प्रयोग:कविता सा.-1: Difference between revisions
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<quiz display=simple> | <quiz display=simple> | ||
{पौराणिक रूप से प्रथम चित्रकार किसको माना जाता हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-196,प्रश्न-84 | |||
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+[[ब्रह्मा]] | |||
-[[विष्णु]] | |||
-[[महेश]] | |||
-[[नारद]] | |||
||पौराणिक ग्रंथों में [[ब्रह्मा]] को सृष्टि के निर्माणकर्ता के रूप में माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि ब्रह्मा के [[मानव शरीर|शरीर]] से चारों वर्णों की उत्पत्ति हुई है। अत: पौराणिक रूप में प्रथम चित्रकार 'ब्रह्मा' को माना जा सकता है। [[विष्णु]] को 'सृष्टि पालक' तथा [[महेश]] को 'सृष्टि का संहारक' कहते हैं। | |||
{मनुष्य निर्मित सर्वाधिक प्राचीन स्थापत्य कौन है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-234,प्रश्न-359 | |||
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-द रेनडियर | |||
+द वीनस ऑफ़ विलेन्डार्फ | |||
-द हेड ऑफ़ वार्का | |||
-द डांसिंग गर्ल | |||
||'द वीनस ऑफ़ विलेन्डार्फ' एक स्त्री की मूर्ति है, जिसका निर्माण 2800 ई.पू. से 25000 ई.पू. के मध्य किया गया जबकि द हेड ऑफ़ वार्का (3100 ई.पू.) तथा द डांसिंग गर्ल (2500 ई.पू.) इसके बाद की स्थापत्य हैं। | |||
{प्रागैतिहासिक चित्र सामान्यतया किसके द्वारा निर्मित किए गए हैं?(कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-6,प्रश्न-11 | |||
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-तैल-पेस्टल्स | |||
-जल रंग | |||
-स्याही | |||
+[[गेरू]] व चारकोल | |||
||आदिमानव चित्रांकन के लिए कई तरह के [[रंग|रंगों]] का उपयोग करता था। अधिकतर रंग [[गेरू]] से बनाए जाते थे जिनकी अलग-अलग रंगते होती थीं। [[खड़िया|खड़िया मिट्टी]] और कई तरह की रंगीन मिट्टी का उपयोग वे चित्र बनाने के लिए करते थे। आग जलाना सीखने के बाद वे हड्डी को जलाकर [[काला रंग]] भी बना लेते थे। वे लकड़ी के [[कोयला|कोयले]] का प्रयोग भी कभी-कभी करते थे। बाद में स्थायित्व लाने के लिए वे जानवरों की चर्बी में रंग मिलाकर उसका प्रयोग करने लगे थे। | |||
{'वृषभों वाला कक्ष' किस गुफ़ा में स्थित है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-18,प्रश्न-1 | |||
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-तीन भाइयों की गुफ़ा | |||
-नियो की गुफ़ाएं | |||
+लासकाक्स की गुफ़ाएं | |||
-अल्टामीरा की गुफ़ाएं | |||
||[[फ़्राँस]] के लासकाक्स की गुफ़ाओं की खोज ब्रुइल ने वर्ष [[1940]] में की थी। दक्षिणी फ़्राँस में स्थित यह गुफ़ा फैंको-कैंटेब्रियन क्षेत्र में उपलब्ध गुफ़ा चित्रों में सर्वश्रेष्ठ है। यहां के चित्र आश्चर्यजनक रूप से सुरक्षित भी हैं और इनमें बड़ी चमक भी है। यहां के 'विशाल कक्ष' का एक नाम 'जंगली वृषमों वाला कक्ष' भी है। इसके चित्र बड़े मार्मिक हैं, जिनमें तीन पूर्ब तथा एक अपूर्ण आकृति अंकित है। इसी वर्ग में वह आकृति है जिसे एक सींग वाला अश्व कहा गया है। यहां हरिण तथा दो महिष (Bison-बाइसन) की आकृतियां भी प्राप्त होती हैं। लगभग अठारह फ़ीट लंबाई में अंकित ये चित्र हिमयुगीन कला का एक विशिष्ट पक्ष हैं। | |||
{[[गोथिक कला]] की मूर्तिकला का उच्चतम शास्त्रीय रूप कहाँ पाया जाता है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-39,प्रश्न-16 | |||
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-नाट्रेडम गिर्जा | |||
+रीम्स गिर्जा | |||
-एमिएंस गिर्जाज | |||
-बूर्जेस गिर्जा | |||
||उच्च गोथिक काल में 'रीम्स गिर्जा' अपने संतुलित अनुपात से आंतरिक साह-सज्जा के शास्त्रीय युग का प्रतिनिधित्व करता हैं। | |||
{इनमें से कौन असंबद्ध है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-48,प्रश्न-11 | |||
|type="()"} | |||
-आगरा शैली | |||
-लखनऊ शैली | |||
-दिल्ली शैली | |||
+कोटा शैली | |||
||प्रस्तुत विकल्पों में से 'कोटा शैली' चित्रकला की एक शैली है, जिसका संबंध [[राजस्थानी चित्रकला]] से है जबकि लखनऊ शैली, दिल्ली शैली तथा आगरा शैली का संबंध आधुनिक चित्रकला शैली से है। | |||
{[[मुग़ल चित्रकला]] किन दो शैलियों के मिश्रण से बनी है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-57,प्रश्न-11 | |||
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-[[राजस्थानी चित्रकला|राजस्थानी]]-दक्खिनी | |||
-कश्मीरी-पंजाबी | |||
-जैन-पाल | |||
+भारतीय-पर्शियन | |||
||[[मुग़ल चित्रकला|मुग़ल शैली]] भारतीय ([[राजस्थानी चित्रकला|राजस्थानी शैली]]) एवं पर्शियान (ईरानी) शैली के सम्मिश्रण से उत्पन्न हुई। चूंकि मुग़लों का प्रभाव सबसे पहले [[उत्तरी भारत]] के क्षेत्रों पर हुआ जहां पर पहले से ही राजस्थानी चित्रकला प्रचलन में थी और मुग़लों ने ईरानी शैली के चित्रकारों को पहले से प्रश्रय दिया था। ऐसे में इन दोनों शैलियों के मिश्रण से इंडो-पर्शियन शैली आगे चलकर मुग़ल शैली के रूप में विकसित हुई। | |||
{ | {सबसे अधिक [[कृष्णलीला]] के चित्र किस शैली में बने? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-72,प्रश्न-12 | ||
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- | -[[मुग़ल चित्रकला|मुग़ल शैली]] | ||
+[[ | +[[पहाड़ी चित्रकला|पहाड़ी शैली]] | ||
- | -[[राजस्थानी चित्रकला|राजस्थानी शैली]] | ||
- | -[[अपभ्रंश चित्रकला|अपभ्रंश शैली]] | ||
