दौसा का दुर्ग: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
('''दौसा का दुर्ग''' राजस्थान के दौसा नगर में ‘दे...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
No edit summary
 
Line 1: Line 1:
''दौसा का दुर्ग''' [[राजस्थान]] के [[दौसा|दौसा नगर]] में ‘देवागिरि’ नामक पहाड़ी पर स्थित है। यह [[कछवाहा वंश|कछवाहा राजवंश]] की पहली राजधानी थी। प्रसिद्ध पुरातत्त्ववेत्ता कार्लाइल ने इसे [[राजपूताना]] के क़िलों में रखा। इसकी आकृति ‘सूप’ के समान है।<ref name="aa">{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=धरोहर राजस्थान सामान्य ज्ञान|लेखक=कुँवर कनक सिंह राव|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=पिंक सिटी पब्लिशर्स, जयपुर|संकलन=भारतकोश पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=डी-152|url=}}</ref>
{{सूचना बक्सा संक्षिप्त परिचय
|चित्र=Dausa-Fort-Rajasthan.jpg
|चित्र का नाम=दौसा का दुर्ग
|विवरण='दौसा का दुर्ग' [[राजस्थान]] के प्रसिद्ध ऐतिहासिक दुर्गों में से एक है। ‘देवागिरि’ नामक पहाड़ी पर स्थित यह [[दुर्ग]] एक शानदार पर्यटन स्थल है।
|शीर्षक 1=राज्य
|पाठ 1=[[राजस्थान]]
|शीर्षक 2=ज़िला
|पाठ 2=[[दौसा ज़िला|दौसा]]
|शीर्षक 3=निर्माण
|पाठ 3=इस दुर्ग का निर्माण सम्भवत: 'बड़गूजरों' ([[गुर्जर प्रतिहार वंश|गुर्जर-प्रतिहारों]]) द्वारा करवाया गया था।
|शीर्षक 4=
|पाठ 4=
|शीर्षक 5=
|पाठ 5=
|शीर्षक 6=
|पाठ 6=
|शीर्षक 7=
|पाठ 7=
|शीर्षक 8=
|पाठ 8=
|शीर्षक 9=
|पाठ 9=
|शीर्षक 10=
|पाठ 10=
|संबंधित लेख=[[राजस्थान]], [[राजस्थान का इतिहास]], [[राजस्थान पर्यटन]]
|अन्य जानकारी=इस दुर्ग में 'हाथीपोल' तथा 'मोरी दरवाज़ा' नाम के दो दरवाज़े हैं। क़िले के अंदर भीतर वाले परकोटे के प्रांगण में ‘रामचंद्रजी’, ‘दुर्गामाता’, ‘जैन मंदिर’ तथा एक मस्जिद स्थित है।
|बाहरी कड़ियाँ=
|अद्यतन=
}}


*इस [[दुर्ग]] का निर्माण सम्भवत: बड़गूजरों (गुर्जर-प्रतिहारों) द्वारा करवाया गया था। बाद में कछवाहा शासकों ने इसका निर्माण करवाया।
'''दौसा का दुर्ग''' [[राजस्थान]] के [[दौसा|दौसा नगर]] में ‘देवागिरि’ नामक पहाड़ी पर स्थित है। यह [[कछवाहा वंश|कछवाहा राजवंश]] की पहली राजधानी थी। प्रसिद्ध पुरातत्त्ववेत्ता कार्लाइल ने इसे [[राजपूताना]] के क़िलों में रखा। इसकी आकृति ‘सूप’ के समान है।<ref name="aa">{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=धरोहर राजस्थान सामान्य ज्ञान|लेखक=कुँवर कनक सिंह राव|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=पिंक सिटी पब्लिशर्स, जयपुर|संकलन=भारतकोश पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=डी-152|url=}}</ref>
 
