सकल द्विजन्ह मिलि नायउ माथा: Difference between revisions
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गहे भरत पुनि प्रभु पद पंकज। नमत जिन्हहि सुर मुनि संकर अज॥3॥ | गहे भरत पुनि प्रभु पद पंकज। नमत जिन्हहि सुर मुनि संकर अज॥3॥ | ||
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Latest revision as of 05:20, 4 June 2016
सकल द्विजन्ह मिलि नायउ माथा
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | सोरठा, चौपाई, छन्द और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | उत्तरकाण्ड |
सकल द्विजन्ह मिलि नायउ माथा। धर्म धुरंधर रघुकुलनाथा॥ |
- भावार्थ
धर्म की धुरी धारण करने वाले रघुकुल के स्वामी श्री रामजी ने सब ब्राह्मणों से मिलकर उन्हें मस्तक नवाया। फिर भरतजी ने प्रभु के वे चरणकमल पकड़े जिन्हें देवता, मुनि, शंकर जी और ब्रह्मा जी (भी) नमस्कार करते हैं॥3॥
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चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख