विराधकुण्ड: Difference between revisions
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<blockquote>'निष्कूजमानशकुनिझिल्लिकागणनादितम, लक्ष्मणानुचरो रामोवनमध्यं ददर्शह, सीतया सह काकुत्स्थस्तस्मिन् घोरमृगायुते, ददर्श गिरिश्रृगाभं पुरुषादं महास्वनम्। अधर्मचारिणौ पापौ को युवां मुनिदूषकौ, अहं वनमिदं दुर्ग विरोधो नाम राक्षसः चरामि सायुधौ नित्यमृषिमांसानि भक्षयन्। इयं नारी वरारोहा मम भार्या भविष्यति।'<ref>[[वाल्मीकि रामायण]], [[अरण्य काण्ड वा. रा.|अरण्य काण्ड]] 2,3-4-12-13</ref></blockquote> | <blockquote>'निष्कूजमानशकुनिझिल्लिकागणनादितम, लक्ष्मणानुचरो रामोवनमध्यं ददर्शह, सीतया सह काकुत्स्थस्तस्मिन् घोरमृगायुते, ददर्श गिरिश्रृगाभं पुरुषादं महास्वनम्। अधर्मचारिणौ पापौ को युवां मुनिदूषकौ, अहं वनमिदं दुर्ग विरोधो नाम राक्षसः चरामि सायुधौ नित्यमृषिमांसानि भक्षयन्। इयं नारी वरारोहा मम भार्या भविष्यति।'<ref>[[वाल्मीकि रामायण]], [[अरण्य काण्ड वा. रा.|अरण्य काण्ड]] 2,3-4-12-13</ref></blockquote> | ||
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Revision as of 10:43, 6 November 2014
विराधकुण्ड बाँदा ज़िला, उत्तर प्रदेश का ऐतिहासिक स्थान है। यह इटारसी-इलाहाबाद रेलमार्ग पर, टिकरिया स्टेशन से लगभग 2 मील दूर घने वन के बीच स्थित है।
- यह एक विस्तीर्ण खाई है, जिसे किवदंती में वह स्थान कहा जाता है, जहां भगवान राम ने वन यात्रा के समय 'विराध' नामक राक्षस का वध किया था।
- विराध राक्षस चित्रकूट के आगे दंडकवन के मार्ग में एक घने जंगल में रहता था-
'निष्कूजमानशकुनिझिल्लिकागणनादितम, लक्ष्मणानुचरो रामोवनमध्यं ददर्शह, सीतया सह काकुत्स्थस्तस्मिन् घोरमृगायुते, ददर्श गिरिश्रृगाभं पुरुषादं महास्वनम्। अधर्मचारिणौ पापौ को युवां मुनिदूषकौ, अहं वनमिदं दुर्ग विरोधो नाम राक्षसः चरामि सायुधौ नित्यमृषिमांसानि भक्षयन्। इयं नारी वरारोहा मम भार्या भविष्यति।'[1]
- विराधकुण्ड से चित्रकूट अधिक दूरी पर नहीं है।[2]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ वाल्मीकि रामायण, अरण्य काण्ड 2,3-4-12-13
- ↑ ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 861 |