विनोद मेहता: Difference between revisions
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Revision as of 13:06, 8 March 2015
विनोद मेहता
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पूरा नाम | विनोद मेहता |
जन्म | 31 मई, 1942[1] |
जन्म भूमि | रावलपिंडी, पाकिस्तान |
मृत्यु | 8 मार्च, 2015 (उम्र- 73 वर्ष) |
मृत्यु स्थान | दिल्ली, भारत |
पति/पत्नी | सुमिता पाल |
कर्म-क्षेत्र | पत्रकार, संपादक, लेखक |
मुख्य रचनाएँ | ‘लखनऊ ब्यॉय: ए मेमोयार’, 'एडिटर अनप्लगड' आदि |
भाषा | अंग्रेज़ी, हिन्दी |
विद्यालय | लखनऊ विश्वविद्यालय |
शिक्षा | स्नातक |
पुरस्कार-उपाधि | जी.के. रेड्डी मेमोरियल पुरस्कार, यश भारती पुरस्कार |
प्रसिद्धि | आउटलुक पत्रिका के संस्थापक एवं मुख्य संपादक |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | विनोद मेहता ने मीना कुमारी और संजय गांधी की जीवनी लिखी और 2001 में उनके लेखों का संकलन ‘मिस्टर एडिटर : हाउ क्लोज आर यू टू द पीएम’ प्रकाशित हुआ। |
इन्हें भी देखें | कवि सूची, साहित्यकार सूची |
विनोद मेहता (अंग्रेज़ी: Vinod Mehta, जन्म: 1942 - मृत्यु: 8 मार्च, 2015) जाने माने पत्रकार, आउटलुक पत्रिका के संस्थापक एवं मुख्य संपादक थे। पत्रकारिता के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए विनोद मेहता को प्रतिष्ठित जी.के. रेड्डी मेमोरियल पुरस्कार और यश भारती पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।[2]संपादक, लेखक और टेलीविजन टिप्पणीकार की अपनी लंबी पारी के दौरान विनोद मेहता मेज पर हाज़िरजवाबी, बेबाकी और निष्पक्षता लेकर आए। इस वजह से वह देशभर और पूरी दुनिया में अपने पाठकों एवं दर्शकों, यहां तक कि दोस्तों और दुश्मनों के भी चहेते बने रहे। ऐसा प्रतिद्वंद्वी विरला ही मिलेगा जिसके पास उनके लिए दो अच्छे शब्द न हों।
जीवन परिचय
विनोद मेहता का जन्म 1942 में रावलपिंडी में हुआ था जो अब पाकिस्तान में है। उन्हें पत्रकारिता जगत में एक बोल्ड फिगर के रूप में जाना जाता था। वह न्यूज चैनलों में बतौर पैनलिस्ट बहुत बेबाकी से अपनी राय रखते थे। विनोद मेहता ने 2011 में आत्मकथा ‘लखनऊ ब्वॉय’ लिखी और वे टीवी पर चर्चा करने वालों में लोकप्रिय चेहरा थे। हाल ही में उन्होंने एक और पुस्तक ‘एडिटर अनप्लग्ड’ लिखी लेकिन दिसंबर में इसके लोकार्पण में हिस्सा नहीं ले सके। विनोद मेहता को कुत्तों से काफी प्रेम था और उन्होंने एक गली के कुत्ते को गोद भी लिया था जिसका नाम एडिटर रखा था। इस कुत्ते का जिक्र आउटलुक में उनके लेख में अक्सर आता था। विनोद मेहता प्रतिष्ठित संपादक थे जिन्होंने सफलतापूर्वक ‘संडे ऑब्जर्वर, ‘इंडियन पोस्ट’, ‘द इंडिपेंडेंट’, द पायनियर (दिल्ली संस्करण) और फिर आउटलुक की शुरुआत की। मेहता तीन वर्ष के थे जब भारत विभाजन के बाद वह अपने परिवार के साथ भारत आए। उनका परिवार लखनऊ में बस गया जहां से उन्होंने स्कूली शिक्षा और फिर बीए