||[[ | ||सबसे अधिक [[कृष्णलीला]] के चित्र [[पहाड़ी चित्रकला|पहाड़ी शैली]] में बने हैं। कमोवेश यह विशेषता पहाड़ी चित्र शैली की लगभग सभी शैलियों में पाई गई। कृष्णलीला चित्रकारी राजस्थानी चित्र शैली में भी प्राप्त होती है। | ||
{ | {[[चित्रकला|भारतीय चित्रकला]] के पुनर्जागरण का श्रेय किसे जाता है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-78,प्रश्न-1 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-क्षेत्रीय मुग़ल शैली | |||
- | -कंपनी शैली | ||
-यूरोपियन शैली | |||
+बंगाल शैली | |||
||[[चित्रकला|भारतीय चित्रकला]] के पुर्जागरण का श्रेय बंगाल शैली को दिया जाता है। इसी शैली को 'टैगोर शैली', वॉश शैली', 'पुनरुत्थान या पुनर्जागरण शैली' भी कहा जाता है, जो पूरे विश्व में प्रसिद्ध हुई और भारतीय चित्रकला ने पाश्चात्य के प्रभाव से मुक्ति पाई। यहीं से भारतीय आधुनिक चित्रकला का इतिहास आरंभ होता है। बंगाल पुनरुत्थान युग के प्रवर्तक अबनीन्द्रनाथ टैगोर थे। | |||
{ | {[[ईसा मसीह]] के जीवन पर आधारित चित्र किस कलाकार ने बनाए? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-88,प्रश्न-81 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
- | -[[एम.एफ. हुसैन]] | ||
- | -बेंद्रे | ||
+ | -जामिनी राय | ||
+[[गगनेन्द्रनाथ टैगोर]] | |||
|| | ||[[ईसा मसीह]] के जीवन (क्राइस्ट इन द चर्च) पर आधारित चित्र [[गगनेन्द्रनाथ टैगोर]] ने बनाया था। गगनेन्द्रनाथ के प्रमुख चित्र हैं- [[रबींद्रनाथ टैगोर]] की रचना 'जीवन स्मृति' पर चित्र शृंखला तथा चैतन्य चरित माला का चित्रण, द प्लेस ऑफ़ स्नो, द सैंड ऑफ़ हिमालय, क्लस्टर ऑफ़ पुरी टेंपल, टेंपल क्यूबिस्टिक, मीटिंग इन द स्टेयर केस, द कॉल टू प्रेयर आदि। | ||
{[[ | |||
{'निमातनामा' पाक कला संबंधी वस्तुओं से संबंधित है। यह [[पांडुलिपि]] [[मालवा]] के सुल्तान [[ग़यासुद्दीन ख़िलजी]] के काल में लिखना प्रारंभ की गई थी। (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-196,प्रश्न-86 | |||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-[[ | -प्रेम दृश्य | ||
+[[ | -युद्ध दृश्य | ||
+पाक कला संबंधी वस्तुएं | |||
-दरबारी दृश्य | |||
||'निमातनामा' पाक कला संबंधी वस्तुओं से संबंधित है। यह [[पांडुलिपि]] [[मालवा]] के सुल्तान [[ग़यासुद्दीन ख़िलजी]] के काल में लिखना प्रारंभ की गई थी। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) यह पांडुलिपि 'इंडियन ऑफ़िस लाइब्रेरी' [[लंदन]] में संग्रहीत है। (2) इस पांडुलिपि में ग़यासुद्दीन ख़िलजी नौकरानियों द्वारा बनाए जा रहे भोजन का निरीक्षण कर रहा है। (3) यह पांडुलिपि ईरानी कला से भी प्रभावित है। | |||
{[[आर. के. लक्ष्मण]] किस रूप में प्रसिद्ध हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-234,प्रश्न-360 | |||
|type="()"} | |||
-वास्तुकार | |||
+कार्टूनिस्ट | |||
-उपन्यासकार | |||
-आंतरिक सज्जाकार | |||
||[[आर. के. लक्ष्मण]] कार्टूनिस्ट के रूप में प्रसिद्ध हैं। इनका पूरा नाम श्री रासीपुरम कृष्णस्वामी लक्ष्मण है। उन्होंने कार्टून के लिए कोई अलग से शिक्षा या ट्रेनिंग नहीं ली बल्कि अपने बड़े भाई एवं प्रसिद्ध उपन्यासकार [[आर. के. नारायण]] द्वारा समाचार-पत्रों के लिए लिखे गए कालमों के लिए कार्टून बनाते थे। इन्होंने बहुत सारी 'शार्ट स्टेरीज', यात्रा वृत्तांत तथा निबंध भी प्रकाशित किए हैं। | |||
{प्रागैतिहासिक चित्र [[उत्तर प्रदेश]] में कहां हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-6,प्रश्न-13 | |||
|type="()"} | |||
-सिंहारिया | |||
-[[चंदौली |चंदौली]] | |||
+लखनिया | |||
-[[सारनाथ]] | -[[सारनाथ]] | ||
||[[मिर्जापुर|मिर्जापुर क्षेत्र]] के प्रागैतिहासिक चित्रों का कई स्थानों पर उल्लेख है। यहां के शैल चित्रों को [[नवपाषाण काल]] का अनुमानित किया गया है जो कम से अब 3000 वर्ष पूर्व के बताए गए हैं (इम्पीरियल गजेटियर-1909 में कार्लाइल का शोध विवरण)। यहां के चित्रकारी गुफ़ाओं को सर्वप्रथम प्राचीन मानव निवास स्थल बताया गया है। यहां के छातु ग्राम के समीप लखनिया से अपना सर्वेक्षण प्रारंभ कर [[विजयगढ़, राजस्थान|विजयगढ़]] तक के ही शैल चित्रों का अध्ययन प्रस्तुत किया, जिसमें लखनिया, कोहबर आदि के चित्रों को खोज निकाला और बहुत से चित्रों को अनुकृति करवाया। | |||
{[[यूरोप]] की प्रागैतिहासिक कला का लासकाक्स क्षेत्र कहाँ स्थित है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-18,प्रश्न-2 | |||
|type="()"} | |||
-पश्चिमोत्तर जर्मनी | |||
+दक्षिणी फ़्राँस | |||
-उत्तर इटली | |||
-पूर्व स्पेन | |||
||[[फ़्राँस]] के लासकाक्स की गुफ़ाओं की खोज ब्रुइल ने वर्ष [[1940]] में की थी। दक्षिणी फ़्राँस में स्थित यह गुफ़ा फैंको-कैंटेब्रियन क्षेत्र में उपलब्ध गुफ़ा चित्रों में सर्वश्रेष्ठ है। यहां के चित्र आश्चर्यजनक रूप से सुरक्षित भी हैं और इनमें बड़ी चमक भी है। यहां के 'विशाल कक्ष' का एक नाम 'जंगली वृषमों वाला कक्ष' भी है। इसके चित्र बड़े मार्मिक हैं, जिनमें तीन पूर्ब तथा एक अपूर्ण आकृति अंकित है। इसी वर्ग में वह आकृति है जिसे एक सींग वाला अश्व कहा गया है। यहां हरिण तथा दो महिष (Bison-बाइसन) की आकृतियां भी प्राप्त होती हैं। लगभग अठारह फ़ीट लंबाई में अंकित ये चित्र हिमयुगीन कला का एक विशिष्ट पक्ष हैं। | |||
{[[गोथिक कला]] के किस चित्रकार ने इंद्रधनुषी रंगों में चित्रण किया? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-39,प्रश्न-17 | |||
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-जॉन प्यूसिल | |||
+मास्टर ऑफ़ मोलिन्स | |||
-जेरार्ड डेविड | |||
-एन्जर्स | |||
