दीनबंधु रघुपति कर किंकर: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
No edit summary
Line 34: Line 34:
;चौपाई
;चौपाई
दीनबंधु रघुपति कर किंकर। सुनत भरत भेंटेउ उठि सादर॥
दीनबंधु रघुपति कर किंकर। सुनत भरत भेंटेउ उठि सादर॥
मिलत प्रेम नहिं हृदयँ समाता। नयन स्रवतजल पुलकित गाता॥5॥  
मिलत प्रेम नहिं हृदयँ समाता। नयन स्रवतजल पुलकित गाता॥5॥
 
</poem>
</poem>
{{poemclose}}
{{poemclose}}
;भावार्थ
;भावार्थ
मैं दीनों के बंधु [[राम|श्री रघुनाथ जी]] का दास हूँ। यह सुनते ही [[भरत|भरत जी]] उठकर आदरपूर्वक [[हनुमान|हनुमान जी]] से गले लगकर मिले। मिलते समय प्रेम [[हृदय]] में नहीं समाता। [[नेत्र|नेत्रों]] से (आनंद और प्रेम के आँसुओं का) जल बहने लगा और शरीर पुलकित हो गया॥5॥
मैं दीनों के बंधु [[राम|श्री रघुनाथजी]] का दास हूँ। यह सुनते ही [[भरत|भरत जी]] उठकर आदरपूर्वक [[हनुमान|हनुमान जी]] से गले लगकर मिले। मिलते समय प्रेम [[हृदय]] में नहीं समाता। नेत्रों से (आनंद और प्रेम के आँसुओं का) [[जल]] बहने लगा और शरीर पुलकित हो गया॥5॥  


{{लेख क्रम4| पिछला=को तुम्ह तात कहाँ ते आए |मुख्य शीर्षक=रामचरितमानस |अगला=एहि संदेस सरिस जग माहीं}}
{{लेख क्रम4| पिछला=को तुम्ह तात कहाँ ते आए |मुख्य शीर्षक=रामचरितमानस |अगला=कपि तव दरस सकल दुख बीते}}


'''चौपाई'''- मात्रिक सम [[छन्द]] का भेद है। [[प्राकृत]] तथा [[अपभ्रंश]] के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित [[हिन्दी]] का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। [[तुलसीदास|गोस्वामी तुलसीदास]] ने [[रामचरितमानस]] में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।
'''चौपाई'''- मात्रिक सम [[छन्द]] का भेद है। [[प्राकृत]] तथा [[अपभ्रंश]] के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित [[हिन्दी]] का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। [[तुलसीदास|गोस्वामी तुलसीदास]] ने [[रामचरितमानस]] में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।


{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक2 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक2 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}

Revision as of 08:00, 2 June 2016

दीनबंधु रघुपति कर किंकर
कवि गोस्वामी तुलसीदास
मूल शीर्षक रामचरितमानस
मुख्य पात्र राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि
प्रकाशक गीता प्रेस गोरखपुर
शैली सोरठा, चौपाई, छन्द और दोहा
संबंधित लेख दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा
काण्ड उत्तरकाण्ड
चौपाई

दीनबंधु रघुपति कर किंकर। सुनत भरत भेंटेउ उठि सादर॥
मिलत प्रेम नहिं हृदयँ समाता। नयन स्रवतजल पुलकित गाता॥5॥

भावार्थ

मैं दीनों के बंधु श्री रघुनाथजी का दास हूँ। यह सुनते ही भरत जी उठकर आदरपूर्वक हनुमान जी से गले लगकर मिले। मिलते समय प्रेम हृदय में नहीं समाता। नेत्रों से (आनंद और प्रेम के आँसुओं का) जल बहने लगा और शरीर पुलकित हो गया॥5॥


left|30px|link=को तुम्ह तात कहाँ ते आए|पीछे जाएँ दीनबंधु रघुपति कर किंकर right|30px|link=कपि तव दरस सकल दुख बीते|आगे जाएँ

चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख