घाघरा नदी]] से मिलती थी। अयोध्या तक ये नदी 'सरयू' के नाम से जानी जाती है, लेकिन उसके बाद यह नदी 'घाघरा' के नाम से जानी जाती है। सरयू नदी की कुल लंबाई लगभग 160 किलोमीटर है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[सरयू नदी]], [[घाघरा नदी]]
| |
|
| |
| {[[समुद्र]] में रहने वाली उस [[नाग]] माता का क्या नाम था, जिसने समुद्र लाँघते हुए [[हनुमान]] को रोका और उन्हें खा जाने को उद्यत हुई थी?
| |
| |type="()"}
| |
| -त्रिजटा
| |
| -[[मंथरा]]
| |
| -बलंधरा
| |
| +[[सुरसा]]
| |
|
| |
| ||[[चित्र:Hanuman-Sursa.jpg|right|100px|सुरसा व हनुमान]]'सुरसा' [[रामायण]] के अनुसार [[समुद्र]] में रहने वाली [[नाग]] माता थी। [[सीता|सीताजी]] की खोज में समुद्र पार करने के समय [[सुरसा]] ने राक्षसी का रूप धारण कर [[हनुमान]] का रास्ता रोका था और उन्हें खा जाने के लिए उद्धत हुई थी। समझाने पर जब वह नहीं मानी, तब हनुमान ने अपना शरीर उससे भी बड़ा कर लिया। जैसे-जैसे सुरसा अपना मुँह बढ़ाती जाती, वैसे-वैसे हनुमान भी अपना शरीर उसके आकार से अधिक बढ़ाते जाते। बाद में हनुमान ने अचानक ही अपना शरीर बहुत छोटा कर लिया और सुरसा के मुँह में प्रवेश करके तुरंत ही बाहर निकल आये। हनुमान की बुद्धिमानी और वीरता से प्रसन्न होकर [[सुरसा]] ने हनुमान को आशीर्वाद दिया तथा उनकी सफलता की कामना की।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[सुरसा]]
| |
|
| |
| {[[राजा दशरथ]] ने पुत्रोत्पत्ति हेतु जो [[यज्ञ]] किया था, उसका नाम क्या था?
| |
| |type="()"}
| |
| -[[राजसूय यज्ञ|राजसूय]]
| |
| +पुत्र कामेष्टि यज्ञ
| |
| -[[अश्वमेध यज्ञ|अश्वमेध]]
| |
| -इनमें से कोई नहीं
| |
| ||[[पुराण|पुराणों]] और [[रामायण]] में वर्णित [[इक्ष्वाकु वंश|इक्ष्वाकु वंशी]] [[राजा दशरथ]] महाराज [[अज राजा|अज]] के पुत्र थे। इनकी [[माता]] का नाम इन्दुमती था। इन्होंने [[देवता|देवताओं]] की ओर से कई बार [[असुर|असुरों]] को पराजित किया था। [[वैवस्वत मनु]] के वंश में अनेक शूरवीर, पराक्रमी, प्रतिभाशाली तथा यशस्वी राजा हुये, जिनमें से [[राजा दशरथ]] भी एक थे। राजा दशरथ की तीन रानियाँ थीं। सबसे बड़ी [[कौशल्या]], दूसरी [[सुमित्रा]] और तीसरी [[कैकेयी]]। परंतु तीनों रानियाँ निःसंतान थीं। इसी से राजा दशरथ अत्यधिक चिंतित रहते थे। एक बार अपनी चिंता का कारण दशरथ ने राजगुरु [[वसिष्ठ]] को बताया। इस पर राजगुरु वसिष्ठ ने उनसे कहा- "राजन! उपाय से भी सभी इच्छाएँ पूर्ण हो जाती हैं। तुम श्रृंगी ऋषि को बुलाकर 'पुत्र कामेष्टि यज्ञ' कराओ। तुम्हें संतान की प्राप्ति अवश्य होगी।"{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[राजा दशरथ]]
| |
|
| |
| {[[विश्वामित्र|महर्षि विश्वामित्र]] की तपस्या जिस [[अप्सरा]] ने भंग की थी, उसका नाम क्या था?
| |
| |type="()"}
| |
| -[[उर्वशी]]
| |
| -[[रम्भा]]
| |
| -घृताची
| |
| +[[मेनका]]
| |
| ||[[चित्र:Vishwamitra-Menaka.jpg|right|90px|मेनका और विश्वामित्र]]'मेनका' स्वर्ग की सर्वसुन्दर [[अप्सरा]] थी। देवराज [[इन्द्र]] ने [[विश्वामित्र|महर्षि विश्वामित्र]] के नये सृष्टि के निर्माण के तप से डर कर उनकी तपस्या भंग करने के लिए [[मेनका]] को [[पृथ्वी]] पर भेजा था। मेनका ने अपने रूप और सौन्दर्य से तपस्या में लीन विश्वामित्र का तप भंग कर दिया। विश्वामित्र ने मेनका से [[विवाह]] कर लिया और वन में रहने लगे। विश्वामित्र सब कुछ छोड़कर मेनका के ही प्रेम में डूब गये थे। मेनका से विश्वामित्र ने एक सुन्दर कन्या प्राप्त की, जिसका नाम [[शकुंतला]] रखा गया। जब शकुंतला छोटी थी, तभी एक दिन मेनका उसे और विश्वामित्र को वन में छोड़कर स्वर्ग चली गई। विश्वामित्र का तप भंग करने में सफल होकर मेनका देवलोक लौटी तो वहाँ उसकी कामोद्दीपक शक्ति और कलात्मक सामर्थ्य की भूरि-भूरि प्रशंसा हुई और देवसभा में उसका आदर बहुत बढ़ गया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[मेनका]]
| |
|
| |
| {[[जनक|राजा जनक]] के छोटे भाई का क्या नाम था?
| |
| |type="()"}
| |
| -कुशनाभ
| |
| -[[कुश]]
| |
| +[[कुशध्वज]]
| |
| -सिरध्वज
| |
| ||'कुशध्वज' [[मिथिला]] के राजा [[निमि]] के पुत्र और [[जनक|राजा जनक]] के छोटे भाई थे। जनक और जिन कुशध्वज की तीन पुत्रियों के साथ [[श्रीराम]] के शेष तीन भाइयों का [[विवाह]] हुआ था, वे जनक के छोटे भाई थे। या तो जनक का मध्यम आयु में देहांत हो गया था या फिर [[कुशध्वज]] काफी दीर्घायु थे, क्योंकि सीरध्वज जनक का कोई पुत्र न होने के कारण, अर्थात [[सीता]] का कोई भाई न होने के कारण, कुशध्वज ही अपने भाई जनक के उत्तराधिकारी बने थे। राजा जनक के छोटे भाई कुशध्वज के भी दो कन्याएँ थीं- श्रुतकीर्ति और [[माण्डवी]]। इनमें माण्डवी के साथ [[भरत (दशरथ पुत्र)|भरत]] ने और श्रुतकीर्ति के साथ [[शत्रुघ्न]] ने [[विवाह]] किया, जबकि [[लक्ष्मण]] ने मिथलेश कन्या [[उर्मिला]] से विवाह किया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[कुशध्वज]], [[जनक]]
| |
|
| |
| {[[शत्रुघ्न]] के [[पुरोहित]] का क्या नाम था? | | {[[शत्रुघ्न]] के [[पुरोहित]] का क्या नाम था? |
| |type="()"} | | |type="()"} |