||[[गोथिक कला]] के चित्रकार मास्टर ऑफ़ मोलिन्स ने इंद्रधनुषी रंगों में Vigin in Glory तथा Nativity का चित्रण किया। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) एक अन्य अज्ञात कलाकार ने पिएटा चित्रित किया है। (2) रस्किन के मतानुसार पोक द लिम्बर्ग (Pol de limbourg) प्रथम चित्रकार था जिसने [[सूर्य]] को [[आकाश]] में ठीक तरह से स्थान दिया। (3) फूके को पहला महान फ़्राँसीसी चित्रकार कहा गया है। उसकी आकृतियां पंद्रहवीं शती की बरगण्डी की आधुनिक वेशभूषा पहने हैं। (4) किंग रेने (King Rene) ने जलती हुई झाड़ी के मध्य कुमारी तथा शिशु का चित्र बनाया। | |||
{ | {[[राजस्थान]] के किस क्षेत्र की कला शैली पर [[जहांगीर]] एवं [[शाहजहां]] कालीन मुग़ल प्रभाव अधिक दिखाई देता है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-48,प्रश्न-12 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
- | -कोटा शैली -बूंदी शैली | ||
- | -किशनगढ़ शैली | ||
- | -उदयपुर शैली | ||
+ | +जयपुर शैली | ||
||जयपुर चित्र शैली पर मुग़लों का अधिक प्रभाव दिखाई पड़ता देता है, खासकर [[जहांगीर]] एवं [[शाहजहां]] कालीन मुग़ल प्रभाव अधिक दिखाई देता है। स्त्रियों के वस्त्रों के चित्रण में मुग़ल पहनावे की छाप दिखाई देती है। साथ ही चित्रों की कलई [[मुग़ल चित्रकला|मुग़ल चित्रों]] के समान [[काला रंग|काले रंग]] या काली स्याही से की गई है। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकारा हैं- (1) [[सवाई जयसिंह]] ने अपने राज चिन्हों, कोषों, रोजमर्रा की वस्तुएं, [[कला]] का खजाना, साज-सामान आदि को सुव्यवस्थित ढंग से संचालित करने के लिए 'छत्तीस कारख़ानों' की स्थापना की, जिसमें सूरत खाना (यहां चित्रकार चित्रों का निर्माण करते थे) ही एक है। (2) इस समय के दरबारी चित्रकार मोहम्मद शाह और साहिब राम थे। (3) साहिब राम [[ईश्वरीसिंह|ईश्वरी सिंह]] के समय के प्रभावशाली चित्रकार थे। (4) जयपुर शैली 'ढूंढाड़ शैली' के नाम से भी जानी जाती है। (5) [[जयसिंह|जय सिंह]] के दरबारी कवि 'शिवदास राय' द्वारा [[ब्रज भाषा]] में तैयार करवाई गई सचित्र [[पाण्डुलिपि]] 'सरस रस ग्रंथ' है जिसमें कृष्ण विषयक चित्र पूरे 39 पृष्ठों पर अंकित हैं। (6) सवाई जयसिंह के पुत्र सवाई ईश्वरी सिंह ने अपने निर्देशन में 'ईसरलाट' और 'सिटी पैलेस' का निर्माण करवाया। | |||
{ | {स्थिर चित्रण प्रमुख रूप से किस शैली में देखने को मिलता है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-57,प्रश्न-12 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
- | -बंगाल शैली | ||
+[[मुग़ल चित्रकला|मुग़ल शैली]] | |||
- | -पाश्चात्य शैली | ||
-अजंता शैली | |||
||[[ | ||स्थिर चित्रण प्रमुख रूप से [[मुग़ल चित्रकला|मुग़ल शैली]] में देखने को मिलता है। मुग़ल शैली दक्षिण एशियाई शैली तथा परसियन शैली का मिश्रण है। मुग़ल शैली जैसे भारतीय हिन्दू शैली, जैन और बौद्ध शैली से प्रभावित रही। स्थित चित्रण [[मुग़ल काल]] में ही फला-फूला। | ||
{[[ | {'गुलेर शैली' के लगभग कितने चित्र प्राप्त हैं, जो [[रामायण]] पर आधारित हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-72,प्रश्न-1 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
- | -15 | ||
-206 | |||
- | -11 | ||
+14 | |||
||[[ | ||गुलेर शैली के [[रामायण]] पर आधारित 14 चित्र प्राप्त होते हैं, जो [[दलीप सिंह|राजा दलीप सिंह]] के समय के हैं। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) गुलेर शैली आरंभिक चित्र 'पंड़ित सेऊ' और उनके दो पुत्र 'मानकू' और 'नैनसुख' ने बनाए। (2) गुलेर कलम का विषय रामायण और [[महाभारत]] की प्रमुख घटनाएं रहीं लेकिन इस शैली में स्त्री-चित्रण को विशेष महत्त्व दिया गया है। | ||
{ | {बंगाल पुनरुत्थान युग के प्रवर्तक कौन थे? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-78,प्रश्न-2 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
+[[ | -[[अमृता शेरगिल]] | ||
+अबनीन्द्रनाथ टैगोर | |||
-[[नंदलाल बोस]] | |||
-यामिनी राय | |||
||[[चित्रकला|भारतीय चित्रकला]] के पुर्जागरण का श्रेय बंगाल शैली को दिया जाता है। इसी शैली को 'टैगोर शैली', वॉश शैली', 'पुनरुत्थान या पुनर्जागरण शैली' भी कहा जाता है, जो पूरे विश्व में प्रसिद्ध हुई और भारतीय चित्रकला ने पाश्चात्य के प्रभाव से मुक्ति पाई। यहीं से भारतीय आधुनिक चित्रकला का इतिहास आरंभ होता है। बंगाल पुनरुत्थान युग के प्रवर्तक अबनीन्द्रनाथ टैगोर थे। | |||
{अबनीन्द्रनाथ ठाकुर के शिष्यों में निम्न में से कौन नहीं है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-88,प्रश्न-82 | |||
|type="()"} | |||
-देवी प्रसाद रायचौधरी | |||
-[[नंदलाल बोस]] | |||
-एल.एम. सेन | |||
+गोपाल घोष | |||
||गोपाल घोष, अबनीन्द्रनाथ ठाकुर के शिष्यों में नहीं हैं। गोपाल घोष, देवी प्रसाद रायचौधरी के शिष्य थे। अबनींद्रनाथ ठाकुर के प्रमुख शिष्य हैं- [[नंदलाल बोस]], क्षितींद्रनाथ मज़ूमदार, असित कुमार हल्दर, शारदा उकील, मुकुल डे, सुरेंद्रनाथ गांगुकी एवं जामिनी राय। | |||
{"कलाकार कोई विशेष प्रकार का मनुष्य नहीं होता, बल्कि हर मनुष्य एक विशेष प्रकार का कलाकार होता है।" यह कथन किसका है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-197,प्रश्न-87 | |||
|type="()"} | |||
+[[आनंद कुमारस्वामी]] | |||
-असित कुमार हल्दर | |||
-[[वासुदेवशरण अग्रवाल]] | |||
-[[रायकृष्ण दास]] | |||
||"कलाकार कोई विशेष प्रकार का मनुष्य नहीं होता, हर मनुष्य एक विशेष प्रकार का कलाकार होता है।" यह कथन [[आनंद कुमारस्वामी]] का है। | |||