*इस [[दुर्ग]] का निर्माण सम्भवत: बड़गूजरों ([[गुर्जर प्रतिहार वंश|गुर्जर-प्रतिहारों]]) द्वारा करवाया गया था। बाद में कछवाहा शासकों ने इसका निर्माण करवाया।
*यह विशाल मैदान से घिरा हुआ गिरिदुर्ग है। इसमें प्रवेश के दो दरवाज़े हैं-
*यह विशाल मैदान से घिरा हुआ गिरिदुर्ग है। इसमें प्रवेश के दो दरवाज़े हैं-
#हाथीपोल
#हाथीपोल

Latest revision as of 14:13, 21 August 2014

दौसा का दुर्ग
विवरण 'दौसा का दुर्ग' राजस्थान के प्रसिद्ध ऐतिहासिक दुर्गों में से एक है। ‘देवागिरि’ नामक पहाड़ी पर स्थित यह दुर्ग एक शानदार पर्यटन स्थल है।
राज्य राजस्थान
ज़िला दौसा
निर्माण इस दुर्ग का निर्माण सम्भवत: 'बड़गूजरों' (गुर्जर-प्रतिहारों) द्वारा करवाया गया था।
संबंधित लेख राजस्थान, राजस्थान का इतिहास, राजस्थान पर्यटन
अन्य जानकारी इस दुर्ग में 'हाथीपोल' तथा 'मोरी दरवाज़ा' नाम के दो दरवाज़े हैं। क़िले के अंदर भीतर वाले परकोटे के प्रांगण में ‘रामचंद्रजी’, ‘दुर्गामाता’, ‘जैन मंदिर’ तथा एक मस्जिद स्थित है।

दौसा का दुर्ग राजस्थान के दौसा नगर में ‘देवागिरि’ नामक पहाड़ी पर स्थित है। यह कछवाहा राजवंश की पहली राजधानी थी। प्रसिद्ध पुरातत्त्ववेत्ता कार्लाइल ने इसे राजपूताना के क़िलों में रखा। इसकी आकृति ‘सूप’ के समान है।[1]

  • इस दुर्ग का निर्माण सम्भवत: बड़गूजरों (गुर्जर-प्रतिहारों) द्वारा करवाया गया था। बाद में कछवाहा शासकों ने इसका निर्माण करवाया।
  • यह विशाल मैदान से घिरा हुआ गिरिदुर्ग है। इसमें प्रवेश के दो दरवाज़े हैं-
  1. हाथीपोल
  2. मोरी दरवाज़ा
  • मोरी दरवाज़ा छोटा तथा संकरा है, जो सागर नामक जलाशय में खुलता है।
  • क़िले के सामने वाला भाग दोहरे परकोटे से परिवेष्टित है। इसमें मोरी दरवाज़े के पास ‘राजाजी का कुँआ’ स्थित है। इसके पास में ही चार मंजिल की विशाल बावड़ी स्थित है।
  • बावड़ी के निकट बैजनाथ महादे' का मंदिर अवस्थित है।
  • क़िले के अंदर भीतर वाले परकोटे के प्रांगण में ‘रामचंद्रजी’, ‘दुर्गामाता’, ‘जैन मंदिर’ तथा एक मस्जिद स्थित है।
  • दौसा दुर्ग की ऊँची चोटी पर गढ़ी में नीलकण्ठ महादेव का मंदिर है। गढ़ी के सामने 13.6 फीट लम्बी तोप स्थित है।
  • गढ़ी के भीतर अश्वशाला ‘चौदह राजाओं की साल’, प्राचीन कुण्ड तथा सैनिकों के विश्रामगृह स्थित हैं।
  • राजा भारमल के शासन काल में आमेर के दिवंगत राणा पूरणमल के विद्रोही पुत्र ‘सूजा’ (सूजामल) की हत्या लाला नरुका ने दौसा में की थी, जिसका स्मारक क़िले में मोरी दरवाज़े के बाहर सूर्य मंदिर के पार्श्व में स्थित है। यह जनमानस में 'सूरज प्रेतेश्वर भौमिया जी' के नाम से प्रसिद्ध है।[1]


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 धरोहर राजस्थान सामान्य ज्ञान |लेखक: कुँवर कनक सिंह राव |प्रकाशक: पिंक सिटी पब्लिशर्स, जयपुर |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: डी-152 |

संबंधित लेख