ख़लील जिब्रान: Difference between revisions

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'''ख़लील जिब्रान''' ([[अंग्रेज़ी]]: Khalil Gibran, जन्म: [[6 जनवरी]], [[1883]]; मृत्यु: [[10 अप्रॅल]], [[1931]]) विश्व के श्रेष्ठ चिंतक महाकवि के रूप में ख्याति प्राप्त करने वाले महान् दार्शनिक थे। देश-विदेश भ्रमण करने वाले ख़लील जिब्रान [[अरबी भाषा|अरबी]], अंग्रेज़ी, [[फ़ारसी भाषा|फ़ारसी ]] के ज्ञाता, दार्शनिक और चित्रकार भी थे।  
==जन्म==
==जन्म==
ख़लील जिब्रान [[6 जनवरी]] [[1883]] को लेबनान के 'बथरी' नगर में एक संपन्न परिवार में पैदा हुए। 12 वर्ष की आयु में ही माता-पिता के साथ बेल्जियम, फ्रांस, अमेरिका आदि देशों में भ्रमण करते हुए [[1912]] में [[अमेरिका]] के [[न्यूयॉर्क नगर|न्यूयॉर्क]] में स्थायी रूप से रहने लगे थे।
ख़लील जिब्रान [[6 जनवरी]] [[1883]] को लेबनान के 'बथरी' नगर में एक संपन्न परिवार में पैदा हुए। 12 वर्ष की आयु में ही माता-पिता के साथ बेल्जियम, फ्रांस, अमेरिका आदि देशों में भ्रमण करते हुए [[1912]] में [[अमेरिका]] के [[न्यूयॉर्क नगर|न्यूयॉर्क]] में स्थायी रूप से रहने लगे थे।
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* जो पुरुष स्त्रियों के छोटे-छोटे अपराधों को क्षमा नहीं करते, वे उनके महान गुणों का सुख नहीं भोग सकते।
* जो पुरुष स्त्रियों के छोटे-छोटे अपराधों को क्षमा नहीं करते, वे उनके महान् गुणों का सुख नहीं भोग सकते।
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Revision as of 13:59, 30 June 2017

ख़लील जिब्रान
पूरा नाम ख़लील जिब्रान
जन्म 6 जनवरी 1883
जन्म भूमि 'बथरी' नगर, लेबनान
मृत्यु 10 अप्रैल 1931
मृत्यु स्थान न्यूयॉर्क, अमेरिका
कर्म-क्षेत्र दार्शनिक, कवि, चित्रकार
भाषा अरबी, अंग्रेज़ी, फ़ारसी
अन्य जानकारी इनकी रचनाएं 22 से अधिक भाषाओं में देश-विदेश में तथा हिन्दी, गुजराती, मराठी, उर्दू में अनुवादित हो चुकी हैं।
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची

ख़लील जिब्रान (अंग्रेज़ी: Khalil Gibran, जन्म: 6 जनवरी, 1883; मृत्यु: 10 अप्रॅल, 1931) विश्व के श्रेष्ठ चिंतक महाकवि के रूप में ख्याति प्राप्त करने वाले महान् दार्शनिक थे। देश-विदेश भ्रमण करने वाले ख़लील जिब्रान अरबी, अंग्रेज़ी, फ़ारसी के ज्ञाता, दार्शनिक और चित्रकार भी थे।

जन्म

ख़लील जिब्रान 6 जनवरी 1883 को लेबनान के 'बथरी' नगर में एक संपन्न परिवार में पैदा हुए। 12 वर्ष की आयु में ही माता-पिता के साथ बेल्जियम, फ्रांस, अमेरिका आदि देशों में भ्रमण करते हुए 1912 में अमेरिका के न्यूयॉर्क में स्थायी रूप से रहने लगे थे।

उच्च कोटि के सुभाषित

ख़लील जिब्रान अपने विचार, जो उच्च कोटि के सुभाषित या कहावत रूप में होते थे, उन्हें काग़ज़ के टुकड़ों, थिएटर के कार्यक्रम के काग़ज़ों, सिगरेट की डिब्बियों के गत्तों तथा फटे हुए लिफाफों पर लिखकर रख देते थे। उनकी सेक्रेटरी श्रीमती बारबरा यंग को उन्हें इकट्ठी कर प्रकाशित करवाने का श्रेय जाता है। उन्हें हर बात या कुछ कहने के पूर्व एक या दो वाक्य सूत्र रूप में सूक्ति कहने की आदत थी।

देश निकाला

उन्हें अपने चिंतन के कारण समकालीन पादरियों और अधिकारी वर्ग का कोपभाजन होने से जाति से बहिष्कृत करके देश निकाला तक दे दिया गया था।

साहित्यिक परिचय

ख़लील जिब्रान के साहित्य-संसार को मुख्य रूप से दो प्रकारों में रखा जा सकता है-

  1. जीवन-विषयक गम्भीर चिन्तनपरक लेखन।
  2. गद्यकाव्य, उपन्यास, रूपककथाएँ आदि।

मानव एवं पशु-पक्षियों के उदाहरण लेकर मनुष्य जीवन का कोई तत्त्व स्पष्ट करने या कहने के लिए रूपककथा, प्रतीककथा अथवा नीतिकथा का माध्यम हमारे भारतीय पाठकों व लेखकों के लिए नया नहीं है। पंचतन्त्र, हितोपदेश इत्यादि लघुकथा-संग्रहों से भारतीय पाठक भलीभाँति परिचित हैं। ख़लील जिब्रान ने भी इस माध्यम को लेकर अनेक लघुकथाएँ लिखी हैं। समस्त संसार के सुधी पाठक उनकी इन अप्रतिम रचनाओं के दीवाने हैं।[1]