{इनमें से प्रसिद्ध व्यंग चित्रकार कौन हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-234,प्रश्न-261 | |||
|type="()"} | |||
-बी.एन. आर्य | |||
-मदन लाल नागर | |||
-पी.सी. लिटिल | |||
+[[आर. के. लक्ष्मण]] | |||
||[[आर. के. लक्ष्मण|श्री आर. के. लक्ष्मण]] [[भारत]] के प्रमुख हास्य रस लेखक और व्यंग चित्रकार थे। उन्हें 'द कॉमन मैन' नामक रचना तथा समाचार-पत्र टाइम्स ऑफ़ इंडिया के लिए प्रतिदिन लिखी जाने वाली कार्टून शृंखला 'यू सैड इस' के लिए जाना जाता है। इन्हें [[पद्म विभूषण]], [[पद्म भूषण]] आदि पुरस्कार प्रदान किए गए हैं। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) आर.के. लक्ष्मण का जन्म वर्ष [[1924]] में [[मैसूर]] में हुआ था तथा इनकी मृत्यु [[26 जनवरी]], [[2015]] को [[पुणे]] ([[महाराष्ट्र]]) में हुई थी। (2) इन्होंने मैसूर के महाराजा कॉलेज से शिक्षा प्राप्त की। (3) इन्होंने [[बाल ठाकरे|बाला साहेब ठाकरे]] (संस्थापक [[शिव सेना]]) के साथ 'द फ्री प्रेस जर्नल' ([[मुंबई]]) में बतौर कार्टूनिस्ट का कार्य किया। (4) बाद में ये 'टाइम्स ऑफ़ इंडिया' के साथ जुड़ गए जहां यह अंत तक जुड़े रहे। (5) इनकी प्रमुख रचनाएं हैं- 'द डिस्टार्टेड मिरर' (2003), 'द होटल रिविएरा' (1988) (उपन्यास), 'दे मेसेंजर, (1993), 'सर्वेंट्स ऑफ़ इंडिया' (2000), 'द टनेल ऑफ़ टाइम' (1998)। | |||
{यूरोपीय प्रागैतिहासिक चित्रों के प्रमुख केंद्र कहां पर स्थित हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-7,प्रश्न-14 | |||
|type="()"} | |||
-[[यूनान]] एवं [[मेसोपोटामिया]] | |||
-उत्तर फ़्राँस एवं [[इंग्लैंड]] | |||
+उत्तरी स्पेन एवं दक्षिणी फ़्राँस | |||
-[[इटली]] एवं [[फ़्राँस]] | |||
||यूरोपीय प्रागैतिहासिक चित्र उत्तरी स्पेन तथा दक्षिणी-पश्चिमी फ़्राँस की कलात्मक गुफ़ाओं से प्राप्त हुए हैं। इन गुफ़ाओं की दीवारों तथा छतों पर अंकित चित्रों के रूप में हिमयुग तक की प्राचीन सामग्री सुरक्षित है। | |||
{'लासकाक्स' गुफ़ा की खोज कब हुई थी? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-18,प्रश्न-3 | |||
|type="()"} | |||
-1810 | |||
-[[1936]] | |||
-1832 | |||
+[[1940]] | |||
||[[फ़्राँस]] के लासकाक्स की गुफ़ाओं की खोज ब्रुइल ने वर्ष [[1940]] में की थी। दक्षिणी फ़्राँस में स्थित यह गुफ़ा फैंको-कैंटेब्रियन क्षेत्र में उपलब्ध गुफ़ा चित्रों में सर्वश्रेष्ठ है। यहां के चित्र आश्चर्यजनक रूप से सुरक्षित भी हैं और इनमें बड़ी चमक भी है। यहां के 'विशाल कक्ष' का एक नाम 'जंगली वृषमों वाला कक्ष' भी है। इसके चित्र बड़े मार्मिक हैं, जिनमें तीन पूर्ब तथा एक अपूर्ण आकृति अंकित है। इसी वर्ग में वह आकृति है जिसे एक सींग वाला अश्व कहा गया है। यहां हरिण तथा दो महिष (Bison-बाइसन) की आकृतियां भी प्राप्त होती हैं। लगभग अठारह फ़ीट लंबाई में अंकित ये चित्र हिमयुगीन कला का एक विशिष्ट पक्ष हैं। | |||
{[[भारत]] में लघु चित्रों की शुरुआत किसने की? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-40,प्रश्न-1 | |||
|type="()"} | |||
-[[राजपूत]] | |||
-[[मुग़ल वंश|मुग़ल]] | |||
+[[पाल वंश|पाल]] | |||
-[[मौर्य वंश|मौर्य]] | |||
||[[भारत]] में [[बंगाल]] के पाल शासकों के काल में ताल के पत्तों तथा बाद में काग़ज़ पर लद्यु चित्रकारी का प्रचलन बढ़ा। कालांतर में भारत में लघु चित्रकारी कला या मिनीएचर आर्ट का प्रारंभ मुग़लों द्वारा किया गया जो 'मुग़ल शैली' के नाम से प्रसिद्ध हुई। इस प्रसिद्ध [[कला]] को फ़राज (पर्शिया या [[ईरान]]) से लेकर आया माना जाता है। सर्वप्रथम मुग़ल शासक [[हुमायूं]] ने फ़राज़ से लघु चित्रकारी में विशेषज्ञ कलाकारों को बुलवाया था। मुग़ल बादशाह [[अकबर]] ने भी इस भव्य कला को बढ़ावा दिया। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) इस शैली के चित्रकारों को [[जहांगीर]] व [[शाहजहां]] ने भी भरपूर प्रश्रय दिया। (2) [[मुग़ल काल]] में राजस्थान में इस चित्रकला के कई स्कूल प्रारम्भ हुए। (3) भौगोलिक स्थिती, सांस्कृतिक एंव शैलीगत विशेषताओं के आधार पर इन स्कूलों को चार भागों में विभाजित किया गया, ये हैं- मेवाड़ स्कूल, मारवाड़ स्कूल, हाड़ौती स्कूल, ढूंढाड़ स्कूल। | |||
{साहिब राम किस शैली के लघु चित्रों के चित्रकार थे? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-48,प्रश्न-13 | |||
|type="()"} | |||
-जोधपुर शैली | |||
-किशनगढ़ शैली | |||
-मेवाड़ शैली | |||
+जयपुर शैली | |||
||जयपुर चित्र शैली पर मुग़लों का अधिक प्रभाव दिखाई पड़ता देता है, खासकर [[जहांगीर]] एवं [[शाहजहां]] कालीन मुग़ल प्रभाव अधिक दिखाई देता है। स्त्रियों के वस्त्रों के चित्रण में मुग़ल पहनावे की छाप दिखाई देती है। साथ ही चित्रों की कलई [[मुग़ल चित्रकला|मुग़ल चित्रों]] के समान [[काला रंग|काले रंग]] या काली स्याही से की गई है। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकारा हैं- (1) [[सवाई जयसिंह]] ने अपने राज चिन्हों, कोषों, रोजमर्रा की वस्तुएं, [[कला]] का खजाना, साज-सामान आदि को सुव्यवस्थित ढंग से संचालित करने के लिए 'छत्तीस कारख़ानों' की स्थापना की, जिसमें सूरत खाना (यहां चित्रकार चित्रों का निर्माण करते थे) ही एक है। (2) इस समय के दरबारी चित्रकार मोहम्मद शाह और साहिब राम थे। (3) साहिब राम [[ईश्वरीसिंह|ईश्वरी सिंह]] के समय के प्रभावशाली चित्रकार थे। (4) जयपुर शैली 'ढूंढाड़ शैली' के नाम से भी जानी जाती है। (5) [[जयसिंह|जय सिंह]] के दरबारी कवि 'शिवदास राय' द्वारा [[ब्रज भाषा]] में तैयार करवाई गई सचित्र [[पाण्डुलिपि]] 'सरस रस ग्रंथ' है जिसमें कृष्ण विषयक चित्र पूरे 39 पृष्ठों पर अंकित हैं। (6) सवाई जयसिंह के पुत्र सवाई ईश्वरी सिंह ने अपने निर्देशन में 'ईसरलाट' और 'सिटी पैलेस' का निर्माण करवाया। | |||
