रूपनाथ: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
No edit summary
Line 1: Line 1:
{{पुनरीक्षण}}
'''रूपनाथ''' [[मध्य प्रदेश]] के [[जबलपुर]] की [[कैमूर पहाड़ियाँ|कैमूर पर्वत शृंखला]] की तलहटी में स्थित एक रमणीक स्थल है। यहाँ [[शिव|भगवान शिव]] का एक प्राचीन मन्दिर भी स्थित है। रूपनाथ [[हिन्दू|हिन्दुओं]] का प्रसिद्ध [[तीर्थ|तीर्थ स्थल]] है, जहाँ [[राम]], [[लक्ष्मण]] तथा [[सीता]] के नाम पर तीन सरोवर बने हुए हैं।
'''रूपनाथ''' [[मध्यप्रदेश]] के [[जबलपुर]] की [[कैमूर पहाड़ियाँ|कैमूर पर्वत शृंखला]] की तलहटी में स्थित एक रमणीक स्थल है।  
 
*रूपनाथ में  [[शिव]] का प्राचीन मन्दिर स्थित है।  
*[[मौर्य]] शासक [[अशोक]] का अमुख्य [[अशोक के शिलालेख|शिलालेख]] संख्या-1 यहाँ एक चट्टान पर उत्कीर्ण है, जिसका संस्कृत रूपांतर निम्नलिखित है<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=ऐतिहासिक स्थानावली|लेखक=विजयेन्द्र कुमार माथुर|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर|संकलन= भारतकोश पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=799|url=}}</ref>-
*यह एक [[तीर्थ]] स्थल है, जहाँ [[राम]], [[लक्ष्मण]] तथा [[सीता]] के नाम पर तीन सरोवर बने हुए हैं।  
 
*मौर्य शासक [[अशोक के शिलालेख|अशोक का लघु शिलालेख]] सं.1 यहाँ एक चट्टान पर उत्कीर्ण है।
<blockquote>"देवानां प्रिय: एवं आह सातिरेकाणि सार्धद्वयानि वर्षाणि अस्मि अहं श्रावकः न तु वाढ़ं प्रकांतः, सातिरेकः तु संवत्सरः यत् अस्मि संघ उपेतः वाढ़ं तु प्रकांतः। ये अमुस्मैकालाय जूंबद्वीपे अमृषादेवाः अभूवन् ते इदानी मृषाः कृता:। प्रक्रमस्य हि इदं फलम्। न तु इदं महत्तया प्राप्तव्यम्। क्षुद्रकेण हि केनापि प्रक्रमाणेन शक्यः विपुलोस्पि स्वर्गः आराधयितुम, एतस्मै अर्थाय च श्रावणं कृतं क्षुद्रकाः च उदाराः च प्रक्रमन्तां इति। अंता: अपि च जानन्तु अयं प्रक्रम: किमति चिरस्थिकः स्यात्। अयं हि अर्थः वर्धिष्यते। इमं च अर्थ पर्वतेषु लेखयत परत्र इह च। सति शिलास्तंभे लेखितव्यः सर्वत्रविवसितव्यमिति। व्युष्टेन श्रावणं कृत 256 सत्रविवासात्।"</blockquote>
*लेख में [[अशोक]] यह दावा करता है कि उसके धम्म प्रचार के फलस्वरूप [[भारत]] के निवासी अपने नैतिक आचरण के कारण [[देवता|देवताओं]] से मिल गये हैं।  
 
*लेख में [[अशोक]] यह दावा करता है कि उसके '[[अशोक का धम्म|धम्म]]' प्रचार के फलस्वरूप [[भारत]] के निवासी अपने नैतिक आचरण के कारण [[देवता|देवताओं]] से मिल गये हैं।
*ऐसा जान पड़ता है कि [[अशोक]] के समय में यह स्थान तीर्थ रूप में मान्य था।


{{प्रचार}}
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
{{संदर्भ ग्रंथ}}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
<references/>
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
{{मध्य प्रदेश के ऐतिहासिक स्थान}}
{{मध्य प्रदेश के ऐतिहासिक स्थान}}
[[Category:मध्य प्रदेश के धार्मिक स्थल]] [[Category:मध्य_प्रदेश]]  
[[Category:मध्य_प्रदेश]][[Category:मध्य प्रदेश के धार्मिक स्थल]][[Category:मध्य_प्रदेश_के_ऐतिहासिक_स्थान]][[Category:मौर्य काल]]
[[Category:मध्य_प्रदेश_के_ऐतिहासिक_स्थान]]
[[Category:अशोक]][[Category:धार्मिक_स्थल_कोश]][[Category:हिन्दू_धार्मिक_स्थल]][[Category:ऐतिहासिक स्थान कोश]][[Category:इतिहास कोश]]
[[Category:अशोक]][[Category:धार्मिक_स्थल_कोश]][[Category:हिन्दू_धार्मिक_स्थल]]
 
__INDEX__
__INDEX__

Revision as of 11:09, 22 August 2014

रूपनाथ मध्य प्रदेश के जबलपुर की कैमूर पर्वत शृंखला की तलहटी में स्थित एक रमणीक स्थल है। यहाँ भगवान शिव का एक प्राचीन मन्दिर भी स्थित है। रूपनाथ हिन्दुओं का प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है, जहाँ राम, लक्ष्मण तथा सीता के नाम पर तीन सरोवर बने हुए हैं।

  • मौर्य शासक अशोक का अमुख्य शिलालेख संख्या-1 यहाँ एक चट्टान पर उत्कीर्ण है, जिसका संस्कृत रूपांतर निम्नलिखित है[1]-

"देवानां प्रिय: एवं आह सातिरेकाणि सार्धद्वयानि वर्षाणि अस्मि अहं श्रावकः न तु वाढ़ं प्रकांतः, सातिरेकः तु संवत्सरः यत् अस्मि संघ उपेतः वाढ़ं तु प्रकांतः। ये अमुस्मैकालाय जूंबद्वीपे अमृषादेवाः अभूवन् ते इदानी मृषाः कृता:। प्रक्रमस्य हि इदं फलम्। न तु इदं महत्तया प्राप्तव्यम्। क्षुद्रकेण हि केनापि प्रक्रमाणेन शक्यः विपुलोस्पि स्वर्गः आराधयितुम, एतस्मै अर्थाय च श्रावणं कृतं क्षुद्रकाः च उदाराः च प्रक्रमन्तां इति। अंता: अपि च जानन्तु अयं प्रक्रम: किमति चिरस्थिकः स्यात्। अयं हि अर्थः वर्धिष्यते। इमं च अर्थ पर्वतेषु लेखयत परत्र इह च। सति शिलास्तंभे लेखितव्यः सर्वत्रविवसितव्यमिति। व्युष्टेन श्रावणं कृत 256 सत्रविवासात्।"

  • लेख में अशोक यह दावा करता है कि उसके 'धम्म' प्रचार के फलस्वरूप भारत के निवासी अपने नैतिक आचरण के कारण देवताओं से मिल गये हैं।
  • ऐसा जान पड़ता है कि अशोक के समय में यह स्थान तीर्थ रूप में मान्य था।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 799 |

संबंधित लेख