अद्भुत कल्पना शक्ति

उनमें अद्भुत कल्पना शक्ति थी। वे अपने विचारों के कारण कविवर रवीन्द्रनाथ टैगोर के समकक्ष ही स्थापित होते थे। उनकी रचनाएं 22 से अधिक भाषाओं में देश-विदेश में तथा हिन्दी, गुजराती, मराठी, उर्दू में अनुवादित हो चुकी हैं। इनमें उर्दू तथा मराठी में सबसे अधिक अनुवाद प्राप्त होते हैं। उनके चित्रों की प्रदर्शनी भी कई देशों में लगाई गई, जिसकी सभी ने मुक्तकंठ से प्रशंसा की। वे ईसा के अनुयायी होकर भी पादरियों और अंधविश्वास के कट्टर विरोधी रहे। देश से निष्कासन के बाद भी अपनी देशभक्ति के कारण अपने देश हेतु सतत लिखते रहे।[1]

निधन

48 वर्ष की आयु में कार दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल होकर 10 अप्रैल 1931 को उनका न्यूयॉर्क में ही देहांत हो गया। उनके निधन के बाद हजारों लोग उनके अंतिम दर्शनों को आते रहे। बाद में उन्हें अपनी जन्मभूमि के गिरजाघर में दफनाया गया।[1]

ख़लील जिब्रान की श्रेष्ठतम सूक्तियां

  • सत्य को जानना चाहिए, पर उसको कहना कभी-कभी चाहिए।
  • दानशीलता यह नहीं है कि तुम मुझे वह वस्तु दे दो, जिसकी मुझे आवश्यकता तुमसे अधिक है, बल्कि यह है कि तुम मुझे वह वस्तु दो, जिसकी आवश्यकता तुम्हें मुझसे अधिक है।
  • कुछ सुखों की इच्छा ही मेरे दुःखों का अंश है।
  • यदि तुम अपने अंदर कुछ लिखने की प्रेरणा का अनुभव करो तो तुम्हारे भीतर ये बातें होनी चाहिए-
  1. ज्ञान कला का जादू
  2. शब्दों के संगीत का ज्ञान
  3. श्रोताओं को मोह लेने का जादू
  • यदि तुम्हारे हाथ रुपए से भरे हुए हैं तो फिर वे परमात्मा की वंदना के लिए कैसे उठ सकते हैं।
  • बहुत-सी स्त्रियाँ पुरुषों के मन को मोह लेती हैं। परंतु बिरली ही स्त्रियाँ हैं जो अपने वश में रख सकती हैं।
  • जो पुरुष स्त्रियों के छोटे-छोटे अपराधों को क्षमा नहीं करते, वे उनके महान् गुणों का सुख नहीं भोग सकते।
  • मित्रता सदा एक मधुर उत्तरदायित्व है, न कि स्वार्थपूर्ति का अवसर।
  • मंदिर के द्वार पर हम सभी भिखारी ही हैं।
  • यदि अतिथि नहीं होते तो सब घर कब्र बन जाते।
  • यदि तुम्हारे हृदय में ईर्ष्या, घृणा का ज्वालामुखी धधक रहा है, तो तुम अपने हाथों में फूलों के खिलने की आशा कैसे कर सकते हो?
  • यथार्थ में अच्छा वही है जो उन सब लोगों से मिलकर रहता है जो बुरे समझे जाते हैं।
  • इससे बड़ा और क्या अपराध हो सकता है कि दूसरों के अपराधों को जानते रहें।
  • यथार्थ महापुरुष वह आदमी है जो न दूसरे को अपने अधीन रखता है और न स्वयं दूसरों के अधीन होता है।
  • अतिशयोक्ति एक ऐसी यथार्थता है जो अपने आपे से बाहर हो गई है।
  • दानशीलता यह है कि अपनी सामर्थ्य से अधिक दो और स्वाभिमान यह है कि अपनी आवश्यकता से कम लो।
  • संसार में केवल दो तत्व हैं- एक सौंदर्य और दूसरा सत्य। सौंदर्य प्रेम करने वालों के हृदय में है और सत्य किसान की भुजाओं में।
  • इच्छा आधा जीवन है और उदासीनता आधी मौत।
  • निःसंदेह नमक में एक विलक्षण पवित्रता है, इसीलिए वह हमारे आँसुओं में भी है और समुद्र में भी।
  • यदि तुम जाति, देश और व्यक्तिगत पक्षपातों से जरा ऊँचे उठ जाओ तो निःसंदेह तुम देवता के समान बन जाओगे।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 खलील जिब्रान (हिंदी) (एच.टी.एम.एल) वेबदुनिया हिंदी। अभिगमन तिथि: 26 जनवरी, 2013।

बाहरी कड़ियाँ

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