{किस बादशाह का समय [[मुग़ल काल]] का स्वर्ण युग कहा जाता है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-57,प्रश्न-13 | |||
|type="()"} | |||
-[[अकबर]] | |||
-[[जहांगीर]] | |||
-[[बाबर]] | |||
+[[शाहजहां]] | |||
||[[शाहजहां]] (1627-1656 ई.) ने लगभग 30 वर्षों तक शासन किया। उसका यह शासन मुग़ल इतिहास में विशेष महत्त्व रखता है। यह समय [[मुग़ल साम्राज्य]] अपने चरमोत्कर्ष पर पहुंच चुका था। साम्राज्य की विशालता, सुदृढ़ता, आर्थिक संपन्नता और सांस्कृतिक वैभव को देखते हुए कई इतिहासकारों ने इस काल को मुग़ल इतिहास के 'स्वर्ण युग' की संज्ञा दी है, परन्तु इस परंपरागत विचारधारा के आलोचक इतिहासकार भी हैं जिनके अनुसार, शाहजहां का शासनकाल एक विरोधाभास है जिसमें एक ओर उन्नति और प्रगति है तो दूसरी ओर ऐसी समस्याएं भी हैं जो मुग़ल साम्राज्य के पतन के बीच बोने में सहातक हुई। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) शाहजहां का शासनकाल सही अर्थों में 'मुग़ल स्थापत्य कला का स्वर्ण युग' माना जा सकता है। (2) [[जहांगीर]] का काल 'चित्रकला का स्वर्ण युग' कहा जा सकता है। (3) [[अकबर]] का शासनकाल 'साहित्य तथा संगीत के क्षेत्र में स्वर्ण युग' माना जा सकता है। (4) अकबर ने स्वयं चित्रकला सीखी थी और उसने चित्रकारी का कुछ अभ्यास भी किया था। मुग़ल दरबार में चित्रकला को प्रोत्साहन अकबर के समय से ही मिलने लगा था। | |||
{शिकरे के साथ महिला किस शैली का चित्र है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-72,प्रश्न-2 | |||
|type="()"} | |||
+गुलेर शैली | |||
-बसौली शैली | |||
-जयपुर शैली | |||
-चम्बा शैली | |||
||गुलेर शैली के [[रामायण]] पर आधारित 14 चित्र प्राप्त होते हैं, जो [[दलीप सिंह|राजा दलीप सिंह]] के समय के हैं। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) गुलेर शैली आरंभिक चित्र 'पंड़ित सेऊ' और उनके दो पुत्र 'मानकू' और 'नैनसुख' ने बनाए। (2) गुलेर कलम का विषय रामायण और [[महाभारत]] की प्रमुख घटनाएं रहीं लेकिन इस शैली में स्त्री-चित्रण को विशेष महत्त्व दिया गया है। | |||
{[[भारतीय कला]] में पुनरुत्थान किससे आरंभ होता है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-78,प्रश्न-3 | |||
|type="()"} | |||
-पटना स्कूल | |||
-बिहार स्कूल | |||
+बंगाल स्कूल | |||
-ईस्टर्न स्कूल | |||
||[[चित्रकला|भारतीय चित्रकला]] के पुर्जागरण का श्रेय बंगाल शैली को दिया जाता है। इसी शैली को 'टैगोर शैली', वॉश शैली', 'पुनरुत्थान या पुनर्जागरण शैली' भी कहा जाता है, जो पूरे विश्व में प्रसिद्ध हुई और भारतीय चित्रकला ने पाश्चात्य के प्रभाव से मुक्ति पाई। यहीं से भारतीय आधुनिक चित्रकला का इतिहास आरंभ होता है। बंगाल पुनरुत्थान युग के प्रवर्तक अबनीन्द्रनाथ टैगोर थे। | |||
{[[शान्ति निकेतन]] में मध्य युगीन हिंदू संत के भित्ति चित्रों को किसने चित्रित किया है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-88,प्रश्न-83 | |||
|type="()"} | |||
-[[नंदलाल बोस]] | |||
-[[रबींद्रनाथ टैगोर]] | |||
+बिनोद बिहारी मुखर्जी | |||
-के.जी. सुब्रमण्यन | |||
||[[शान्ति निकेतन]] की मध्ययुगीन हिंदू संत के भित्ति चित्रों को बिनोद बिहारी मुखर्जी ([[1904]]-[[1980]]) ने 'हिंदी भवन' में वर्ष [[1946]]-[[1947]] में चित्रित किया था। अपनी दृष्टि क्षमता खोने के बाद उन्होंने वर्ष [[1972]] में 'कला भवन' कैंपस में बड़े आकार का सिरेमिक चित्र बनाया था। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- शांति निकेतन की अधिकतम इमारतें वर्ष [[1919]] के बाद बनीं और सभी 5 उत्तरायन दिशा में हैं जिसकी डिज़ाइन सुरेंद्रनाथ कर ने तैयार की थी। शांति निकेतन में रामकिंकर वैज ने 'लार्जर दैन लाइफ़ फ़िगर ऑफ़ सैन्टल्स' नामक भू-दृश्य तैयार किया था। | |||
{प्रसिद्ध कलाकृति 'चक्का फेंकने वाला' का कलाकार कौन है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-197,प्रश्न-88 | |||
|type="()"} | |||
-पालीक्लीटस | |||
-रूबेन्स | |||
-राफेल | -राफेल | ||
- | +मायरॉन | ||
- | ||ई.पू. पांचवीं सदी के आस-पास मायरॉन द्वारा मूर्तियों की मुद्राओं से कठोरता हटाकर उनको लयबद्ध किए जाने का श्रेय प्राप्त है। उनकी सबसे प्रसिद्ध मूर्ति 'Discus Throw' (चक्का फेंकने वाला नष्ट) हो चुकी है किंतु उसकी प्ररिकृति मूर्तिकारों द्वारा तैयार की गई है। | ||
||'द | |||
{एक ऐसे नेता का नाम बताइए जिसने अपनी जीविका का प्रारंभ एक कार्टून चित्रकार के रूप में किया था? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-235,प्रश्न-362 | |||
|type="()"} | |||
+[[आर. के. लक्ष्मण]] | |||
-[[बाल ठाकरे]] | |||
-[[वी. पी. सिंह|वी.पी. सिंह]] | |||
-[[इंद्र कुमार गुजराल]] | |||
||[[आर. के. लक्ष्मण|श्री आर. के. लक्ष्मण]] [[भारत]] के प्रमुख हास्य रस लेखक और व्यंग चित्रकार थे। उन्हें 'द कॉमन मैन' नामक रचना तथा समाचार-पत्र टाइम्स ऑफ़ इंडिया के लिए प्रतिदिन लिखी जाने वाली कार्टून शृंखला 'यू सैड इस' के लिए जाना जाता है। इन्हें [[पद्म विभूषण]], [[पद्म भूषण]] आदि पुरस्कार प्रदान किए गए हैं। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) आर.के. लक्ष्मण का जन्म वर्ष [[1924]] में [[मैसूर]] में हुआ था तथा इनकी मृत्यु [[26 जनवरी]], [[2015]] को [[पुणे]] ([[महाराष्ट्र]]) में हुई थी। (2) इन्होंने मैसूर के महाराजा कॉलेज से शिक्षा प्राप्त की। (3) इन्होंने [[बाल ठाकरे|बाला साहेब ठाकरे]] (संस्थापक [[शिव सेना]]) के साथ 'द फ्री प्रेस जर्नल' ([[मुंबई]]) में बतौर कार्टूनिस्ट का कार्य किया। (4) बाद में ये 'टाइम्स ऑफ़ इंडिया' के साथ जुड़ गए जहां यह अंत तक जुड़े रहे। (5) इनकी प्रमुख रचनाएं हैं- 'द डिस्टार्टेड मिरर' (2003), 'द होटल रिविएरा' (1988) (उपन्यास), 'दे मेसेंजर, (1993), 'सर्वेंट्स ऑफ़ इंडिया' (2000), 'द टनेल ऑफ़ टाइम' (1998)। | |||