की डिग्री हासिल की। बीए डिग्री के साथ उन्होंने घर छोड़ा और एक फैक्टरी में काम करने से लेकर कई नौकरियां की। साल 1974 में उन्हें डेबोनियर का संपादन करने का मौका मिला। कई वर्ष बाद वह दिल्ली चले आए जहां उन्होंने ‘द पायनियर’ अखबार के दिल्ली संस्करण पेश किया। उन्होंने सुमिता पाल से विवाह किया जिन्होंने पत्रकार के रूप में पायनियर में काम किया। इस दम्पति को कोई संतान नहीं है। thumb|left|विनोद मेहता अपनी पुस्तक ‘लखनऊ ब्यॉय’ में विनोद मेहता ने लिखा है कि उनके अपने जवानी के दिनों के प्रेम संबंध से एक बेटी है। उन्होंने बताया था कि अपनी आत्मकथा में जब तक उन्होंने यह बात नहीं लिखी थी तब तक उनकी बेटी के बारे में सिर्फ उनकी पत्नी को जानकारी थी। विनोद मेहता ने बताया था कि उन्होंने अपनी पत्नी को इस बारे में बताया और उसने मुझे किताब में इसका जिक्र करने के लिए प्रोत्साहित किया। विनोद मेहता ने मीना कुमारी और संजय गांधी की जीवनी लिखी और 2001 में उनके लेखों का संकलन ‘मिस्टर एडिटर : हाउ क्लोज आर यू टू द पीएम’ प्रकाशित हुआ।[2]
आउटलुक के संस्थापक
आउटलुक के संस्थापक प्रधान संपादक के तौर पर विनोद मेहता ने भारतीय मैगजीन पत्रकारिता में रुख की ताजगी, मन का खुलापन और स्पर्श की सहजता भरकर उसे फिर ऊर्जावान कर दिया। ये बातें अब भी भारत के प्रमुख अंग्रेजी समाचार साप्ताहिक आउटलुक और उसकी सहयोगी पत्रिकाओं आउटलुक हिंदी, आउटलुक बिजनेस, आउटलुक मनी और आउटलुक ट्रेवलर को दिशा दे रहे हैं। खुल्लम-खुल्ला कट्टर क्रिकेटप्रेमी और भोजनभट्ट विनोद मेहता सुरुचिपूर्ण गपशप के चुंबक थे। अपनी गपशप वह आउटलुक के अंतिम पृष्ठ पर अपनी बहुपठित डायरियों के जरिये बड़ी दक्षता से पूरी व्यवस्था में खोलकर फैला देते थे। अतिशयोक्ति और भारी-भरकम शब्दों से विनोद मेहता को नफरत थी। महत्वपूर्ण को दिलचस्प बनाना उनकी पत्रिका का सिद्घांत था।[3]
पत्रकारिता में योगदान
[[चित्र:Outlook-hindi.JPG|thumb|आउटलुक (हिन्दी) आवरण पृष्ठ]] विनोद मेहता मौजूदा दौर के सबसे प्रयोगधर्मी संपादक रहे। उन्होंने अपने पत्रकारीय करियर की शुरुआत प्लेब्वॉय के भारतीय संस्करण डेबोनियर के संपादक के तौर पर की। चलताऊ मैगजीन से शुरू हुआ उनका सफर हार्डकोर न्यूज़ की दुनिया के सबसे कद्दावर संपादक के रूप में पूरा हुआ। उन्होंने अपने इस सफर के दौरान भारत के सबसे पहले साप्ताहिक अखबार, द संडे आब्जर्वर को शुरू किया। इसके बाद इंडियन पोस्ट और इंडिपेंडेंट जैसे अखबारों को संभाला। पायनियर के दिल्ली संस्करण की शुरुआत की और इन सबके बाद करीब डेढ़ दशक तक आउटलुक समूह की दस पत्रिकाओं का संपादन किया जिसमें आउटलुक भी शामिल है जिसने भारतीय समाचार पत्रिकाओं में सबसे लोकप्रिय पत्रिका इंडिया टुडे को पीछे छोड़ दिया था। एक पत्रकार और संपादक के तौर पर विनोद मेहता का बायोडाटा बेहद कामयाब और चमकदार रहा। इतना ही नहीं उनके तमाम अखबार और पत्रिकाओं ने अपने लुक और कंटेंट से एक खास