तुंगनाथ पहाड़ी: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
No edit summary |
No edit summary |
||
Line 1: | Line 1: | ||
[[चित्र:Tungnath-Hill.jpg|thumb|250px|तुंगनाथ पहाड़ी, [[गढ़वाल]]]] | [[चित्र:Tungnath-Hill.jpg|thumb|250px|तुंगनाथ पहाड़ी, [[गढ़वाल]]]] | ||
'''तुंगनाथ पहाड़ी''' ज़िला [[गढ़वाल]] [[उत्तराखण्ड]] में [[केदारनाथ]] के निकट स्थित एक ऊँची पहाड़ी है। यहाँ चोपती चट्टी के पास 12080 फुट की ऊँचाई पर भगवान [[शिव]] का एक मंदिर स्थित है। यह [[भारत]] का सर्वोच्च मंदिर है, जिसके कारण तुंगनाथ का नाम सार्थक ही जान पड़ता है। | '''तुंगनाथ पहाड़ी''' ज़िला [[गढ़वाल]] [[उत्तराखण्ड]] में [[केदारनाथ]] के निकट स्थित एक ऊँची पहाड़ी है। यहाँ चोपती चट्टी के पास 12080 फुट की ऊँचाई पर भगवान [[शिव]] का एक मंदिर स्थित है। यह [[भारत]] का सर्वोच्च मंदिर है, जिसके कारण तुंगनाथ का नाम सार्थक ही जान पड़ता है। | ||
*यहाँ स्थित शिव मंदिर की गणना 'पंचकेदारों' में की जाती है और यहाँ बाहुरूपी शिव की उपासना की जाती है। | *यहाँ स्थित शिव मंदिर की गणना '[[पंचकेदार|पंचकेदारों]]' में की जाती है और यहाँ बाहुरूपी शिव की उपासना की जाती है। | ||
*तुंगनाथ को प्राचीन काल में उत्तराखण्ड का पुण्यस्थल समझा जाता था। | *तुंगनाथ को प्राचीन काल में उत्तराखण्ड का पुण्यस्थल समझा जाता था। | ||
*[[महाभारत वनपर्व]] के अंतर्गत तीर्थों में उल्लिखित भृंतृतुंग नामक स्थान संभवत: तुंगनाथ ही है। | *[[महाभारत वनपर्व]] के अंतर्गत तीर्थों में उल्लिखित भृंतृतुंग नामक स्थान संभवत: तुंगनाथ ही है। |
Revision as of 08:15, 10 September 2013
[[चित्र:Tungnath-Hill.jpg|thumb|250px|तुंगनाथ पहाड़ी, गढ़वाल]] तुंगनाथ पहाड़ी ज़िला गढ़वाल उत्तराखण्ड में केदारनाथ के निकट स्थित एक ऊँची पहाड़ी है। यहाँ चोपती चट्टी के पास 12080 फुट की ऊँचाई पर भगवान शिव का एक मंदिर स्थित है। यह भारत का सर्वोच्च मंदिर है, जिसके कारण तुंगनाथ का नाम सार्थक ही जान पड़ता है।
- यहाँ स्थित शिव मंदिर की गणना 'पंचकेदारों' में की जाती है और यहाँ बाहुरूपी शिव की उपासना की जाती है।
- तुंगनाथ को प्राचीन काल में उत्तराखण्ड का पुण्यस्थल समझा जाता था।
- महाभारत वनपर्व के अंतर्गत तीर्थों में उल्लिखित भृंतृतुंग नामक स्थान संभवत: तुंगनाथ ही है।
- इस पहाड़ी के पास ही ऋषिकुल्या नदी बहती हुई बताई गई है-
'ऋषिकुल्यां समासाद्य नर: स्नात्वा विकल्मष:, देवान् पितृंश्यार्चयित्वा ऋषिलोकं प्रपद्यते। यदि तत्र वसेन्मासं शाकाहारी निराधिप, भृगुतुंग समासाद्य वाजिमेधफलं लभेत्'[1]
'भृगुर्यत्र तपस्तेपे महर्षिगण सेविते, राजन् स आश्रम: ख्यातो भृगुतुंगो महागिरि:'[2]
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान ग्रंथ अकादमी, जयपुर |पृष्ठ संख्या: 406 |
- ↑ महाभारत, वनपर्व 84, 49-50.
- ↑ महाभारत वनपर्व 90, 2, 3.