{दजला और फरात नदियों के दोआब में पनपी सभ्यता किसकी है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-7,प्रश्न-15 | |||
|type="()"} | |||
-मिस्त्र | |||
-ग्रीक | |||
-[[भारत]] | |||
+[[मेसोपोटामिया]] | |||
||'[[मेसोपोटामिया]]' का यूनानी अर्थ है- 'दो नदियों के बीच'। यह क्षेत्र दजला (टिगरिस) और फरात (इयुफ्रेटीस) नदियों के बीच में पड़ता है। मेसोपोटामिया को अब 'इराक' कहते हैं। यह कांस्य युगीन सभ्यता का उद्गम स्थल माना जाता है। यहां सुमेर, अक्कदी सभ्यता, बेबीलोन तथा असीरिया के साम्राज्य अलग-अलग समय में स्थापित हुए थे। यहां का प्रसिद्ध प्राचीन नगर 'उर' है, जिसे 'इब्राहिम का नगर' भी कहते हैं। निमरुद (मारी), उरुक, सूसा (ईरान) तथा लगाश यहां के प्राचीन उत्खनन के विशेष क्षेत्र रहे हैं। | |||
{आधुनिक भारतीय चित्रकला के पितामह कौन थे? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-88,प्रश्न-86 | |||
|type="()"} | |||
+अबनींद्रनाथ टैगोर | |||
-[[रबींद्रनाथ टैगोर]] | |||
-[[गगनेंद्रनाथ टैगोर]] | |||
-क्षितींद्रनाथ टैगोर | |||
||अबनीन्द्रनाथ टैगोर को 'आधुनिक भारतीय चित्रकला का पितामह' कहा जाता है। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) अबनीन्द्रनाथ टैगोर 'इंडियन सोसाइटी ऑफ़ ओरियंटल आर्ट' के निर्माता तथा मुख्य चित्रकार थे। (2) वे [[भारतीय कला]] में स्वदेशी मूल्यों को पिरोने वाले पहले भारतीय चित्रकार थे। (3) 'बंगाल स्कूल ऑफ़ आर्ट' की स्थापना अबनीन्द्रनाथ टैगोर ने की थी। | |||
{सर्वप्रथम लघुचित्र किस पर बनाए गए? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-40,प्रश्न-2 | |||
|type="()"} | |||
-काग़ज़ | |||
+तालपत्र | |||
-कांच | |||
-वस्त्र | |||
||[[भारत]] में [[बंगाल]] के पाल शासकों के काल में ताल के पत्तों तथा बाद में काग़ज़ पर लद्यु चित्रकारी का प्रचलन बढ़ा। कालांतर में भारत में लघु चित्रकारी कला या मिनीएचर आर्ट का प्रारंभ मुग़लों द्वारा किया गया जो 'मुग़ल शैली' के नाम से प्रसिद्ध हुई। इस प्रसिद्ध [[कला]] को फ़राज (पर्शिया या [[ईरान]]) से लेकर आया माना जाता है। सर्वप्रथम मुग़ल शासक [[हुमायूं]] ने फ़राज़ से लघु चित्रकारी में विशेषज्ञ कलाकारों को बुलवाया था। मुग़ल बादशाह [[अकबर]] ने भी इस भव्य कला को बढ़ावा दिया। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) इस शैली के चित्रकारों को [[जहांगीर]] व [[शाहजहां]] ने भी भरपूर प्रश्रय दिया। (2) [[मुग़ल काल]] में राजस्थान में इस चित्रकला के कई स्कूल प्रारम्भ हुए। (3) भौगोलिक स्थिती, सांस्कृतिक एंव शैलीगत विशेषताओं के आधार पर इन स्कूलों को चार भागों में विभाजित किया गया, ये हैं- मेवाड़ स्कूल, मारवाड़ स्कूल, हाड़ौती स्कूल, ढूंढाड़ स्कूल। | |||
{'निहाल चंद' कलाकार किस शैली से संबंधित हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-48,प्रश्न-14 | |||
|type="()"} | |||
-जैन शैली | |||
-उपभ्रंश शैली | |||
-आधुनिक शैली | |||
+[[राजस्थानी चित्रकला|राजस्थानी शैली]] | |||
||निहाल चंद [[राजस्थानी चित्रकला|राजस्थानी चित्रकला शैली]] की किशनगढ़ उपशैली से संबंधित हैं। निहालचंद द्वारा चित्रित चित्रों का संकलन 'नागर समुच्चय' नामक से प्रसिद्ध है। | |||
{प्रख्यात मूर्तिकार चिंतामणि कर निम्नलिखित में से किस ललित कला विद्यालय में प्रधानाचार्य थे? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-89,प्रश्न-87 | |||
|type="()"} | |||
-मद्रास कॉलेज ऑफ़ आर्ट्स | |||
-लखनऊ कॉलेज ऑफ़ आर्ट्स | |||
-दिल्ली कॉलेज ऑफ़ आर्ट्स | |||
+कलकत्ता कॉलेज ऑफ़ आर्ट्स | |||
||प्रख्यात मूर्तिकार चिंतामणि कर कलकत्ता कॉलेज आर्ट्स, में प्रधानाचार्य थे। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकर हैं- (1) वर्ष [[1948]] में [[लंदन]] में आयोजित [[ओलंपिक खेल|ओलंपिक]] में चिंतामणि ने [[ब्रिटेन]] की तरफ़ से शामिल होकर रजत पदक जीता था। (2) इन्होंने मेडल अपने महत्त्वपूर्ण कार्य 'द स्टैग' के लिए जीता। | |||
{निम्न में से कौन-सा [[राजस्थानी चित्रकला]] का केंद्र नहीं है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-73,प्रश्न-3 | |||
|type="()"} | |||
-[[किशनगढ़]] | |||
-[[बूंदी]] | |||
-[[चावंड उदयपुर|चावंड]] | |||
+गुलेर | |||
||गुलेर चित्रकला का संबंध [[पहाड़ी चित्रकला|पहाड़ी कला]] से है। पहाड़ी कला में कांगड़ा शैली को रंग-रूप देने एवं ऊंचाइयों तक पहुंचाने का महत्त्वपूर्ण कार्य करने वाली शैली 'गुलेर' ही थी। गुलेर राज्य की स्थापना राजा हरि चंद ने 1405 ई. [[कांगड़ा|कांगड़ा राज्य]] के एक शाखा के रूप में की थी। गुलेर के राजा गोवर्धन सिंह के समय में निश्चित रूप से चित्र बनने लगे। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) देवगढ़ चित्रशैली का संबंध [[राजस्थानी चित्रकला]] से था। (2) शेखावटी चित्रकला शैली का संबंध राजस्थानी चित्रकला से था। (3) परदाज का प्रयोग अलवर चित्र शैली राजस्थानी चित्र शैली में अर्शनीय होते हैं। (4) गुलेर राज्य को मुग़ल संरक्षण भी प्राप्त था। गुलेर के राजा रूपचंद को '[[मानसिंह]]' का समर्थन मिला। (4) राजा मानसिंह, [[शाहजहां]] एवं [[औरंगजेब]] के लिए यहां के राजा ने [[अफ़ग़ानिस्तान]] एवं [[कंधार]] के युद्ध में हिस्सा लिया। इससे प्रसन्न होकर मुग़ल शहंशाहों ने 'अफ़गानी चीता' की उपाधि प्रदान की, तभी से यहां के राजा 'चंद' के स्थान पर 'सिंह' लिखने लगे। | |||