पहचान बनाई। इस कामयाबी के पीछे कैसे-कैसे संघर्ष और चुनौतियों का सामना विनोद मेहता को करना पड़ा, इसका सिलसिलेवार और बेहद दिलचस्प विवरण उन्होंने अपनी आत्मकथात्मक पुस्तक लखनऊ ब्वॉय ए मेमोयार में किया। चूंकि विनोद कई प्रतिष्ठानों में संपादक की हैसियत में रहे, लिहाजा उनकी किताब में स्कैंडल और गॉसिप भी कम नहीं हैं जिसका विस्तार उनकी दूसरी पुस्तक 'एडिटर अनप्लगड' में भी नज़र आया है।
आउटलुक की सफलता
आउटलुक को अलग बनाने की उनकी जद्दोजेहद किसी को भी प्रेरित कर सकती है। मैच फिक्सिंग की खबर हो, या फिर अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी के बीच टकराव की खबर हो या फिर राडिया टेप से जुड़े दस्तावेज को प्रकाशित करने का मामला, इन तमाम खबरों पर काम करने के दौरान किस तरह की चुनौतियां सामने थीं, इसको उन्होंने सहज अंदाज में बताया है। वाजपेयी सरकार ने जिस तरह से आउटलुक के प्रकाशकों को तंग किया, उस पर भी लेखक ने निशाना साधा है। पुस्तक का एक हिस्सा पत्रकारिता से जुड़े लोगों के लिए बेहद उपयोगी है जिसमें लेखक ने अपने अनुभव के आधार पर पत्रकारिता कर रहे लोगों को अपना काम बेहतर करने के रास्ते सुझाए हैं। चार दशकों के अपने संपादकत्व के अनुभव के आधार पर विनोद मेहता लिखते हैं कि आप जो भी काम करें, उसमें दक्षता हासिल कीजिए तो आपकी जरूरत हमेशा बनी रहेगी। जहां लखनऊ ब्वॉय में विनोद अपने करियर के बारे में विस्तार से बताते हैं, वहीं उनकी आत्मकथा का दूसरे हिस्सा एडिटर अनप्लगड में उन्होंने पत्रकारीय प्रबंधन और कारपोरेट के बारीक रिश्तों को उजागर किया है।[4]
निधन
लम्बी बीमारी के कारण 8 मार्च, 2015 को इनका निधन हो गया। वे 73 वर्ष के थे। मेहता आउटलुक पत्रिका के संपादकीय अध्यक्ष थे जिसकी उन्होंने शुरुआत की थी। वह कई महीने से बीमार थे और एम्स में भर्ती थे। वह फेफडे के संक्रमण से पीड़ित थे और जीवन रक्षक यंत्र पर थे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विनोद मेहता के निधन पर शोक प्रकट किया। नरेन्द्र मोदी ने सोशल नेटवर्क वेबसाइट ट्विटर पर ट्वीट किया, ‘‘अपने विचार में स्पष्ट और बेबाक विनोद मेहता को एक शानदार पत्रकार और लेखक के रूप में जाना जायेगा। उनके निधन पर उनके परिवार के प्रति संवेदना प्रकट करता हूं।’’[2]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ आईबीएन खबर
- ↑ 2.0 2.1 2.2
वरिष्ठ पत्रकार विनोद मेहता का निधन (हिन्दी) बीबीसी। अभिगमन तिथि: 8 मार्च, 2015। Cite error: Invalid
<ref>
tag; name "जनसत्ता" defined multiple times with different content - ↑ आउटलुक समूह के संस्थापक संपादक विनोद मेहता नहीं रहे (हिन्दी) आउटलुक। अभिगमन तिथि: 8 मार्च, 2015।
- ↑ कुमार, प्रदीप। पत्रकारिता की दुनिया में हमेशा याद आएंगे लखनऊ ब्वॉय विनोद मेहता (हिन्दी) एनडीटीवी खबर। अभिगमन तिथि: 8 मार्च, 2015।
बाहरी कड़ियाँ
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