{बंगाल चित्र-शैली इनमें से किस एक विशेषता के कारण जानी जाती है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-78,प्रश्न-4 | |||
|type="()"} | |||
-ऑयल तकनीक | |||
+वॉश तकनीक | |||
-मिनिएचर तकनीक | |||
-म्यूरल तकनीक | |||
||[[चित्रकला|भारतीय चित्रकला]] के पुर्जागरण का श्रेय बंगाल शैली को दिया जाता है। इसी शैली को 'टैगोर शैली', वॉश शैली', 'पुनरुत्थान या पुनर्जागरण शैली' भी कहा जाता है, जो पूरे विश्व में प्रसिद्ध हुई और भारतीय चित्रकला ने पाश्चात्य के प्रभाव से मुक्ति पाई। यहीं से भारतीय आधुनिक चित्रकला का इतिहास आरंभ होता है। बंगाल पुनरुत्थान युग के प्रवर्तक अबनीन्द्रनाथ टैगोर थे। | |||
{इनमें से कौन बंगाल शैली का चित्रकार नहीं है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-88,प्रश्न-84 | |||
|type="()"} | |||
-शारदा उकील | |||
-सुधीर खास्तगीर | |||
-मुकुल डे | |||
+ईश्वरी प्रसाद | |||
||ईश्वरी प्रसाद पटना (कंपनी) शैली के अंतिम प्रसिद्ध चित्रकार थे जबकि शारदा उकील, मुकुल डे, अबनीन्द्रनाथ टैगोर की शिष्यता में तथा सुधीर खास्तगीर, नंदलाल बोस की शिष्यता में बंगाल शैली के चित्रकार हैं। | |||
{ | |||
{'वाल्ट डिजनी' को किसका जनक माना जाता है?(कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-197,प्रश्न-89 | |||
|type="()"} | |type="()"} | ||
- | -स्टिल फोटोग्राफी | ||
+[[ | +एनीमेशन प्रक्रिया | ||
- | -वीडियों फ़िल्मिंग | ||
- | -ब्लॉक मेकिंग | ||
||[[ | ||'वाल्ट डिजनी' फ़िल्म को एनिमेशन तकनीक से बनाया गया है इसीलिए 'आल्ट डिजनी' को एनीमेशन प्रक्रिया का जनक माना जाता है। वाल्टर इलियास डिजनी एक अमेरिकन थे। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) वाल्टर इलियाम डिजनी का जन्म [[5 दिसंबर]], [[1901]] में इलिनोयस ([[शिकागो]]) में हुआ था। (2) इन्होंने आधुनिक अमेरिकन कला के रूप में 'मोशन पिक्चर उद्योग' का विस्तार किया। (3) वाल्टर डिजनी ने 'द एलीस कॉमेडीज' को बनाया। (4) [[21 दिसंबर]], [[1937]] में बनाई गई एनिमेशन फ़िल्म 'स्नोह्वाइट एंड सेवेन डवार्पस' उनकी पहली संगीतमयी पूर्ण फ़िल्म थी जिसे लॉस एंजिल्स के कैर्थी थिएटर में दिखाया गया। (5) वाल्टर डिजनी स्टूडियो द्वारा बनाई गई प्रमुख फ़िल्में हैं- 'पिनोच्चियो (Pinocchio), 'फनटासिया' (Fantasia), 'डूम्बो' (Dumdo), 'बाम्बी, (Bamby)| | ||
{सबसे ऊंची [[महात्मा बुद्ध]] की मूर्ति जो हाल में ध्वस्त की गई थी, कहां स्थित थी? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-235,प्रश्न-363 | |||
|type="()"} | |||
-[[काबुल]] | |||
-कुंदुल | |||
+[[बामियान]] | |||
-कैसर | |||
||सबसे ऊंची [[महात्मा बुद्ध]] की मूर्ति जो हल ही में ध्वस्त की गई थी, वह [[बामियान]] में स्थित थी। तत्कालीन तालिबान नेता मुल्ला मोहम्मद उमर के आदेश पर इसे वर्ष [[2001]] में नष्ट कर दिया गया था। इसका निर्माण गंधार कला शैली में हुआ है। | |||
{[[मेसोपोटामिया]] की सभ्यता किस देश की है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-7,प्रश्न-16 | |||
|type="()"} | |||
-[[पाकिस्तान]] | |||
-[[ईरान]] | |||
-[[अफ़ग़ानिस्तान]] | |||
+इराक | |||
||'[[मेमोपोटामिया]]' का यूनानी अर्थ है- 'दो नदियों के बीच'। यह क्षेत्र दजला (टिगरिस) और फरात (इयुफ्रेटीस) नदियों के बीच में पड़ता है। मेसोपोटामिया को अब 'इराक' कहते हैं। यह कांस्य युगीन सभ्यता का उद्गम स्थल माना जाता है। यहां सुमेर, अक्कदी सभ्यता, बेबीलोन तथा असीरिया के साम्राज्य अलग-अलग समय में स्थापित हुए थे। यहां का प्रसिद्ध प्राचीन नगर 'उर' है, जिसे 'इब्राहिम का नगर' भी कहते हैं। निमरुद (मारी), उरुक, सूसा (ईरान) तथा लगाश यहां के प्राचीन उत्खनन के विशेष क्षेत्र रहे हैं। | |||
{लासकाक्स की गुफ़ाओं में किस दीर्घकाय पशु की आकृति हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-18,प्रश्न-5 | |||
|type="()"} | |||
-[[सिंह]] | |||
-[[हाथी]] | |||
-डायनासोर | |||
+बाइसन (महिष) | |||
||[[फ़्राँस]] के लासकाक्स की गुफ़ाओं की खोज ब्रुइल ने वर्ष [[1940]] में की थी। दक्षिणी फ़्राँस में स्थित यह गुफ़ा फैंको-कैंटेब्रियन क्षेत्र में उपलब्ध गुफ़ा चित्रों में सर्वश्रेष्ठ है। यहां के चित्र आश्चर्यजनक रूप से सुरक्षित भी हैं और इनमें बड़ी चमक भी है। यहां के 'विशाल कक्ष' का एक नाम 'जंगली वृषमों वाला कक्ष' भी है। इसके चित्र बड़े मार्मिक हैं, जिनमें तीन पूर्ब तथा एक अपूर्ण आकृति अंकित है। इसी वर्ग में वह आकृति है जिसे एक सींग वाला अश्व कहा गया है। यहां हरिण तथा दो महिष (Bison-बाइसन) की आकृतियां भी प्राप्त होती हैं। लगभग अठारह फ़ीट लंबाई में अंकित ये चित्र हिमयुगीन कला का एक विशिष्ट पक्ष हैं। | |||
{[[भारत]] में सचित्र पुस्तकें सर्वप्रथम किस माध्यम पर बनीं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-40,प्रश्न-3 | |||
|type="()"} | |||
-कपड़े | |||
+ताल-पत्रों | |||
-काग़ज़ | |||
-लकड़ी के पट्टे | |||
||[[भारत]] में [[बंगाल]] के पाल शासकों के काल में ताल के पत्तों तथा बाद में काग़ज़ पर लद्यु चित्रकारी का प्रचलन बढ़ा। कालांतर में भारत में लघु चित्रकारी कला या मिनीएचर आर्ट का प्रारंभ मुग़लों द्वारा किया गया जो 'मुग़ल शैली' के नाम से प्रसिद्ध हुई। इस प्रसिद्ध [[कला]] को फ़राज (पर्शिया या [[ईरान]]) से लेकर आया माना जाता है। सर्वप्रथम मुग़ल शासक [[हुमायूं]] ने फ़राज़ से लघु चित्रकारी में विशेषज्ञ कलाकारों को बुलवाया था। मुग़ल बादशाह [[अकबर]] ने भी इस भव्य कला को बढ़ावा दिया। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) इस शैली के चित्रकारों को [[जहांगीर]] व [[शाहजहां]] ने भी भरपूर प्रश्रय दिया। (2) [[मुग़ल काल]] में [[राजस्थान]] में इस चित्रकला के कई स्कूल प्रारम्भ हुए। (3) भौगोलिक स्थिती, सांस्कृतिक एंव शैलीगत विशेषताओं के आधार पर इन स्कूलों को चार भागों में विभाजित किया गया, ये हैं- मेवाड़ स्कूल, मारवाड़ स्कूल, हाड़ौती स्कूल, ढूंढाड़ स्कूल। | |||
{[[राजपूत चित्रकला|राजपूत शैली]] किसका सम्मिलित नाम है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-49,प्रश्न-15 | |||
|type="()"} | |||
-[[राजस्थानी चित्रकला|राजस्थानी शैली]]-[[मुग़ल चित्रकला|मुग़ल शैली]] | |||
-अपभ्रंश शैली-किशनगढ़ शैली | |||
+[[राजस्थानी चित्रकला|राजस्थानी शैली]]-[[पहाड़ी चित्रकला|पहाड़ी शैली]] | |||
-जयपुर शैली-ईरानी शैली | |||
||राजपूत चित्रकला शैली का सबसे पहले वैज्ञानिक विभाजन [[आनन्द कुमारस्वामी|डॉ. आनन्द कुमारस्वामी]] ने 'राजपूत पेंटिंग' नामक पुस्तक में वर्ष [[1916]] में प्रस्तुत किया तथा राजपूत कला का विषय राजपूताना अर्थात [[राजस्थान]] और [[पंजाब]] की पहाड़ी रियासतों से संबंधित माना। उन्होंने [[राजपूत चित्रकला]] को दो भागों अर्थात [[राजस्थानी चित्रकला|राजस्थानी]] और [[पहाड़ी चित्रकला|पहाड़ी]] में विभक्त किया है। [[जम्मू]], [[कांगड़ा]], [[गढ़वाल]], [[बसौली]], [[चंबा]] आदि पहाड़ी रियासतों से संबंधित हैं। | |||
{[[मुग़ल काल]] में [[चित्रकला]] का उत्कर्ष किसके राज्यकाल में हुआ था? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-57,प्रश्न-15 | |||
|type="()"} | |||
-[[अकबर]] | |||
-[[शाहजहां]] | |||
-[[औरंगजेब]] | |||
+[[जहांगीर]] | |||
||[[शाहजहां]] (1627-1656 ई.) ने लगभग 30 वर्षों तक शासन किया। उसका यह शासन मुग़ल इतिहास में विशेष महत्त्व रखता है। यह समय [[मुग़ल साम्राज्य]] अपने चरमोत्कर्ष पर पहुंच चुका था। साम्राज्य की विशालता, सुदृढ़ता, आर्थिक संपन्नता और सांस्कृतिक वैभव को देखते हुए कई इतिहासकारों ने इस काल को मुग़ल इतिहास के 'स्वर्ण युग' की संज्ञा दी है, परन्तु इस परंपरागत विचारधारा के आलोचक इतिहासकार भी हैं जिनके अनुसार, शाहजहां का शासनकाल एक विरोधाभास है जिसमें एक ओर उन्नति और प्रगति है तो दूसरी ओर ऐसी समस्याएं भी हैं जो मुग़ल साम्राज्य के पतन के बीच बोने में सहातक हुई। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) शाहजहां का शासनकाल सही अर्थों में 'मुग़ल स्थापत्य कला का स्वर्ण युग' माना जा सकता है। (2) [[जहांगीर]] का काल 'चित्रकला का स्वर्ण युग' कहा जा सकता है। (3) [[अकबर]] का शासनकाल 'साहित्य तथा संगीत के क्षेत्र में स्वर्ण युग' माना जा सकता है। (4) अकबर ने स्वयं चित्रकला सीखी थी और उसने चित्रकारी का कुछ अभ्यास भी किया था। मुग़ल दरबार में चित्रकला को प्रोत्साहन अकबर के समय से ही मिलने लगा था। | |||
{नैनसुख किस शैली का चित्रकार था? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-73,प्रश्न-4 | |||
|type="()"} | |||
+गुलेर शैली | |||
-[[कांगड़ा चित्रकला|कांगड़ा शैली]] | |||
-बसौली शैली | |||
-[[गढ़वाल चित्रकला|गढ़वाल शैली]] | |||
||नैनसुख गुलेर शैली का एक प्रसिद्ध चित्रकार था। 1740 ई. में मैदानी प्रदेश से आए मुग़ल कलाकारों ने नैनसुख के साथ मिलकर काम किया तथा [[जम्मू]] के राजा बलदेव सिंह के राज परिवार के लिए चित्र भी बनाए। | |||
{बंगाल कला शैली किस तकनीक से जानी जाती है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-78,प्रश्न-5 | |||
|type="()"} | |||
-तैल तकनीक | |||
-लघु चित्रण तकनीक | |||
+वॉश तकनीक | |||
-टेम्परा तकनीक | |||
||[[चित्रकला|भारतीय चित्रकला]] के पुर्जागरण का श्रेय बंगाल शैली को दिया जाता है। इसी शैली को 'टैगोर शैली', वॉश शैली', 'पुनरुत्थान या पुनर्जागरण शैली' भी कहा जाता है, जो पूरे विश्व में प्रसिद्ध हुई और भारतीय चित्रकला ने पाश्चात्य के प्रभाव से मुक्ति पाई। यहीं से भारतीय आधुनिक चित्रकला का इतिहास आरंभ होता है। बंगाल पुनरुत्थान युग के प्रवर्तक अबनीन्द्रनाथ टैगोर थे। | |||
{चित्रकार [[जामिनी राय]] की प्रसिद्ध कलाकृति 'मां एवं शिशु' का माध्यम क्या है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-88,प्रश्न-85 | |||
|type="()"} | |||
+कैनवास पर तैल रंग | |||
-कैनवास पर टेम्परा | |||
-टेम्परा | |||
-वॉश | |||
||[[जामिनी राय]] ने अपनी प्रसिद्ध कृति 'मां एवं शिशु' का चित्रण कैनवास पर तैल रंग से किया। जिसका विवरण राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय, [[नई दिल्ली]] की वेबसाइट (ngmaindia.gov.in/hindi.sh-jamini-roy.asp) पर संग्रहीत है। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) जामिनी राय ने अधिकांशत: जमीनी या प्राकृतिक रंगों का प्रयोग किया। (2) इन्होंने स्थानीय लोक कलाओं की विषय-वस्तु को अपनी [[कला]] में समावेश किया। (3) इन्होंने [[रामायण]] और [[कृष्णलीला]] के दृश्यों को अपनी कला में उतारा। (4) इन्होंने गांव के स्त्री-पुरुष का चित्रण किया तथा पटुआ के संग्रह से लोकप्रिय प्रतिबिंबों को पुन: लोगों के बीच प्रस्तुत किया। (5) 'बाउल एवं बैठी हुई महिला' उनके चित्रकारी का उत्कृष्ट उदाहरण है। | |||
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Revision as of 12:29, 25 January 2018
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